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‘छत्तीसगढ़ के खजुराहो’ को बचाने की कोशिश : भोरमदेव मंदिर का सुदृढ़ीकरण शुरू, रिसते पानी को रोकने पहुंचे विशेषज्ञ…

इम्पैक्ट डेस्क.

मंगलवार यानी चार जुलाई से सावन मास शुरू हो रहा है। इस दौरान भक्तों की भीड़ शिव मंदिर में जलाभिषेक के लिए उमड़ेगी। इसके बीच छत्तीसगढ़ के कबीरधाम स्थित भोरमदेव मंदिर को बचाने का प्रयास शुरू हो गया है। ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ कहे जाने वाले इस मंदिर के अस्तित्व पर बारिश के दौरान छत व दीवारों से रिसता पानी खतरा बनने लगा है। इसे देखते हुए मंदिर के सुदृढ़ीकरण का तकनीकी कार्य पुरातत्व और संस्कृति विभाग के कुशल कामगार कर रहे हैं। वर्तमान में नींव और रेलिंग के लिए काम पूरा कर लिया गया है। इसे देखने के लिए रविवार को विशेषज्ञों की टीम पहुंची थी।

मंदिर की छत से पुराना प्लास्टर निकाल मूल रूप में लाएंगे
मंदिर में पहुंची पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग की टीम ने बताया कि, प्राचीन भोरमदेव मंदिर को मजबूत और संरक्षित के लिए तकनीकी रूप से कार्य किया जा रहा है। इसके लिए चरणबद्ध और पुरातत्व विभाग के सुरक्षा मानकों के अनुरूप ही काम हो रहे हैं। नींव सुदृढ़ीकरण और रेलिंग कार्य पूरा कर लिया गया है। इसके बाद मंदिर के अंदर हो रहे पानी के रिसाव को रोकने के लिए मंडप की छत के ऊपर बंगाल के कुशल कारीगर प्लास्टर कर रहे हैं। इसे पहले किया गया था, लेकिन क्षतिग्रस्त हो चुका था। कारीगरों ने पहले पुराने प्लास्टर को निकाला और उसे मूल रूप में लेकर आए थे।

इसकी सफाई कर उसमे पुरानी पुरातत्व विधि से चूना, गुड़, बेल, कत्था, मेथी, सुरखी इत्यादि का मिश्रण कर आवश्यकता अनुसार ढाल बनाते हुए वाटर प्रूफिंग का कार्य किया जा रहा हैं। मिश्रण छत पर डालने के बाद विशेषज्ञ कारीगर स्पेशल लकड़ी के औजार से उसकी कुटाई करेंगे। उसे उस स्थिति तक लेकर जाएंगे कि उसमें हवा नहीं निकल जाए। इसके बाद छत पर पानी भरकर रिसाव का परीक्षण किया जाएगा। कलेक्टर जन्मेजय महोबे ने मंदिर परिसर में किए जा रहे चरणबद्ध कार्यों की जानकारी ली। बताया कि कुशल कारीगर विशेषज्ञों की देखरेख में काम कर रहे हैं। 

बंगाल के कुशल कारीगरों से ले रहे काम 
पुरातत्व विभाग के सहायक अभियंता सुभाष जैन ने बताया कि मंदिर की छत का परीक्षण किया गया है। परीक्षण के बाद मूल छत को प्राप्त करने के लिए बिना क्षति किए बंगाल के कुशल कारीगर प्लास्टर को निकाल रहे हैं। उन्होंने बताया कि बंगाल के कारीगर देश के विभिन्न पुरातत्व स्थलों का सुदृढ़ीकरण कार्यं कर चुके हैं। इस कार्य को पुरातत्व विभाग के सहायक अभियंता स्थल पर उपस्थित होकर अपने मार्गदर्शन में करा रहे है। सभी कार्य मंदिर को बिना क्षति किए विशेष देखरेख में हो रहा है। ढलाई का कार्य घिरनी की सहायता से समान व मिश्रण को खींचकर किया जाएगा। जिससे यह पूर्ण रूप से सुरक्षित होगा।

एक हजार साल पुराना है भोरमदेव मंदिर
कबीरधाम जिले में मैकल पर्वत समूह से घिरा भोरमदेव मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है। मंदिर की बनावट खजुराहो और कोणार्क के मंदिर के समान है। यहां मुख्य मंदिर की बाहरी दीवारों पर मिथुन मूर्तियां बनी हुई हैं, इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है। मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि गोड राजाओं के देवता भोरमदेव थे और वे भगवान शिव के उपासक थे। शिवजी का ही एक नाम भोरमदेव है। इसके कारण मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा।

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