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Articles By Namesafarnama

मिलना एक महान रचनाकार से…

एक मार्च को शैलेन्द्र नगर में विनोद जी के घर में उनसे मुलाकात हुई। उनका चेहरा देखा तो अनायास मुझे 60-62 वर्ष पूर्व के वे विनोद जी याद आ गए जिन्हें मैं राजनांदगांव के दिग्विजय कॉलेज परिसर के अपने मकान की विशाल खिड़की के पाटे पर बैठकर अपने घर की ओर पैदल आते देखा करता था। उन दिनों वे जबलपुर के कृषि महाविद्यालय के छात्र थे और जैसा कि उन्होंने अनेक बार अपने संस्मरणों में जिक्र किया है, वे नये-नये युवा कवि थे, कविताएं लिख रहे थे। छुट्टियों में जब

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छत्तीसगढ़ के लोक तिहार: दान की महान संस्कृति का परिचायक ‘छेरछेरा’ मां शाकंभरी जयंती…

छेरछेरा पर विशेष। छेरछेरा पर्व पौष पूर्णिमा के दिन छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम, हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं। इसे दान लेने-देने पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती। इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर-घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं। युवा डंडा नृत्य करते हैं। छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासन द्वारा बीते चार

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सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा छह साल पहले रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को 4:1 के बहुमत से बरकरार रखा… फ़ैसले को समझें… जस्टिस नागरत्ना ने किन बिंदुओं से तय किया कि विमुद्रीकरण की प्रक्रिया ग़ैरक़ानूनी है…

इम्पेक्ट न्यूज़ डेस्क। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 4-1 के बहुमत ने माना कि, केंद्र सरकार की 8 नवंबर, 2016 की नोटबंदी की अधिसूचना वैध है और आनुपातिकता की कसौटी पर खरी उतरती है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने अपने असहमतिपूर्ण विचार में कहा कि “हालांकि विमुद्रीकरण सुविचारित था, इसे कानूनी आधार पर (न कि उद्देश्यों के आधार पर) गैरकानूनी घोषित किया जाना चाहिए।” जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यन और बीवी नागरत्ना वाले 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने, 7 दिसंबर, 2022 को, नोटबंदी की

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पुस्तक समीक्षा : एक सफ़र मुकम्मल… और दिवाकर! दिवाकर तो मेरे इतने अपने हैं कि क्या कहूं…

सुधीर सक्सेना। दिवाकर मेरे मित्र हैं। लगभग समवयस्क। कविता से उनका वास्ता कम है। गद्य से ज्यादा। गद्य में भी उन्होंने कहानियां इतनी ही लिखी हैं कि उन्हें ऊंगलियों पर गिना जा सके। हां, उन्होंने संस्मरण खूब लिखे हैं। अग्रलेखों की तो गिनती ही क्या! यूं तो वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी रहे, लेकिन यह अवधि अधिक सुदीर्घ नहीं रही। उन्हें प्रिंट मीडिया ज्यादा रास आया। प्रिंट मीडिया से उनके जुड़ाव का अंतराल चार दशकों से भी अधिक कालखण्ड में फैला हुआ है और आरोह-अवरोह भरे रोचक-रोमांचक दौरों को अपनी

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जसम सम्मेलन के बहाने कुछ बातें : जिस सांस्कृतिक जनक्रांति की बात की जाती है वह सभी वर्गों के लोगों को, सभी मेहनतकशों को शामिल किए बिना सफल नहीं हो सकती…

दिवाकर मुक्तिबोध। बस्तर के आदिवासियों के हितों के लिए वर्षों से संघर्षरत सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय सम्मेलन में जो विचार व्यक्त किए हैं, वे फासीवाद के मुद्दे पर बौद्धिक तबके की कथित सक्रियता पर सवाल खडे करते हैं। उन्होंने कहा-फासीवाद का सबसे पहले हमला आदिवासियों पर होता है। वे उसका सामना करते हैं। बाद में किसान व मजदूर मुकाबला करते हैं। गरीब व निम्न वर्ग पर जब हमला होता है तो वह अपने तरीक़े से उसके खिलाफ संघर्ष करता है लेकिन हम और आप

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आखिर नेता नगरी के हीरो सौरभ #लल्लनटॉप ने माफी क्यों मांगी? क्या थी वह गलती जिसका पछतावा उन्हें भी हुआ? देखें विडियो में माफी नामा… सोशल मीडिया की ट्रोल आर्मी की हकीकत…

सुरेश महापात्र। इन दिनों देश के लल्लन टॉप पत्रकार सौरभ द्विवेदी सोशल मीडिया में बहुत ज्यादा ट्रेंड कर रहे हैं। इस ट्रेंडिंग की वजह जानेंगे तो चौंक जाएगें! वजह है अतीत की गलतियां जिनके लिए आज उन्हें जबरदस्त ट्रोल किया जा रहा है। मसला है उन दिनों का जब ट्विटर का क्रेज बस शुरू ही हुआ था। उच्च मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के मध्य अपनी बात को रखने का एक ऐसा जरिया जिससे वे खुद ही लहालोट हुए जाते थे। धीरे—धीरे सोशल मीडिया का यह प्लेटफार्म करोड़ों उपयोगकर्ताओं तक

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सबसे खराब दौर में कांग्रेस… हताशा व अविश्वास की परिणति आंतरिक संघर्ष…

दिवाकर मुक्तिबोध। बडी दिक्कत में है कांग्रेस। 137 साल पुरानी पार्टी और उसका नेतृत्व कभी इतना असहाय, इतना निराश नजर नहीं आया था जितना इन दिनों दिखाई दे रहा है। हालांकि उस दौर में भी पार्टी ने अनेक आंतरिक संकटों का सामना किया था, तरह तरह की चुनौतियां झेलीं थीं,  दर्जनों असंतुष्ट बडे नेता पार्टी छोडकर चले गए , इनमें से कुछ ने अपनी-अपनी कांग्रेस बना लीं लेकिन कांग्रेस की आत्मा अपने मूल शरीर में कायम रही। अब यही आत्मा मृतप्राय शरीर की दारूण स्थिति देखकर छटपटा रही है और

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इनक्रेडिबल दंतेवाड़ा के रियलिस्टिक गोल के साथ संसाधन, सुविधा और विकास की दिशा में काम ही प्रमुख लक्ष्य: विनीत नंदनवार

अमूमन बस्तर का नाम आते ही इससे बाहर के लोगों में इसकी एक छवि खुद बा खुद गढ़ जाती है… इसका जिक्र आते ही पिछड़ापन, अशिक्षा, अंधकार के साथ नक्सलवाद और सुरक्षा बालों के दोतरफा फांस में फंसे आदिवासियों का चेहरा घूमने लगता है। पर अब बस्तर की तस्वीर अब लगातार बदल रही है। जब अविभाजित बस्तर में दो नए जिले बने तब जगदलपुर के एक बालक की उम्र महज 13 बरस की रही… तब वह कक्षा आठवीं का विद्यार्थी रहा… अब वही बालक छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद बस्तर

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गीतांजली श्री लिखित उपन्यास ‘रेत समाधि’ ने बुकर जीता! हिंदी की पहली कृति जिसे यह पुरुस्कार प्राप्त हुआ…

पीयूष कुमार। गीतांजलि श्री द्वारा लिखित और राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित ‘रेत समाधि’ हिंदी की पहली ऐसी कृति बन गयी है जिसके अंग्रेजी अनुवाद ने 2022 का प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता है। इसका अंग्रेज़ी अनुवाद Tomb Of Sand के नाम से अमेरिका की मशहूर अनुवादक डेज़ी रॉकवेल ने किया है। इसके लिए लगभग 50 लाख रुपये मिलेंगे जो लेखक और अनुवादक के बीच बराबर बांटी जाएगी। बुकर पुरस्कार के लिए रचना या उसके अनुवाद को आयरलैंड या ब्रिटेन से प्रकाशित होना जरूरी होता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार गीतांजलि

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‘ अर्धविराम ‘ के बहाने कुछ बातें…

दिवाकर मुक्तिबोध। दो मई को प्रेस क्लब में पत्रकार सनत चतुर्वेदी पर केन्द्रित किताब ‘अर्धविराम ‘ के लोकार्पण कार्यक्रम में मुझे शामिल होना था। समय था शाम साढे पांच बजे । आधे घंटे पहले मैं घर से निकल ही रहा था कि एकाएक मौसम बुरी तरह बिगड़ गया। तेज आंधी तूफान के साथ बरसात भी शुरू हो गई। करीब एक सवा घंटे के बाद आसमान साफ हुआ। अंधड शांत हुआ और बरसात भी थम गई पर विलंब हो चुका था लिहाजा मेरा जाना रूक गया। जबकि इस कार्यक्रम में शामिल

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