Articles By Name

बिटिया के जन्मदिन पर पत्रकार कमल शुक्ला का खुला पत्र… मैंने तुम्हें सैद्धान्तिक पत्रकारिता के खतरे से अवगत कराया था…

कमल शुक्ला. फेसबुक वॉल से साभार।

मेरी प्यारी बिटिया शुभा,

मैं तुमसे बहुत क्षमा प्रार्थी हूं !! अक्सर जब भी तुम्हारा जन्मदिन आता है मैं किसी न किसी मुसीबत या किसी व्यस्तता की वजह से उस में शामिल नहीं हो पाता हुं । कल शाम तक तो मुझे याद भी नहीं था कि तुम्हारा जन्मदिन है, शाम को तुमने खुद मुझे हैप्पी बर्थडे कह कर याद दिलाया । कल लगा कि सही में स्वार्थी हो गया हूं अपनी लड़ाई के चक्कर में, अपनी बिटिया के लिए, घर के लिए समय नहीं निकाल पाता हुं ।

तुमने कहा कि जन्मदिन उसी दिन मनाऊंगी जब मेरा अनशन खत्म होगा, और मुझे न्याय मिलेगा । मुझे नहीं पता यह लड़ाई और कब तक चलेगी ? तुम उस दिन रैली में शामिल भी हुई थी, मेरे बहुत से मित्रों ने तुम्हारा फोटो शेयर किया है । तुमने पहले भी मुझे कहा था कि मुझे अपने पिता की तरह पत्रकारिता करनी है मैंने तुम्हें सैद्धांतिक पत्रकारिता के खतरे से भी अवगत कराया था, फिर भी उस दिन जिद करके तुम रैली में शामिल हुई और तुमने अपने पत्रकारिता के अस्तित्व के लिए एक बड़े संघर्ष को अपने सामने देखकर अब अपनी पत्रकारिता की शुरुआत भी कर दी, तुम्हे ढेर सारा बधाई !!

मुझे पता है तुम्हारे समय में खतरा और ज्यादा बढ़ चुका रहेगा पूरी दुनिया में सभी सरकार सारे संसाधन अपनी मुट्ठी में कैद करने वाले सेठों के हाथों में जाते जा रही है । सत्ता में शामिल लुटेरों की ताकत और मजबूत होती जा रही है । तुमने मुझसे बहुत कुछ जाना है बहुत कुछ सीखा है और तुम्हें अभी बहुत कुछ और जानना है, तुमको अपने ढंग से भी दुनिया को देखना हैं, मुझे उम्मीद है कि अगर इस रास्ते पर चलती रहोगी तो हमेशा वैज्ञानिक सोच के साथ जनपक्षीय पत्रकारिता की अलख जगाए रहोगी ।

एक बार फिर कहूंगा पहले भी कहते रहा हूं कि पत्रकारिता के लिए देश का संविधान, समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र, इतिहास, अर्थशास्त्र और सबसे ज्यादा जरूरी विज्ञान को पढ़ना और जानना बहुत जरूरी है । ऊंच-नीच, जाति-धर्म, अमीर-गरीब, रंग और लिंग भेद के पीछे की राजनीति को समझना होगा।

फिलहाल एक गिफ्ट है तुम्हारे लिए जो पिछले सप्ताह ही घर पहुंच गई है, पेरियार की तीन पुस्तक का सेट जाति व्यवस्था और पितृसत्ता’, ‘धर्म और विश्व दृष्टि’ तथा ‘सच्ची रामायण’, मैं बिल्कुल स्वस्थ हूं मेरी चिंता मत करना बल्कि अपना मन इस पुस्तक को पढ़ने में लगाना। अन्याय के खिलाफ लड़ने की आदत बनाए रखना, बहुत तकलीफ़ होगी, बहुत समस्याएं आएंगी और यह आदत दूसरे कई साथियों में बनाने का भी लक्ष्य रखना।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!