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बापू के सत्ता केंद्र आज कहां हैं?

गांधी जयंती पर विशेष सुदीप ठाकुर। मार्च के दूसरे हफ्ते में कोविड-19 महामारी के शुरुआती मामले आते ही प्रधानमंत्री मोदी ने अचानक ‘जनता कर्फ्यू’ का एलान किया था और उसके दो दिन-तीन बाद पूरे देश में लॉकडाउन लागू कर दिया गया था। इससे देशभर की सड़कों पर जो दृश्य नजर आया था, उसे विभाजन के बाद की दूसरी बड़ी त्रासदी के रूप में दर्ज किया गया। बड़े शहरों और महानगरों से लाखों प्रवासी मजदूर जो भी साधन मिला उससे या पैदल ही अपने गांव-घर की ओर चल पड़े थे। विभाजन

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सत्यजीत भट्टाचार्य – बस्तर में रंगकर्म के एक युग का अवसान

राजीव रंजन प्रसाद। विनम्र श्रद्धांजलि आप रचनात्मकता को कम से कम शब्दों में कैसे पारिभाषित कर सकते हैं? इस प्रश्न के लिये मेरा उत्तर है – सत्यजीत भट्टाचार्य। बस्तर की पृष्ठभूमि से रंगकर्म को आधुनिक बनाकर देश-विदेश में चर्चित कर देने वाले सत्यजीत अपने चर्चित नाम बापी दा से अधिक जाने जाते थे। वे अपने आप में नितांत जटिल चरित्र थे, चटखीले रंगों की टीशर्ट, भरे भरे बालों वाला सर और दाढी से ढका पूरा चेहरा; पहली बार की मुलाकात से आप न व्यक्ति का अंदाजा लगा सकते थे, न

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क्या सरकारों से भरोसा उठ रहा है? यदि ऐसा है तो अभी भी वक्त है सुप्रीम कोर्ट अपनी लक्ष्मण रेखा लांघ ले…

सुरेश महापात्र। 25 मार्च 2020 को भारत के प्रधानमंत्री के लॉक डाउन की घोषणा के बाद यकायक सब कुछ असमान्य नहीं हुआ। बल्कि यह क्रमश: होता रहा। जब दूसरे चरण के लॉक डाउन की बात उठी तो महानगरों में काम करने पहुंचे दिगर राज्यों के प्रवासी मजदूरों के लिए जीने की राह कठिन होने लगी। काम ठप होने से रोजगार बंद हो गया और जिन ठिकानों पर वे रहते थे वहां से खदेड़े जाने लगे। हालात बदतर होते चले गए और नई बीमारी के संक्रमण का जिस तरह से खतरा

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EditorialNazriya

हमे अपनी वही पुरानी शिक्षा पद्धति लौटा दो… जिसमें गुरूजी से डर लगता था और…

सुरेश महापात्र। शिक्षा को लेकर इतने सारे प्रयोग हो चुके हैं कि अब किसी गैरवाजिब प्रयोग की मुख़ालफ़त कर देना चाहिए। शिक्षा पद्धति में बदलाव के नाम पर सरकारों ने शिक्षा का बाजारूकरण ज्यादा किया है और हिंदी—अंग्रेजी, निजी—सरकारी स्कूल के वर्गभेद की दीवार खड़ी करने के सिवाए कुछ बेहतर नहीं किया है। आप जरा याद करें कि शिक्षा पद्धति में अब जो बदलाव किए जा रहे हैं क्या वे उस स्थिति से बेहतर हैं जो हमने 1985 से पहले देखा है? शायद नहीं! वजह साफ है कि हमे बीते

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