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योगी सरकार के बुलडोजर एक्शन पर बवाल… SC के 12 रिटायर जजों ने लिखी CJI को चिट्ठी… हिंसा के आरोपियों पर बुलडोजर की कार्रवाई का विरोध…

इम्पैक्ट डेस्क.

प्रयागराज हिंसा के मुख्य आरोपी जावेद के घर पर बुलडोजर चलने पर बवाल शुरू हो गया है. यह मामला सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट की चौखट तक पहुंच गया है. बुलडोजर की कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज समेत 12 लोगों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) को याचिका भेजी और मामले पर सुनवाई की मांग की है. 

चिट्ठी लिखने वालों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी, जस्टिस वी गोपाला गौडा, जस्टिस ए के गांगुली, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस ए पी शाह, मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस के चंद्रू, कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मोहम्मद अनवर, वरिष्ठ वकील शांति भूषण, इंदिरा जयसिंह, चंदर उदय सिंह, आनंद ग्रोवर शामिल हैं.

दरअसल, 10 जून को जुमे की नमाज के बाद प्रयागराज में जो हिंसा हुई, उसके मास्टरमाइंड बताए जा रहे जावेद मोहम्मद का घर प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी ने 12 जून को महज 4 घंटे के भीतर ध्वस्त कर दिया. इस बुलडोजर कार्रवाई पर तमाम सवाल उठ रहे हैं. पूछा जा रहा कि अगर आरोपियों को इसी तरीके से सज़ा देनी है तो अदालतों की ज़रूरत क्या है?

कानून की दलीलों और संविधान की दुहाई देते हुए इस बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया गया है. जमीयत उलेमा ए हिंद ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए कहा है कि कोर्ट यूपी सरकार को निर्देश दे कि उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना आगे कोई विध्वंस नहीं किया जाए.

जमीयत ने अपनी याचिका में कहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने कानूनों और नगरपालिका के नियमों का उल्लंघन कर घरों को ध्वस्त किया है, इसके लिए जिम्मेदार आधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए जाएं. सुप्रीम कोर्ट के ही सीजेआई को 12 रिटायर्ड जस्टिस और वकीलों ने चिट्ठी लिखकर मामले की तत्काल सुनवाई की मांग की है.

पत्र याचिका में सुप्रीम कोर्ट से उत्तर प्रदेश में नागरिकों पर राज्य के अधिकारियों द्वारा हाल ही में हुई हिंसा और दमन की घटनाओं का स्वत: संज्ञान लेने की गुहार लगाई गई है. इसमें कहा गया है कि प्रदर्शनकारियों के घरों-दुकानों को बिना किसी नोटिस या कार्रवाई के ध्वस्त किया जा रहा है, अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय का पुलिस द्वारा पीछा किया जा रहा है. 
पत्र याचिका में कहा गया, ‘सत्ताधारी प्रशासन द्वारा इस तरह की क्रूर कार्रवाई कानून के शासन का अस्वीकार्य टूटना है और नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन है. ये संविधान और राज्य द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का मजाक बनाता है.’

दूसरी तरफ जावेद मोहम्मद की पत्नी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर पीडीए के खिलाफ कार्यवाई की गुहार लगाई है. जावेद की बेटी का भी कहना है कि ये मकान उनके पिता जावेद के नाम नहीं बल्कि नानी परवीन फातिमा के नाम है और उनके नाना ने ये मकान शादी में गिफ्ट किया था. 

दूसरी तरफ पीडीए नक्शा न पास होने की वजह से इस मकान को अवैध बता रहा है. इस पर सुमैया का सवाल है कि 2001 से नगर निगम पानी और घर का टैक्स लेता आ रहा है तो अचानक ये घर अवैध कैसे हो गया? वहीं, 6 वकीलों ने जावेद की तरफ से इलाहाबाद हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस को पत्र के जरिए दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की अपील की है.

साथ ही अवैध रूप से ध्वस्त किए जाने को लेकर मुआवजा दिलाने के लिए भी कहा गया है. मकान ढहाए जाने की कार्रवाई को इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश गोविंद माथुर ने गलत बताया है. उत्तर प्रदेश रेगुलेशन बिल्डिंग ऑपरेशन एक्ट-1958 गैरकानूनी इमारतों पर एक्शन की इजाजत देता है. पहले बिल्डिंग के मालिक को नोटिस भेजा जाता है.

नोटिस का जवाब 2 महीने के अंदर आना चाहिए, लेकिन वक्त देने का हक अथॉरिटी को है. PDA का दावा है कि पिछले महीने की 10 मई को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था. 24 मई को सुनवाई की तारीख तय की गई थी, लेकिन जावेद या उसके वकील हाजिर नहीं हुए, कोई दस्तावेज भी नहीं दिया. 25 मई को घर गिराने का आदेश पारित किया गया.

PDA के मुताबिक, 25 मई की नोटिस में लिखा था कि 9 जून तक घर को ध्वस्त कर उसे सूचित किया जाए, जब ऐसा नहीं हुआ तो 12 जून को सुबह 11 बजे तक घर खाली करने को कहा गया और फिर बुलडोजर एक्शन शुरू हो गया. मगर इस दावे पर योगी सरकार को घेरने वाले असदुद्दीन ओवैसी ने सवाल उठाया है. 

हिंसा आरोपी बनाए गए जावेद के पांच बच्चे हैं, जिसमे तीन बेटियां और दो बेटे हैं. यशफीन, आफरीन, सुमैया तीन बेटियां हैं जिनमें से यशफीन और दो बेटों की शादी हो चुकी है. मकान टूटने के बाद दो बेटियां अपनी मां के साथ अपने रिश्तेदारों के यहां रह रही हैं.

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