सकल नारायण, भद्रकाली में विकास कार्यों से पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा : ताटी
- विभिन्न मांगों को लेकर जिपं सदस्य ने मुख्यमंत्री को सौंपा ज्ञापन
- पर्यटन के जरिए ही स्थलों की ऐतिहासिक महत्ता से परिचित होंगे देश-दुनिया के लोग
बीजापुर। जिपं सदस्य बसंत ताटी का कहना है कि बीजापुर का पुरातन इतिहास की जानकारी यहां मौजूद प्राचीन मंदिरों व दर्शनीय स्थलों के माफर्त मिली है। जिसमें भद्रकाली और सकलनारायण गुफा महत्वपूर्ण है।
लिहाजा लोक आस्था के ये केंद्र पर्यटन के लिहाजा से भी काफी महत्वपूर्ण है और इनका सर्वांगीण विकास होना चाहिए, जिससे बाहर से लोग यहां पहुंचे और ऐतिहासिक महत्ता के साथ नैसर्गिंक सुंदरता से वाकिफ हो।
सकलनारायण व भद्रकाली में पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु ताटी ने विभिन्न मांगों को लेकर गत दिनों मुख्यमंत्रीय भूपेश बघेल को उनके बीजापुर प्रवास के दौरान ज्ञापन सौंपा है। जिसमें उल्लेख है कि भोपालपट्नम क्षेत्र तत्कालीन बस्तर स्टेट की सबसे बड़ी जमींदारी होने के कारण अनेक मामलों में अपेक्षाकृत अन्य क्षेत्रों से आगे रहा है।
इस क्षेत्र में कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं, जो दर्षनीय होने के साथ-साथ लोगों की आस्था के केंद्र भी है। इन स्थलों पर सीमावर्ती राज्यों के लोग भी विभिन्न अवसरों पर आते हैं। ऐसे स्थलों में पोसड़पल्ली की सकलनारायण गुफा और भद्रकाली संगम तीर्थ प्रमुख हैं। सकलनारायण की गुफा भोपालपट्नम से लगभग 22 किमी दूर पोसड़पल्ली के निकट पहाड़ पर स्थित है।
पं. केदारनाथ ठाकुर की प्रसिऋ पुस्तक बस्तर भूषण 1908 में बताया गया है कि बराहा डोंगरी की एक शाखा नैऋत्य दिशा में उसूर होते हुए भोपालपट्नम की ओर आई है। इसी में सकलनारायण की गुफा है।
इस पुस्तक में उल्लेख है कि उसूर में स्थित पांडव गुफा से सकलनारायण गुफा तक एक सुरंग भी है। इस सुरंग की एक शाखा गोदावरी तक जाती है। सकलनारायण की एक गुफा की भित्ति में श्रीकृष्ण की प्रतिमा है। इस प्रतिमा तक पहुंचने के लिए भोपालपट्नम के जमींदार ने सीढ़ियां बनवाई थी।
इस गुफा में कालिंग मडुगू भी है जहां चट्टानों से झरने वाले जल ने कुण्ड का रूप धारण किया है। इसी कुण्ड के पास स्थित एक सुरंग से श्रद्धालु प्रयत्नपूर्वक बाहर जाते है। सुरंग इरकुडु दोड्डी कहलाता है। गुफाद्वार पर अनेक खंडित मूर्तियां भी है। वन से अच्छादित इस पर्वत की सुंदरता अद्वितीय है।
पहाड़ से उतरने पर चिंतावागु और उसके तट पर जमींदारी के समय निर्मित एक मकाननुमा मंदिर है, जिसमें चतुर्भुज विष्णु, वेणुगोपाल, गणपति, नाग, देवी आदि की प्राचीन भव्य मूर्तियां हैं। इन मूर्तियों को देखकर लगता है कि पुरातनकाल में आसपास कोई भव्य मंदिर रहा होगा।
यहां जमींदार के समय होली से उगादी गुड़ीपड़वा तक मेला लगता था, परंतु अब गुड़ी पड़वा से पांच दिन पहले से शुरू होकर गुड़ीपड़वा की सुबह रथयात्रा के साथ समाप्त होता है। इन पांच दिनों में आदिवासी समुदायों के अलावा छग, महाराष्ट और तेलंगाना राज्यों के हजारों श्रद्धालु मंदिर और गुफा में भगवान के दर्शन करते हैं।
पांच दिनों तक आदिवासी समुदाय पारंपारिक नृत्यगान के साथ भगतवान की आराधना करते हैं। सकलनारायण की गुफा और मंदिर इस क्षेत्र में आस्था का बड़ा केंद्र है। मंदिर के संरक्षण और पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देष्य से मंदिर प्रांगण पर प्रतिवर्ष गुड़ीपड़वा के अवसर पर भरने वाले पांच दिवसीय मेले के अनुरूप दुकानों के शेड और सामुदायिक भवन, शौचालयों का निर्माण और पेयजल आदि की व्यवस्था, प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार, मेला स्थल से गुफा तक पक्की सड़क, गुफा के बाहर यात्री विश्राम गृह बनाने की आष्यकता है।
इसी तरह भोपालपटनम से लगभग 20 किमी दूर महाराष्ट और तेलंगाना की सीमा पर दो बड़ी नदियां गोदावरी और इंद्रावती का संगम है, जो अत्यंत मनोरम है। इस संगम के उस ओर यानि महाराष्ट की सीमा में भूपालेश्वर में शिवलिंग, जिसे बस्तर के प्रथम काकतीय नरेश अन्नदेव ने स्थापित किया था और भूपालेष्वर के नाम पर ही भोपालपट्नम का भूपालपटनमु नामकरण किया गया था।
इस पार छत्तीसगढ़ की सीमा में पहाड़ी पर देवी भद्रकाली का मंदिर है। किंवदंतियों के अनुसार भद्रकाली वारंगल के काकतीय सम्राट प्रपातरूद्र बस्तर की ओर आये और भद्रकाली में शिविर लगाकर सैन्य संगठन किया।
उसी समय पहाड़ी पर उन्होंने कुलदेवी भद्रकाली की स्थापना की थी। क्षेत्र में इस देवी के प्रति अगाध आस्था हैं बसंत पंचमी के अवसर पर यहां पांच दिनी मेला भरता है। जिसमें छग, महाराष्ट, तेलंगाना आदि राज्यों का जनसमूह शामिल होता है।
अग्निकुण्ड और बोनालू इस मेले के प्रमुख आकर्षण होते हैं। इस मंदिर का महत्व, लोक आस्था, संगम-तीर्थ के सौंदर्य आदि को ध्यान में रखते हुए यहां मंदिर तक पक्की सीढ़ियों का निर्माण, मेला स्थल पर दुकानों के लिए शेड और श्रद्धालुओं के रात्रि विश्राम के अनुकूल सर्वसुविधायुक्त सामुदायिक भवन का निर्माण किया जाए।