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छत्तीसगढ़ : नक्सल मोर्चे पर अंतिम लड़ाई! क्या बस्तर में रुक पाएगी हिंसा?

दिवाकर मुक्तिबोध। साल 2015 में बीबीसी से बातचीत के दौरान छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर रमनसिंह ने कहा था, ‘नक्सली धरती माता के सपूत हैं और उनका मुख्य धारा में बच्चों की तरह स्वागत होगा.’ उन्होंने यह बात वार्ता की संभावना के मद्देनजर कही थी. उनका यह कथन अनायास इसलिए याद आ रहा हैं, क्योंकि बस्तर में केन्द्र व राज्य सरकार का नक्सलियों के खिलाफ जो चौतरफा अभियान चल रहा है, उसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा नक्सलियों को मुख्य धारा में लाना भी है. रमनसिंह की सरकार में सबसे ज्यादा नक्सली

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Kanak Tiwari ने पत्रकारिता पर दो अत्यंत महत्वपूर्ण आलेख लिखे… भारतीय पत्रकारिता के मौजूदा दौर पर यह लेख और उसकी टिप्पणियां संजोकर रखने लायक हैं…

फेसबुक वॉल से… सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर हर तरह के लोग और समूह हैं। कुछ विचारवान लेखक, पत्रकार और वैचारिक तौर पर विचारधारा से जुड़े प्रख्यात लेखक भी इसका हिस्सा हैं। इनमें से एक ऐसे ही गांधीवादी और कांग्रेस विचारधारा से जुड़े वरिष्ठ अधिवक्ता, पूर्व पत्रकार, लेखक और प्रखर विचारशील वक्ता कनक तिवारी भी हैं। दर्जनों पुस्तकें लिखीं हैं। इन्होंने दो खंडों में भारतीय पत्रकारिता की वर्तमान दशा और दिशा पर लेख लिखा। इस लेख को वरिष्ठ पत्रकार रूचिर गर्ग ने अपनी वॉल पर शेयर किया। इस लेख को पढ़ने

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‘धाकड़’ सरकार को सांसदों की जरूरत ही नहीं…

सुरेश महापात्र। जिन लोगों का जन्म मेरी तरह 1971 के बाद हुआ है उनके लिए इस वक्त सबसे बड़ा वक्त है। वे अपनी आंखों से सरकार की ताकत देख सकते हैं। क्योंकि इससे पहले जन्म लेने वाले ज्यादातर ने इंदिरा के युग को देख ही लिया होगा यह माना जा सकता है। हिंदुस्तान में कांग्रेस पर इस बात को लेकर आरोप लगता रहा है कि इसने हिंदुस्तान में 70 बरस तक अपनी सरकार चलाई। इसके साथ ही यह भी आरोप लगता रहा है कि इतने ही बरस तक नेहरू और

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हमे अपनी वही पुरानी शिक्षा पद्धति लौटा दो… जिसमें गुरूजी से डर लगता था और…

सुरेश महापात्र। शिक्षा को लेकर इतने सारे प्रयोग हो चुके हैं कि अब किसी गैरवाजिब प्रयोग की मुख़ालफ़त कर देना चाहिए। शिक्षा पद्धति में बदलाव के नाम पर सरकारों ने शिक्षा का बाजारूकरण ज्यादा किया है और हिंदी—अंग्रेजी, निजी—सरकारी स्कूल के वर्गभेद की दीवार खड़ी करने के सिवाए कुछ बेहतर नहीं किया है। आप जरा याद करें कि शिक्षा पद्धति में अब जो बदलाव किए जा रहे हैं क्या वे उस स्थिति से बेहतर हैं जो हमने 1985 से पहले देखा है? शायद नहीं! वजह साफ है कि हमे बीते

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