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विकास के नाम पर खत्म हो रही हरियाली… 40 साल में 2.80 लाख हेक्टेयर जंगल खत्म…

इम्पैक्ट डेस्क.

मध्य प्रदेश में विकास के नाम पर हरियाली खत्म हो रही है। 40 साल में प्रदेश में विकास के नाम पर 2.80 लाख हेक्टेयर जमीन से जंगल खत्म हो गए। इसकी क्षतिपूर्ति में लगाए पौधे अधिकतर पनप नहीं पाए और जो लगाए वह जंगल नहीं बन पाए। जिसके नकारात्मक प्रभाव तेजी से देखने को मिल रहे हैं। 

वन विभाग के अनुसार प्रदेश में कुल 94 लाख 68 हजार 900 हेक्टेयर भूमि है। जबकि 1980 से अब तक 40 साल में 2.80 लाख हेक्टेयर भूमि के जंगल तालाब, हाईवे के विकास के नाम पर खत्म हो गए। इनकी क्षतिपूर्ति में पौधरोपण किया गया, लेकिन उनका सर्वाइवल रेट बहुत कम है। हालांकि विभाग के अधिकारी 50 से 70 प्रतिशत सर्वाइवल रेट बताते हैं, जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि सब खानापूर्ति हो रही है। यहीं कारण है कि 2021 की वन सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार बहुत घना जंगल 6676 वर्ग किमी से 6665 वर्ग किमी हो गया है। यह कमी मध्यम घने जंगल में भी रिपोर्ट हुई है। जो 132 वर्ग किमी कम हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि घटती हरियाली का असर जलवायु परिवर्तन के रूप में देखने को मिलेगा। पेड़ कटने से कार्बनडाइ ऑक्साइड गैस की सांध्रता में वृद्धि होगी। 

एक दशक में हीट वेव दोगुनी हुई 
पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली सीएसई संस्था की रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में देश में 11 मार्च से 18 मई के बीच सबसे ज्यादा 38 हीट वेव आई। जो कि 2010 में हीट वेव की संख्या 20 से दोगुनी हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि अप्रैल में आने वाली हीट वेव के मार्च में आने से गेंहू की फसल का उत्पादन अनुमान से कम हुआ। अचानक गर्मी बढ़ने से मार्च में कोयले की डिमांड बढ़ने से बिजली संकट भी गहराया। 

तापमान में हो रही बढ़ोतरी 
पर्यावरण विद डॉ. सुभाष सी पांडेय ने कहा कि राजधानी में वायु प्रदूषण की कोई समस्या नहीं थी, लेकिन अब धीरे धीरे समस्या बढ़ते जा रही है। शहर में बढ़ती जनसंख्या और वाहनों के दबाव, विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई और बेतरतीब शहरीकरण ने समस्या को गंभीर बना दिया है। शहर का तापमान 44 से 45 डिग्री के पार जा रहा है। 

सिंगरौली में सबसे ज्यादा प्रदूषण 
प्रदेश में एयर क्वालिटी इंडेक्स में सिंगरौली, कटनी, मण्डीदीप में खनन और उद्योग के कारण वायु तेजी से खराब हो रही है। एमपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की 2020-21और 2021-22 की रिपोर्ट कह रही है। पांडे ने कहा कि शहरों के आसपास नरवाई जलाने के मामले बढ़ रहे है। अलग-अलग कारणों से प्रदेश की हवा भी तेजी से खराब हो रही है।

वार्षिक नदियों बन रही सीजनल 
प्रदेश में एक दशक में ग्राउंड वॉटर 2 से 3 मीटर तक नीचे चला गया है। यह समस्या प्रदेश के हर क्षेत्र से सामने आ रही है। सुभाष सी पांडेय ने कहा कि वार्षिक नदियां सीजनल बन रही हैं। उन्होंने कहा कि वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट बताती है कि नर्मदा अलार्मिंग स्टेज में आ गई है। इसका कारण अवैध रेत खनन, नदियों की सफाई नहीं होना, नदियों के आसपास सघन वन संरक्षण नहीं होने से जैव विविधता और जलीय बायोडायवर्सिटी खत्म हो रही है। उन्होंने कहा कि नदियों, तालाब के किनारे ग्रीन बेल्ट का प्रावधान है, लेकिन इसको गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। 

पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट बताती है कि होशंगाबाद में कई जगह नर्मदा नदी का पानी आचमन लायक भी नहीं है। इसका कारण नदी में सीधे ड्रेनेज का पानी मिलना है। यहीं कारण है कि पानी की गुणवत्ता बी कैटेगिरी की दर्शाई जाती है। नदी के किनारे 6 साल पहले 2.89 करोड़ पौधे लगाए गए थे। विभाग का दावा है कि इसमें से 1.62 करोड़ जीवित हैं। जबकि पर्यावरण विशेषज्ञ कहते हैं कि विभाग का दावा झूठा है।

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