Editorial

देश में दरकती कांग्रेस को 99 पर खुश होना चाहिए या आत्मचिंतन करे?

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विशेष टिप्पणी। सुरेश महापात्र।

हिंदुस्तान की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के लिए 2024 का संदेश बहुत बड़ा है। 2019 में 56 सीटों पर सिमट चुकी कांग्रेस के लिए 53 सीटों की बढ़ोतरी निश्चित तौर पर पूरे संगठन के लिए उम्मीद बढ़ाने वाला है। इस अंक के साथ एक बड़ा संदेश यही है कि 2014 में भारी बहुमत से आई भारतीय जनता पार्टी के द्वारा दिया गया ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा खत्म होने जैसा है।

अब साफ है कि भाजपा के लिए 2019 जैसा जनादेश आने वाले 25 बरस तक रिपीट कर पाना काफी हद तक कठिन है। क्योंकि 25 बरस बाद जब हिंदुस्तान आजादी का शताब्दि उत्सव मना रहा होगा तब तक पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता के शिखर तक पहुंची भाजपा के लिए 40 बरस का दौर खड़ा रहेगा।

आने वाले 25 बरस में भाजपा अब हिंदुस्तान की समस्याओं के लिए 60 बरस का रोना रोने और कुछ नहीं करने का आरोप लगाने की जगह अपने 15 बरस के कार्यकाल के साथ आगे की उपलब्धियों को रेखांकित करने की चुनौती होगी। यह चुनौती कांग्रेस के सामने आजादी के बाद के 60 बरस से बहुत बड़ी होगी। वे किसी भी समस्या के लिए नेहरू, गांधी या कांग्रेस के आड़ में बच नहीं सकते।

2024 के जनादेश के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में गठित इंडिया गठबंधन ने यह साफ कर दिया है कि वह सत्ता हासिल करने की फिलहाल किसी तरह की कोशिश नहीं करेगी। चुनाव परिणाम के बाद बिहार में जेडीयू और आंध्र प्रदेश में टीडीपी की ओर से एक बार भी यह संकेत नहीं मिला कि वह एनडीए यानी नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस को छोड़कर इंडिया में शामिल हो सकते हैं। खैर 2024 का यह परिणाम कई मायनों में लगातार समीक्षा के केंद्र में है।

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए, पूरे दस बरस तक विपक्ष की हैसियत को तरसती कांग्रेस के लिए और क्षेत्रीय दलों में उत्तर प्रदेश में समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी, पश्चिम बंगाल तृणमूल कांग्रेस और कम्युनिस्ट और महाराष्ट्र शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शरद पवार गुट के तौर पर संघर्ष कर रही पार्टियों के लिए बड़ा संकेत छिपा है।

सबसे बड़ा संकेत कांग्रेस के लिए दिखाई दे रहा है। कांग्रेस पूरे देश में किसी भी राज्य में अपने दम पर केरल, पंजाब को छोड़कर किसी क्षेत्रीय दल से ज्यादा सीट हासिल करने में कामयाब नहीं हो सकी है। पूरे देश में कांग्रेस के पक्ष में करीब पौने दो प्रतिशत वोट बढ़ा है पर अभी भी वह सत्तारूढ़ भाजपा के वोट प्रतिशत से करीब 16 प्रतिशत पीछे खड़ी है।

फिलहाल जो माहौल दिखाई दे रहा है मौजूदा परिणाम को देखकर जिसमें कांग्रेस के हिस्से महज 99 सीटें हासिल हुईं है पूरी पार्टी फुलकर कुप्पा है। इस तरह से कुप्पा होने से पार्टी को 2014 के हालत में आने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। कांग्रेस के लिए यह समय आल्हादित होकर खुशी से झूमने की बजाय आत्मचिंतन का है। किसी समय पूरे देश में अपने दम पर दो तिहाई बहुमत के साथ सरकार चलाने वाली पार्टी की यही दुर्दशा है कि इस समय बिना बैशाखी वह कहीं खड़ी होने की स्थिति में नहीं है।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बाद भी कांग्रेस का हाल दलदल में फंसे किसी बेजुबान जैसा ही है। देश की राजधानी में कांग्रेस का संगठन अपने दम पर या बैशाखी के दम पर भी एक भी सीट हासिल नहीं कर सका इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होना चाहिए भला?

राजनीति में अपनी दुश्वारियों का रोना छोड़कर कांग्रेस को यह चिंतन करना चाहिए कि उसके द्वारा घोषित प्रत्याशियों ने मैदान क्यों छोड़ दिया? क्यों वे धुर विरोधी दल में पार्टी का टिकट छोड़कर शामिल हो गए? क्यों मध्यप्रदेश में जहां पांच बरस पहले सरकार थी अब सब कुछ नाश हो चुका है?

क्यों छत्तीसगढ़ में एक ही सीट पर जीत हासिल हो सकी? क्यों उत्तराखंड और हिमाचल में सुपड़ा साफ हो गया? क्यों नार्थ—ईस्ट में कांग्रेस नहीं दिखाई दे रही है? क्यों महाराष्ट्र हो या उत्तरप्रदेश कम सीटें जीतकर भी फूलकर कुप्पा होने की कोशिश की जा रही है? बंगाल में कांग्रेस की हालत इतनी खराब कैसे हो गई है? कर्नाटक में सरकार होने के बाद भी सरकार के मुताबिक जनादेश हासिल करने में क्यों पिछड़ गई?

आप यदि यह रोना नेशनल मीडिया के सामने रोएंगे कि आपके खाते सीज कर दिए गए! तो यह आपकी नैतिक जिम्मेदारी है कि देश के कानून का पालन करते हुए राजनीतिक दल चलाया जाए ना कि पुरानी पार्टी होने के कारण आपको निशाने पर लिया गया है इसका रोना रोया जाए। राजनीति में सत्तारूढ़ दल तो अपनी सीमाएं लांघते ही हैं। इसमें कोई नई बात तो दिखाई नहीं देती। आपके खिलाफ यदि सरकार के स्तर पर इस तरह से दबाव बनाया गया तो भी आम जनमानस आपके पक्ष में पूरी तरह से क्यों खड़ा नहीं हो सका?

ऐसे बहुत सारे सवाल हैं। राहुल गांधी की सफलता बस इतनी ही है कि वे 10 बरस में उनके खिलाफ बनाए गए नरैटिव को कुछ हद तक तोड़ने में ही कामयाब हो सके हैं। जिस दिन कांग्रेस अपने दम पर 250 का आंकड़ा पार कर दिखाएगी तब ही माना जाएगा कि अब राहुल का साथ देने के लिए जनता मन बना चुकी है। जिस दिन आम चुनाव में कांग्रेस को अपने दम पर 272 सीटें हासिल होंगी तब ही माना जाएगा कि आजादी की लड़ाई लड़ने वाली कांग्रेस पर जन मानस ने पूरा भरोसा कर लिया है। इसके लिए संगठन, नैतिकता, चरित्र, अनुशासन और नीति के साथ कांग्रेस को सार्वभौमिक स्थापित करना सबसे बड़ी चुनौती है।

छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के खिलाफ कांग्रेस आदिवासियों के जुल्म का आरोप लगा रही है पर जमीन पर कवासी लखमा जैसे वरिष्ठ आदिवासी विधायक और पूर्व मंत्री को करारी हार मिलती है। जिस दंतेवाड़ा से कभी महेंद्र कर्मा ने नक्सलवाद के खिलाफ अपनी शहादत दे दी वहां से कांग्रेस पूरी तरह से दरक गई है। मतदान से पहले बस्तर लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस में भगदड़ मची महापौर समेत पार्टी का बड़ा कुनबा भाजपा में शामिल हो गया वहां ऐसी स्थिति तक पहुंचाने में किसका योगदान है?

हसदेव जंगल के कटने को लेकर आदिवासियों का विरोध भाजपा के दौर से किया जा रहा था। कांग्रेस सत्ता में आई और उसने क्यों पारदर्शी फैसले नहीं लिए। कांग्रेस की सिस्टम के बड़े चेहरे जेल में हैं बेल नहीं मिल रही है। यह तो साफ दिखाई दे रहा है कि पूरे पांच बरस तक भूपेश बघेल ने हवा में ही सरकार चलाने का काम किया। जमीन दरकती रही और वे खुद होकर भी दरकाते ही रहे…।

छत्तीसगढ़ में रायपुर सीट से रिकार्ड बहुमत के साथ बृजमोहन अग्रवाल की जीत को कांग्रेस क्या कहकर नकारेगी? पांच साल पूर्ण बहुमत की सत्ता में रहने के बाद कांग्रेस का यह बुरा हाल क्या रेखांकित कर रहा है? शराब, सट्टा और कोयला लेव्ही वसूली का मामला क्या कांग्रेस को शर्मिंदा नहीं कर रहा है? मध्यप्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं की बड़ी पराजय से क्या संकेत मिल रहा है? क्या कांग्रेस को नहीं लगता है कि सूरत, इंदौर और पुरी में जो हुआ उसके लिए शर्मसार हुआ जाए?

सच्चाई यही है कि भाजपा फिलहाल कांग्रेस से बहुत आगे खड़ी है। हर पायदान पर, सभी मोर्चों पर, हर तरीके से भारतीय जनता पार्टी पूरे देश में अपना स्थाई ठिकाना बनाने में कामयाब होती दिख रही है। यह समझने की दरकार है कि जनसमर्थन की दरकती जमीन पर खड़े होकर कांग्रेस का सफल होने का अट्टाहास कांग्रेस को नुकसान ही पहुंचाएगा। चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस के प्रवक्ता इस तरह का व्यवहार मीडिया के साथ कर रहे हैं मानों जंग जीत ली हो… एनडीए नेतृत्वकर्ता नरेंद्र मोदी की यह टिप्पणी विचार योग्य ही है कि ‘जीत हमें मिली है और विपक्ष खुशी क्यों मना रहा है?’

सही मायने में अब कांग्रेस के हिस्से चिंतन का अवसर जनता ने दिया है। कांग्रेस फूलकर कुप्पा होने की जगह अपनी जड़ से जुड़ने की कोशिश करे। चुनाव के समय टिकट नहीं मिलने पर पार्टी छोड़ने वालों के लिए कड़ा कदम उठाए। चुनाव के दौरान पार्टी के साथ दगा करने वालों को पहचानें और निकाले। चुनाव के समय जिस चीज की कमी रह गई उसका सुधार कैसे किया जाए इस पर फोकस करे।

अब कांग्रेस के लिए अपने दफ्तर में बैठकर यह गंभीरता से विचार करना चाहिए कि लगातार दो बार भारी—भरकम आर्थिक सहायता की घोषणा के बाद भी लोग उस पर भरोसा करने से क्यों कतरा रहे हैं। यानी यह मान लेना चाहिए कि गरीबों को भाजपा सरकार से मिल रही पांच किलो अनाज पर्याप्त लग रही है आपका दस किलो का प्रस्ताव बेअसर है। यह भी मान लेना चाहिए कि लोग आपसे एक लाख रुपए सालाना लेने की बजाय जो मिल रहा है उसी में खुश हैं।

सोशल मीडिया में अयोध्या में भाजपा प्रत्याशी के पराजय के बाद भाजपा के भीतर जो बेचैनी दिखाई दे रही है। कांग्रेस कई राज्यों में सुपड़ा साफ होने के बाद भी बेचैन क्यों नहीं है? यही सबसे बड़ा सवाल है और यही सवाल कांग्रेस को तलाश करना चाहिए! जानते हैं क्यों भाजपा के लिए एक—एक सीट का गणित मायने रखता है और कांग्रेस के लिए? विचार जरूर करना चाहिए…

 

 

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