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अथ श्री महाभारत कथा…

रामायण और महाभारत हिंदुस्तानी छोटे पर्दे की कालजयी रचना है… बहुतों के बचपन के साथ यह जुड़ा है। भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी जो राजधानी में एसएसपी हैं उनकी यादों के झरोखे से यह पोस्ट फेसबुक पर सुशोभित हो रही थी… जस का तय…

आरिफ शेख / फेसबुक वॉल से साभार…

सन1988-90 के बीच हर रविवार की सुबह 10 बजे रास्ते और कॉलोनियों में ऐसा ही सन्नाटा पसर जाता था जैसे अभी lockdown में हो जाता है, बस कारण अलग था। तब वह voluntary था, क्रिकेट खेलते खेलते जैसे ही TV पर ” कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” की आवाज सुनाई देती थी खेलना छोड सभ लोग TV के आगे “अथ श्री महाभारत कथा टाइटल song शुरू होते होते settle हो जाते । फिर 1 घंटे मान लो हम सब एक दैवीभक्ति और समाधि में लीन हो जाते थे।

रामायण ने दर्शको को TV serials का एक नया perspective दिया था लेकिन महाभारत ने उसको redefine कर दिया। जो glamour quotient रामायण में मिसिंग था वह महाभारत ने बखूबी fill-in किया। महाभारत की कास्टिंग भी इतनी सटीक थी कि आज भी पुनीत इस्सर दुर्योधन है, पंकज धीर कर्ण और सांसद बनने के बाद भी रूपा गांगुली द्रौपदी है।

1985 से 1996 तक मैं मरोल पुलिस कैम्प में रहा हु। इस कॉलोनी में कुल 20 (E1-E20) बिल्डिंग SI रैंक के अफसरों के लिए चिन्हांकित थी। इन 20 बिल्डिंग में 4-5 अलग अलग टीम थी। कुछ सहयोगी थी और कुछ के साथ 36 का आंकड़ा था। महाभारत का यह fallout था कि हर टीम ने अपने आपको पांडव presume कर लिया था और दूसरी विरोधी (बिच्छू) टीम को कौरव। इस लिए उस पूरे महाभारत के टेलीकास्ट के दौरान अमूमन रोज़ किसी न किसी कारण से हमारी कुरुक्षेत्र की लड़ाई जारी थी।

मरोल पुलिस कैम्प से सटा हुआ है आरे मिल्क कॉलोनी का क्षेत्र, महाभारत की कुछ एपिसोड्स की शूटिंग इसी क्षेत्र में हुई है। छोटा कश्मीर नामक एक सुंदर उद्यान गोरेगांव आरे कॉलोनी में स्थित है । यहाँ पांडव और तालाब के यक्ष के बीच के सभी एपिसोड्स फिल्माए गए है। पिताजी आरे कॉलोनी पुलिस स्टेशन में ही पोस्टेड थे तो बंक मार के शूटिंग देखने का प्रश्न ही उत्पन्न नही होना था।एक दिन छुट्टी के दिन शानिवार को बड़ी आरज़ू के साथ हिम्मत कर पिताजी को शूटिंग देखना है कहा तो उन्होंने कहा शूटिंग तो खत्म हो गयी है वहा। उस दिन बड़ी मायूसी हुई, द्रौपदी को प्रत्यक्ष देखने का ..”मेरा मतलब पांडवो को देखने का स्वर्णिम मौका हम सब से छूट गया था।”

ऐसे में पता चला की महाभारत के युद्ध की कुछ एक शूटिंग जम्बूरी मैदान , यूनिट न. 22 , आरे कॉलोनी में 10 दिन होना है। शुक्रवार की शाम हमारे E-2 टीम के कप्तान मित्र Prakash Davane, मैं,मेरे भाई Asif Shaikh और बाकी के साथियों ने जम्बूरी मैदान जा के शूटिंग देखने का निर्णय लिया जो 20 km दूर था। जाने का एक ही रास्ता था आरे मिल्क कॉलोनी के जंगल के बीचोबीच से जो विशाल पाइप लाइन (जो तानसा तालाब और शेष मुम्बई के बीच पानी की lifeline है) के ऊपर चलते हुए जाना ताकि जल्दी पोहोंच भी जाए और रास्ते मे पड़ने वाले आम और जामुन के बगीचों में से दिल भर के खा सके।

सुबह सुबह E-2 टीम के सभी सदस्य नाश्ता कर निर्धारित स्थल पर उपस्थित हुए। एक के बाद एक सब लोग pipe लाइन पर चढ़ गए और फिर हमारा कारवां गंतव्य स्थल की तरफ बढ़ चला। रास्ते मे कच्चे आम और जामुन भी खा कर और फुर्ती आ गयी थी बस अब लक्ष्य था कौरवो को परास्त करने का। काफी चलने के बाद पाइप लाइन से उतर कर एक पहाड़ी चढनी थी जिसे पार करने पर था एक विशाल मैदान । यही पे लगा था एक भव्य सेट। काफी भीड़ लगी हुई थी। बोहोत सारे लोगो ने सैनिकों के कपड़े पहने हुए थे। कोई युद्ध का sequence शूट होना था। दोपहर की चिलचिलाती धूप में चल चल कर थक चुके थे लेकिन शूटिंग देखने की चाह हमको तरोताज़ा रखे हुई थी।

कुछ देर वक्त बिताने के बाद पता चला कि कोई भी व्यक्ति शूटिंग में सैनिक बन कर काम कर सकता है, बोहोत सारे हमारे कॉलोनी के मेरे होनहार बेकार मित्र मुझे वहां सैनिको के वेश भूषा में दिखे। अफसोस सिर्फ इस बात का था कि हम बच्चे थे और शूटिंग में भाग नही ले सकते थे। लेकिन हमको शूटिंग देखने से कौन रोक सकता था या चिढ़ाने से।

ऐसे में शूटिंग शुरू हुई और हमको दर्शन हुए शकुनि मामा और दूश्यासन के। बाकी और तो कुछ था नही करने को तो वहां पड़े हुए कुछ सैनिको के मुकुट, तलवार और जले हुए बाण ही के साथ खेलने लग गए। कुछ हमारी हूटिंग की वजह से शूटिंग में थोड़ा व्यत्य आया था। 4-5 रिटेक के बाद हमको वहां से भगा दिया गया। भागथक कर वापसी का लंबा रास्ता तय करना बड़ा मुश्किल था लेकिन जैसे तैसे आ गए। इसी बीच मैंने मेरी जेब से एक जला हुआ धनुष्यबाण निकाला ताकि बाकी के लोगो को चिढाऊ, यह मेरी गलती थी बाकी लोगो ने भी कुछ न कुछ समेट ही लिया था,

किसीने मुकुट तो किसीने तलवार, किसीने बाजूबंद.. वापसी के रास्ते मे दुश्मन का इलाका भी पड़ता था लेकिन हमारे पास तो पांडवो के अस्त्रशस्त्र थे तो घबराना क्या? सीधे घुस गए मांद में फिर जो महाभारत हुआ उसका नतीजा यह था कि पांडव बन के घसे थे और कौरव जैसे हालात में बाहर निकले। इस संग्राम की खबर घर तक किसी “संजय” ने पोहचा ही दी और पिताजी की आकाशवाणी से पूरे सप्ताह मैं डरा सहमा से रहा।

यह वाकया के बाद अकेला फ़िल्म का किस्सा हुआ और उसके बाद फिर कोई शूटिंग अकेले देखने की हिम्मत ही नही हुई..आज भी बचपन की यादें सामने आती है तो सिर्फ इतना महसूस होता है सुनहरे दिन तो वही थे अब तो सिर्फ कट रही है…

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