District Beejapur

Teachers day special : अंधियारे गाँवो में शिक्षकों की मेहनत से आलोकित हो रहा बच्चों का कल… एक दिन ना पहुँच पाए  तो स्कूल में आ जाती है तालाबन्दी की नौबत… इस चिंता में रोज चलते हैं मीलों पैदल…

P. रंजन दास. बीजापुर.

बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिले इसलिए पिछले कई सालों से भैरमगढ़ ब्लाक के सबसे सुदूर आदवाड़ा, जारा मोंगिया और इदेर के तीन शिक्षक मीलों पैदल चलकर स्कूल पहुँचते है और बच्चों में शिक्षा की अलख जगाते है। इन शिक्षकों के नाम क्रमशः मिथिलेश जोयल, सुरेश राजपूत और मैतुराम नाग है, जो पिछले कई सालों से शिक्षक होने का फर्ज पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं।
मिथिलेश जोयल स्कूल पहुँचने करीब 3 किलोमीटर, सुरेश 6 किलोमीटर तो वही मैतुराम 8 किलोमीटर पैदल चलते है।
भैरमगढ़ ब्लाक उक्त तीनों गाँव मूलभूत सुविधाओं से वंचित है, सड़क नही है इसलिए ग्रामीणों के साथ शिक्षक को दायित्व निर्वहन के लिए पैदल चलने की परेशानी उठानी पड़ती है, बच्चों के लिए पाठ्य सामग्री से लेकर गणवेश जैसी सुविधाओं का बोझ भी ये अपने कंधो पर उठाते है। खासकर बरसात के दिनों में मुश्किलें और भी बढ़ जाती है जब पहुँच इलाके तक मोटरसाइकिल भी कीचड़ सनी सड़क पर फिसलन से ठीक तरीके से सरपट दौड़ भी नही पाती।
तीनों स्कूलों में आदवाड़ा प्राइमरी स्कूल 1984 को शुरू हुआ था, जबकि जारा मोंगिया और इडेर 1997 में शुर हुआ। शिक्षक बताते है कि पहुँच विहीन इलाका होने से एक नही दो नही बल्कि दर्जनों परेशानी से वे घिरे हुए हैं, सड़क, मोबाइल कनेक्टिविटी जैसी अत्यावश्यक सेवाओं के अभाव तो है ही, साथ ही स्कूल भी सुविधा विहीन है, तीनों ही स्कूल में बमुश्किल 10 से 12 बच्चे इस समय पढ़ रहे हैं, और तीनों स्कुल ही एकल शिक्षक है, अगर शिक्षक एक दिन भी स्कूल ना जाये तो बच्चों की पढ़ाई उस दिन बाधित हो जाती है, ऐसे में यहाँ एक शिक्षक पर ही पूरे गाँव के बच्चों का भविष्य निर्भर है, हालांकि अथक परिश्रम, पेशे के प्रति पूरी ईमानदारी के बाबजूद और शिक्षकों के लिए प्रेरणा बने मिथिलेश, सुरेश और मैतुराम को उनके निष्ठाभाव के लिए अब तक उन्हें सम्मान का हकदार नही समझा गया, जिसका तीनों शिक्षकों को जरा सा मलाल नहीं है, इनका कहना है कि ना सिर्फ वे परिस्थितियों से जूझ रहे हैं, बल्कि ग्रामीणों के साथ बच्चों को भी परेशानी उठानी पड़ती है, बाबजूद दायित्व के प्रति समर्पित शिक्षक फर्ज को बोझ ना मानते हुए समाज के प्रति जिम्मेदारी बताते है, हालांकि अंदरूनी और पहुचविहीन इलाका होने से शिक्षा से जुड़ी मौलिक और मूलभूत सुविधाएं वहाँ नही पहुँच पाई है फिर भी तीन शिक्षकों की लगन, निष्ठा के बूते भैरमगढ़ के इस अंधियारे इलाके में शिक्षा का प्रकाश बच्चों के भविष्य को आलोकित अवश्य कर रहा है।

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