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58% आरक्षण रद्द करने का मामला : हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी राज्य सरकार… सर्व आदिवासी समाज का भी समर्थन…

इम्पैक्ट डेस्क.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सोमवार को आरक्षण पर बड़ा फैसला देते हुए राज्य के लोक सेवा आरक्षण अधिनियम को रद्द कर दिया है। इसकी वजह से अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 32% से घटकर 20% पर आ गया है। वहीं अनुसूचित जाति का आरक्षण 13% से बढ़कर 16% और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14% हो गया है। इसके सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव की वजह से प्रदेश का राजनीतिक माहौल गर्म है। इधर, राज्य सरकार ने इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में चुनौती देने का निर्णय लिया है। वहीं सर्व आदिवासी समाज भी अपील दाखिल करने की तैयारी कर रहा है।

अधिकारियों ने कहा, राज्य सरकार ने इस फैसले से असहमत होते हुए यह निर्णय लिया है कि इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील के माध्यम से प्रस्तुत किया जाएगा। राज्य सरकार का यह मानना है कि वर्ष 2012 में तत्कालीन सरकार ने इस मामले में समुचित रूप से तथ्य पेश नहीं किए थे। इसके बाद भी छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण प्रतिशत को देखते हुए राज्य सरकार इस फैसले से पूरी तरह असहमत है। राज्य सरकार का यह मानना है, इस निर्णय से राज्य के आरक्षित वर्ग में समुचित विकास का मार्ग रुकेगा।

बालोद सर्व आदिवासी समाज के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से दल्लीराजहरा के विश्राम गृह में मुलाकात की। इसमें बालोद सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष उमेदी राम गंगराले, पूर्व विधायक जनकलाल ठाकुर, गणेश राम ओटी, तुकाराम कोर्राम, प्रेम कुंजाम आदि शामिल थे। उन्होंने उच्च न्यायालय( हाईकोर्ट) द्वारा अनुसूचित जनजाति के आरक्षण से संबंधित फैसले पर पुनर्विचार हेतु लीगल टीम गठित करने की मांग रखी। मुख्यमंत्री ने आदिवासी समाज के विकास और हितों के संरक्षण के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने आश्वस्त किया।

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