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Editorial

चुनाव विष्लेशण : अब की बार 400 पार का नारा और मोदी – गारंटी कितनी असरदार…

दिवाकर मुक्तिबोध। अठारहवीं लोकसभा के पहले चरण के मतदान के  लिए अब चंद घंटे ही शेष हैं। 19 अप्रैल को21 राज्यों के 102 सीटों पर मतदान  होगा। ये चुनाव पिछले तमाम  चुनावों की तुलना में अधिक संघर्षपूर्ण एवं आत्मकेन्द्रित होने के साथ ही देश की राजनीति की नई दिशा भी तय करते नजर आएंगे। इस बार के चुनाव मुख्यतः ईडी की अति सक्रियता, दुर्भावना के साथ विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस को सभी तरफ से घेरने की क़वायद, एक मुख्यमंत्री को चुनाव  प्रचार के मौलिक अधिकार से  वंचित रखने की कोशिश तथा भाजपा

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तो क्या आईना दिखा रहे हैं डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव…?

दिवाकर मुक्तिबोध. छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार के पिछले साढ़े चार वर्षों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बाद यदि दूसरा कोई नेता या मंत्री विभिन्न कारणों से सर्वाधिक सुर्खियों में रहा है तो वे टी एस सिंहदेव हैं, सरकार के वरिष्ठ मंत्री और अब डिप्टी सीएम जिन्हें यह कुर्सी तब मिली जब राज्य विधानसभा चुनाव के लिए महज तीन चार माह ही शेष रह गए थे। 17 दिसंबर 2018 को भूपेश बघेल के सरकार की कमान संभालने के पहले और बाद में प्रदेश की राजनीति में यह खबर तैरती रही कि

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Articles By NameMuddaState News

बदल रही है छत्तीसगढ़ की राजनीति

दिवाकर मुक्तिबोध। छत्तीसगढ़ की राजनीति में पिछले कुछ समय से जो घटनाक्रम चल रहा है, वह इस बात का संकेत है कि प्रदेश की दो बड़ी राजनीतिक ताकतें आगामी विधानसभा चुनाव के लिए जोरदार युद्धाभ्यास कर रही हैं। उनकी तैयारियां बताती हैं कि तीन महीने बाद होने वाला पांचवां चुनाव यकीनन पिछले चार के मुकाबले अधिक संघर्षपूर्ण और दिलचस्प होगा।  2018 के चुनाव में कांग्रेस ने भारी भरकम विजय पायी थी। उसे अगले चुनाव में भी बरकरार रखना एक बड़ी चुनौती है जिसका दबाव उस पर है। 90 सीटों की

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डिप्टी बनने क्यों राजी हुए सिंहदेव! …तब वे सत्ता संघर्ष में कमजोर पड़ गए थे…

राजनीतिक विश्लेषण। दिवाकर मुक्तिबोध। वायदे के अनुसार जिसे अब सिंहदेव मीडिया की हवा बताते हैं, उन्हें जून 2021 में मुख्यमंत्री बना दिया जाना था लेकिन उस दौर के सत्ता संघर्ष में सिंहदेव कमजोर पड़ गए… छत्तीसगढ़ कांग्रेस की राजनीति में हाल ही में हुए बदलाव पर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी ने भले ही आलोचना की हो लेकिन मुद्दे की बात यह है कि वह पुनः हताशा की शिकार हो गई है। दरअसल कांग्रेस संगठन व सत्ता के बीच पिछले कुछ समय से जो अंदरूनी खींचतान चल रही थी, उसे देखते

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Articles By NameMuddaState News

भाजपा की नयी कवायद पुराने हटेंगे नये आएंगे…

दिवाकर मुक्तिबोध। छत्तीसगढ़ विधानसभा के इसी वर्ष नवंबर में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के संदर्भ में काफी समय से यह चर्चा है कि भारतीय जनता पार्टी अधिकांश सीटों पर नये चेहरों को मौका देगी। विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 90 है और वर्तमान में भाजपा के केवल 14 विधायक हैं। इन 14 विधायकों में हर किसी को पुन: टिकिट मिल ही जाएगी ,कहना मुश्किल है। यानी इनमें से भी कुछ का पत्ता कटने की संभावना है। शेष 86 सीटों में अधिकांशतः नये चेहरे होंगे अलबत्ता उन प्रत्याशियों पर पुनः दांव

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मिलना एक महान रचनाकार से…

एक मार्च को शैलेन्द्र नगर में विनोद जी के घर में उनसे मुलाकात हुई। उनका चेहरा देखा तो अनायास मुझे 60-62 वर्ष पूर्व के वे विनोद जी याद आ गए जिन्हें मैं राजनांदगांव के दिग्विजय कॉलेज परिसर के अपने मकान की विशाल खिड़की के पाटे पर बैठकर अपने घर की ओर पैदल आते देखा करता था। उन दिनों वे जबलपुर के कृषि महाविद्यालय के छात्र थे और जैसा कि उन्होंने अनेक बार अपने संस्मरणों में जिक्र किया है, वे नये-नये युवा कवि थे, कविताएं लिख रहे थे। छुट्टियों में जब

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Editorial

बीते 22 बरस और छत्तीसगढ़ के तीन चेहरे… कौन कितना प्रभावकारी…

दिवाकर मुक्तिबोध। बाइस वर्ष के छत्तीसगढ़ में  विधानसभा के नये चुनाव अगले साल दिसंबर में होंगे। राज्य का वह पांचवा चुनाव होगा। वर्ष  2000 के नवंबर में मध्यप्रदेश से पृथक होने के बाद बहुमत के आधार पर पहली सरकार कांग्रेस की बनी। अजीत जोगी नामित मुख्यमंत्री बने। जोगी सरकार का करीब तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के बाद नये छत्तीसगढ़ की पहली विधानसभा के लिए चुनाव  2003 दिसंबर में हुए। फिर 2008 , 2013 व 2018 के चुनाव के बाद अब पांचवें की प्रतीक्षा है। इस बीच यानी दो

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पुस्तक समीक्षा : एक सफ़र मुकम्मल… और दिवाकर! दिवाकर तो मेरे इतने अपने हैं कि क्या कहूं…

सुधीर सक्सेना। दिवाकर मेरे मित्र हैं। लगभग समवयस्क। कविता से उनका वास्ता कम है। गद्य से ज्यादा। गद्य में भी उन्होंने कहानियां इतनी ही लिखी हैं कि उन्हें ऊंगलियों पर गिना जा सके। हां, उन्होंने संस्मरण खूब लिखे हैं। अग्रलेखों की तो गिनती ही क्या! यूं तो वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी रहे, लेकिन यह अवधि अधिक सुदीर्घ नहीं रही। उन्हें प्रिंट मीडिया ज्यादा रास आया। प्रिंट मीडिया से उनके जुड़ाव का अंतराल चार दशकों से भी अधिक कालखण्ड में फैला हुआ है और आरोह-अवरोह भरे रोचक-रोमांचक दौरों को अपनी

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घट गया राज्य पुरस्कारों का महत्व… इन पुरस्कारों की यदि गरिमा स्थापित करनी हो तो प्रक्रिया में कुछ परिवर्तन करने होंगे…

दिवाकर मुक्तिबोध। आगामी एक नवंबर को नये राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ के 22 वर्ष पूर्ण हो जाएंगे। प्रत्येक वर्ष राज्योत्सव में सांस्कृतिक आयोजनों के अलावा किसी न किसी रूप में राज्य के विकास में विशेष योगदान देने वाले विद्वानों को राज्य अलंकरण से पुरस्कृत किया जाता है। प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कार्यकाल में 16 पुरस्कार दिए जाते थे जो भाजपा के पंद्रह वर्षों के शासन में बढकर बाइस हुए और अब कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार में इनकी संख्या बढाकर 36 कर दी गई हैं। यानी

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जसम सम्मेलन के बहाने कुछ बातें : जिस सांस्कृतिक जनक्रांति की बात की जाती है वह सभी वर्गों के लोगों को, सभी मेहनतकशों को शामिल किए बिना सफल नहीं हो सकती…

दिवाकर मुक्तिबोध। बस्तर के आदिवासियों के हितों के लिए वर्षों से संघर्षरत सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय सम्मेलन में जो विचार व्यक्त किए हैं, वे फासीवाद के मुद्दे पर बौद्धिक तबके की कथित सक्रियता पर सवाल खडे करते हैं। उन्होंने कहा-फासीवाद का सबसे पहले हमला आदिवासियों पर होता है। वे उसका सामना करते हैं। बाद में किसान व मजदूर मुकाबला करते हैं। गरीब व निम्न वर्ग पर जब हमला होता है तो वह अपने तरीक़े से उसके खिलाफ संघर्ष करता है लेकिन हम और आप

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