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संपत्ति में महिलाओं के अधिकार पर बोला सुप्रीम कोर्ट, यह तो भेदभाव है…

इंपेक्ट डेस्क.

भारत में महिला सशक्तीकरण की तमाम पहलों के बीच अभी भी 65 साल पुराना एक कानून ऐसा है जो संपत्ति के मामले में महिला और पुरुषों में भेदभाव करता है। सोमवार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के भेदभावकारी प्रावधान पर केंद्र से उसकी राय तलब की है। दरअसल, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के मुताबिक, यदि किसी शादीशुदा निसंतान पुरुष का निधन हो जाए तो उसकी संपत्ति निर्विवाद रूप से उसके माता-पिता की हो जाती है, लेकिन अगर विधवा निसंतान महिला का निधन हो जाएगा, तो उसकी संपत्ति (माता-पिता से मिली संपत्ति के अलावा) उसके सास-ससुर या रिश्तेदारों की होती है।

इसी मसले को एमिकस क्यूरी मीनाक्षी अरोड़ा ने सुप्रीम कोर्ट के सामने उठाया। टीओआई की खबर के मुताबिक, मीनाक्षी अरोड़ा ने जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की बेंच के सामने संपत्ति उत्तराधिकारी अधिनियम में इस भेदभाव का मामला उठाया। 

बेंच ने, विधवा महिला के निधन के बाद उसकी संपत्ति पर सबसे पहला हक पति के माता-पिता और रिश्तेदारों का होना, साफ तौर पर भेदभावपूर्ण माना। बेंच ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से इस मसले पर चार हफ्तों के अंदर सरकार का रुख स्पष्ट करने को कहा।

खास बात यह है कि यदि निसंतान विधवा अपने माता-पिता से मिली संपत्ति को बेचकर, उन पैसों से नई संपत्ति खरीदती है, तो नई संपत्ति को उसके माता-पिता से मिली संपत्ति की श्रेणी में नहीं रखा जाता और न ही महिला की मौत के बाद उसके माता-पिता का उसपर अधिकार रहता है।

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