बस्तर के लोक अध्येता हरिहर वैष्णव नहीं रहे
पीयूष कुमार।
बस्तर के सबसे बड़े लोक अध्येता हरिहर वैष्णव जी का निधन हो गया है। वे 66 वर्ष के थे। कोंडागांव (छत्तीसगढ़) निवासी हरिहर वैष्णव मूलतः कथाकार और कवि रहे हैं पर उनका सम्पूर्ण लेखन और शोध कर्म बस्तर पर ही केंद्रित रहा है। लोक का साहित्य उसकी वाचिक परम्परा में संरक्षित रहता है ऐसे में उसे लिपिबद्ध करना निश्चित ही महती कार्य है।
इस लिहाज से बस्तर की समृद्ध लोक परम्पराओं खासतौर से हल्बी और भतरी भाषा के लोक को हरिहर जी ने विस्तार से लिपिबद्ध करके सुरक्षित किया है। लोक की उनका यह बहुत बड़ा अवदान है। उनका विपुल लेखन और शोध उनकी 29 पुस्तकों में उपलब्ध हैं जो भविष्य में सदैव ही मार्गदर्शन का काम करेंगी।
उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – मोहभंग (कहानी-संग्रह), लछमी जगार (बस्तर का लोक महाकाव्य), बस्तर का लोक साहित्य (लोक साहित्य), चलो, चलें बस्तर (बाल साहित्य), बस्तर के तीज-त्यौहार (बाल साहित्य), राजा और बेल कन्या (लोक साहित्य), बस्तर की गीति कथाएँ (लोक साहित्य), धनकुल (बस्तर का लोक महाकाव्य), बस्तर के धनकुल गीत (शोध विनिबन्ध), बाली जगार, आठे जगार, तीजा जगार, बस्तर की लोक कथाएँ, बस्तर की आदिवासी एवं लोक कलाएँ (भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली से), सुमिन बाई बिसेन द्वारा प्रस्तुत छत्तीसगढ़ी लोक-गाथा धनकुल (छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी, रायपुर से)। हरिहर जी ने बस्तर केंद्रित विभिन्न पत्रिकाओं का संपादन भी भी किया है जिनमें प्रमुख हैं – बस्तर की मौखिक कथाएँ (लाला जगदलपुरी के साथ), घूमर (हल्बी साहित्य पत्रिका), प्रस्तुति और ककसाड़ (लघु पत्रिका)।
रंगकर्म और लोक संगीत में भी दखल रखनेवाले हरिहर वैष्णव सांस्कृतिक दूत भी रहे हैं और इस सिलसिले में ऑस्ट्रेलिया, इटली और स्विट्जरलैंड की यात्राएं कर चुके हैं। उन्होंने स्कॉटलैंड की एनीमेशन संस्था ‘वेस्ट हाईलैंड एनीमेशन’ के साथ हल्बी के पहले एनीमेशन फिल्मों का निर्माण भी किया था। विभिन्न सम्मानों से सम्मानित हरिहर वैष्णव अपने अंतिम समय तक बस्तर केंद्रित किताबों पर काम करते रहे थे। उनका जाना लोक संस्कृति अध्ययन क्षेत्र का बड़ा नुकसान है, वे निश्चित ही अभी और भी बहुत कुछ देकर जाते। हरिहर जी का देहावसान अवश्य हुआ है पर उनके किये गए विपुल कार्य उन्हें हमेशा अमर रखेंगे। श्रद्धांजलि हरिहर वैष्णव जी को 💐
(पीयूष कुमार जी के fb वॉल से साभार)