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फ्रंटफुट पर खेलने वाले पूर्व निदेशक मिश्रा को भुला नहीं सकेगा विपक्ष… शाह के भ्रम ने किया चौकन्ना…

इम्पैक्ट डेस्क.

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा का कार्यकाल 15 सितंबर को समाप्त हो गया है। राहुल नवीन, ईडी के विशेष निदेशक को जांच एजेंसी के कार्यवाहक निदेशक का पदभार सौंपा गया है। चार बार सेवा विस्तार लेने वाले मिश्रा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में साफ कर दिया था कि वे किसी भी सूरत में 15 सितंबर के बाद अपने पद पर नहीं रहेंगे। हालांकि ‘विपक्ष’ के टॉप लीडर्स को ‘ईडी’ के पूर्व निदेशक मिश्रा को भुला नहीं सकेंगे। सूत्रों का कहना है कि रिटायरमेंट के बाद संजय मिश्रा की दूसरी पारी जल्द शुरू हो सकती है। संभव है कि मिश्रा को सरकार जिस पद पर बैठाए, वहां से वे जांच एजेंसी पर आसानी से नजर रख सकते हैं।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान को अब विपक्षी नेताओं ने गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर खुशी जाहिर करते हुए केंद्र सरकार को घेरा था। तब शाह ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी मना रहे लोग विभिन्न कारणों से ‘भ्रम’ में हैं। अब विपक्षी नेता शाह के ‘भ्रम’ की थ्योरी को समझते हुए ‘2024’ की दहलीज पर कहीं ज्यादा चौकन्ने हो गए हैं।

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कब और कैसे बढ़ता रहा मिश्रा का कार्यकाल

1984 बैच के आईआरएस अधिकारी, संजय मिश्रा को 19 नवंबर, 2018 को दो साल के कार्यकाल के लिए ईडी प्रमुख नियुक्त किया गया था। उनका कार्यकाल 13 नवंबर, 2020 को समाप्त होना था, मगर सरकार ने मिश्रा की नियुक्ति को लेकर नियमों में संशोधित कर दिया। नतीजा, ईडी निदेशक का कार्यकाल, दो से तीन वर्ष हो गया। नवंबर 2021 में मिश्रा के पद छोड़ने से पहले, राष्ट्रपति ने दो अध्यादेश जारी किए थे। इनमें से एक ‘दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम’, 1946 और दूसरा ‘केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम’, 2003 था। इनमें संशोधन किया गया। ईडी और सीबीआई निदेशक का कार्यकाल, उनकी नियुक्ति से पांच साल की अवधि तक बढ़ाया जा सकता है। यानी दो साल के कार्यकाल से अलग तीन साल के विस्तार की अनुमति दे दी गई। बाद में यह संशोधन, संसद में भी पारित हो गया। संजय मिश्रा को नवंबर 2021 में सेवा विस्तार मिल गया। इसके बाद नवंबर 2022 में दोबारा से मिश्रा को एक साल का सेवा विस्तार दे दिया गया।

क्या कोई और इस पद के काबिल नहीं है

मिश्रा के सेवा विस्तार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला, जया ठाकुर, साकेत गोखले और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा आदि शामिल थे। गत 11 जुलाई को इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की जमकर खिंचाई की। उस वक्त विपक्ष को केंद्र के खिलाफ बोलने का मौका मिल गया, जब सर्वोच्च अदालत ने मिश्रा के कार्यकाल विस्तार को ‘अवैध’ करार दे दिया। साथ ही यह भी कह दिया कि मिश्रा 31 जुलाई तक पद पर रहेंगे। इसके बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में संजय मिश्रा के कार्यकाल को 15 अक्तूबर तक बढ़ाने की मांग की। सर्वोच्च अदालत ने 27 जुलाई को बड़े सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए मिश्रा का कार्यकाल 15 सितंबर तक बढ़ा दिया। केंद्र ने अपनी याचिका में यह दलील दी थी कि वैश्विक मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण निगरानी संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) द्वारा समीक्षा के लिए उनकी सेवाओं की आवश्यकता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था, क्या विभाग में कोई और काबिल व्यक्ति नहीं है। संजय मिश्रा को 45 दिनों का सेवा विस्तार जो कि 15 सितंबर को खत्म होना था, दे दिया गया। इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि इसके बाद मिश्रा के सेवा विस्तार के आवेदन पर विचार नहीं होगा। संजय मिश्रा, 15-16 सितंबर, 2023 की मध्यरात्रि से प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक पद पर नहीं रहेंगे।

अमित शाह ने कही थी ‘भ्रम’ होने की बात

संजय मिश्रा ने बतौर ईडी निदेशक, 4 साल और 10 महीने तक काम किया है। सुप्रीम कोर्ट ने जब 11 जुलाई को अपने फैसले में कहा कि ईडी निदेशक, संजय मिश्रा का तीसरा सेवा विस्तार अवैध है, तो विपक्षी दलों के नेताओं ने खुशी जाहिर की थी। सर्वोच्च अदालत के फैसले को लेकर उन दलों ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा था। सत्ता पक्ष की ओर से विपक्ष पर पलटवार करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था, ये महत्वपूर्ण नहीं है कि ईडी का निदेशक कौन है, क्योंकि जो कोई भी इस पद पर होगा, वह विकास विरोधी मानसिकता रखने वाले परिवारवादियों द्वारा बड़े पैमाने पर किए गए भ्रष्टाचार पर नजर रखेगा। ईडी निदेशक को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी मना रहे लोग विभिन्न कारणों से ‘भ्रम’ में हैं। इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा, सीवीसी (केंद्रीय सतर्कता आयोग) अधिनियम में संशोधन, जिसे संसद की ओर से विधिवत पारित किया गया था, उसे बरकरार रखा गया है।

विपक्ष के कितने नेता रहे निशाने पर

संजय मिश्रा के कार्यकाल के दौरान ईडी के निशाने पर आने वाले विपक्षी नेताओं में कांग्रेस नेता सोनिया और राहुल गांधी, पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम, मल्लिकार्जुन खरगे, पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन बंसल, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, कर्नाटक के डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार, राकांपा संस्थापक शरद पवार, महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख, जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती शामिल रहे। रणदीप सुरजेवाला का कहना था कि प्रधानमंत्री मोदी ईडी जैसी एजेंसियों का दुरुपयोग राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ करते आ रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को प्रताड़ित किया गया है। ईडी के निशाने पर लालू प्रसाद यादव, मायावती, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और तेलंगाना के सीएम की बेटी के. कविता से लेकर अनेक विपक्षी नेता भी रहे हैं। बहुत से नेताओं को अभी तक क्लीन चिट नहीं मिली है। किसी के पास पूछताछ के लिए ‘समन’ जा रहे हैं, तो कोई सलाखों के पीछे पहुंच गया है। टीएमसी के नेताओं से भी पूछताछ हो रही है। एनसीपी और आरजेडी के नेता भी ईडी से नहीं बच सके।

कई विपक्षी दलों ने पीएम मोदी को लिखा था पत्र

केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाने वाली कई विपक्षी पार्टियों ने कुछ माह पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी थी। इनमें टीएमसी, आप, आरजेडी, नेशनल कांफ्रेंस, केसीआर की पार्टी, सपा और उद्धव बालासाहेब ठाकरे (यूबीटी) आदि दल शामिल थे। इन सभी दलों के नेता जांच एजेंसियों के निशाने पर रहे हैं। अरविंद केजरीवाल ने कहा, हमारे देश के प्रधानमंत्री ने ठान लिया है कि अगर भाजपा को वोट नहीं दोगे और किसी दूसरी पार्टी को वोट दोगे, तो उस सरकार को किसी भी हाल में काम नहीं करने दिया जाएगा। किसी राज्य में दूसरी पार्टी की सरकार बनती है तो उसके नेताओं के पीछे ईडी और सीबीआई छोड़ दी जाती है।

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