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अगले पांच वर्षों में देश में 147 नए यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स बनेंगे… जानें क्या कहते हैं आंकड़े…

इम्पैक्ट डेस्क.

हुरुन रिसर्च के अनुसार बढ़ती ब्याज दरों और वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण निवेशकों का उत्साह कम होने के बावजूद भारत में 147 स्टार्टअप ऐसे हैं जो अगले पांच वर्षों में यूनिकॉर्न बन सकते हैं। 27 जून को जारी किए गए एएसके प्राइवेट वेल्थ हुरुन इंडिया फ्यूचर यूनिकॉर्न इंडेक्स 2023 के अनुसार वर्तमान में भारत में 83 यूनिकॉर्न, 51 गजेल और 96 चीता स्टार्टअप हैं। हालांकि, यह पिछले साल की तुलना में इसमें मामूली गिरावट आई है, पिछले साल देश में 84 यूनिकॉर्न, 51 गजेल और 71 चीता स्टार्टअप थे।

एक बिलियन डॉलर से अधिक के मूल्यांकन वाले स्टार्टअप्स कहलाते हैं यूनिकॉर्न

हुरुन रिसर्च इंस्टीट्यूट ने साल 2000 के बाद स्थापित 1 बिलियन डॉलर से अधिक के मूल्यांकन वाले स्टार्टअप्स को यूनिकॉर्न के रूप में परिभाषित किया है। वहीं गजेल्स को ऐसे स्टार्टअप के रूप में परिभाषित किया गया है जिनके अगले तीन वर्षों में यूनिकॉर्न बनने की सबसे अधिक संभावना है। ऐसे स्टार्टअप्स को चीता कहा कहा गया है जो अगले पांच वर्षों में यूनिकॉर्न बन सकते हैं। यह मूल्यांकन नियामक फाइलिंग, उद्यमियों और कुछ भारत-केंद्रित उद्यम पूंजी फंडों (India-focussed venture capital funds ) और एंजेल निवेशकों से मिली प्रतिक्रिया के आधार पर किया गया है।

देश के 25 शहरों से पांच वर्षों में 147 स्टार्टअप्स, ज्यादातर सॉफ्टवेयर व सेवा क्षेत्र से जुड़े

हुरुन रिसर्च के अनुसार देश के 25 शहरों से आने वाले पांच वर्षों में 147 स्टार्टअप्स यूनिकॉर्न बन सकते है। ये ऐसे स्टार्टअप्स हैं जिनकी स्थापना औसतन 2015 में स्थापित किए गए थे। इनमें से ज्यादा स्टार्टअप्स सॉफ्टवेयर और सेवा क्षेत्र से जुड़े हैं। इन स्टार्टअप्स में से केवल 20 प्रतिशत भौतिक उत्पादों की बिक्री करते हैं; 37 प्रतिशत बी2बी कारोबार से जुड़े हैं यानी ये व्यावसायों को अपनी सेवाएं या उत्पाद बेचते हैं। इन स्टार्टअप्स में 63 प्रतिशत सीधे उपभोक्ताओं को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। ऐसे स्टार्टअप्स जो आने वाले पांच वर्षों में फ्यूचर यूनिकॉर्न बन सकते हैं वे वित्तीय सेवाओं, स्वास्थ्य देखभाल, व्यवसाय प्रबंधन समाधान और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में अपना दखल रखते हैं।

बढ़ती ब्याज दरों के कारण स्टार्टअप्स के लिए पूंजी जुटाना हुआ मुश्किल

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अर्थव्यवस्था में सुस्ती कुछ कंपनियों के लिए कठिन रही है और पिछले साल के करीब 20 प्रतिशत गजेल और चीता या तो सूची से बाहर हो गए हैं या उनकी रेटिंग घटा दी गई है। हुरुन रिसर्च का मानना है कि ये कंपनियां अब तीन साल के भीतर यूनिकॉर्न नहीं बन सकती हैं। हुरुन इंडिया के संस्थापक और मुख्य शोधकर्ता अनस रहमान जुनैद कहते हैं, “बढ़ती ब्याज दरों और भू-राजनीतिक बाधाओं ने स्टार्टअप के लिए पूंजी जुटाना मुश्किल बना दिया है।”