Editorial

EditorialExclusive Story

गठबंधन में ‘मजबूरी’ की राजनीति में नरेंद्र मोदी की अग्नि परीक्षा… और हिंदुस्तान में गठबंधन की राजनीति…

विशेष टिप्पणी। सुरेश महापात्र। हिंदुस्तान में 2014 से पहले करीब 30 बरस तक लगातार गठबंधन की सरकारों का दौर रहा। देश के अलग—अलग राज्यों में पृथक राजनीतिक अस्तित्व वाले राजनीतिक दलों का प्रभाव केंद्र की राजनीति में पड़ता रहा। इतिहास की ओर देखें तो 1947 में स्वतंत्रता के बाद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देश की अग्रणी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में उभरी। स्वतंत्रता के बाद के दौर में कांग्रेस का वर्चस्व स्पष्ट था। 1952 में स्वतंत्रता के बाद हुए पहले आम चुनाव में पार्टी ने संघीय संसद और अधिकांश राज्य विधानसभाओं

Read More
EditorialNazriya

साम, दाम, दंड, भेद की हार है 2024 का चुनाव…

त्वरित टिप्पणी। सुरेश महापात्र। हिंदुस्तान ने अपना फैसला सुना दिया है। जनादेश का पिटारा खुलने के पहले लगाए जा रहे सारे कयास विफल हो चुके हैं। हिंदुस्तान में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार बनना तय है। इसे बहुमत से मात्र 23 सीटे ज्यादा हासिल हुई हैं। पर यह बढ़त सरकार चलाने के लिए पर्याप्त है। विपक्ष के गठबंधन को करीब 235 सीटें मिलती दिख रही हैं। यानी बेहद मजबूत विपक्ष की भूमिका के साथ अब ‘मोदी सरकार’ की जगह एनडीए सरकार अपना काम करेगी। मोदी सरकार का नारा भारतीय जनता

Read More
EditorialNaxalNazriya

छत्तीसगढ़ : नक्सल मोर्चे पर अंतिम लड़ाई! क्या बस्तर में रुक पाएगी हिंसा?

दिवाकर मुक्तिबोध। साल 2015 में बीबीसी से बातचीत के दौरान छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर रमनसिंह ने कहा था, ‘नक्सली धरती माता के सपूत हैं और उनका मुख्य धारा में बच्चों की तरह स्वागत होगा.’ उन्होंने यह बात वार्ता की संभावना के मद्देनजर कही थी. उनका यह कथन अनायास इसलिए याद आ रहा हैं, क्योंकि बस्तर में केन्द्र व राज्य सरकार का नक्सलियों के खिलाफ जो चौतरफा अभियान चल रहा है, उसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा नक्सलियों को मुख्य धारा में लाना भी है. रमनसिंह की सरकार में सबसे ज्यादा नक्सली

Read More
Nazriya

Kanak Tiwari ने पत्रकारिता पर दो अत्यंत महत्वपूर्ण आलेख लिखे… भारतीय पत्रकारिता के मौजूदा दौर पर यह लेख और उसकी टिप्पणियां संजोकर रखने लायक हैं…

फेसबुक वॉल से… सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर हर तरह के लोग और समूह हैं। कुछ विचारवान लेखक, पत्रकार और वैचारिक तौर पर विचारधारा से जुड़े प्रख्यात लेखक भी इसका हिस्सा हैं। इनमें से एक ऐसे ही गांधीवादी और कांग्रेस विचारधारा से जुड़े वरिष्ठ अधिवक्ता, पूर्व पत्रकार, लेखक और प्रखर विचारशील वक्ता कनक तिवारी भी हैं। दर्जनों पुस्तकें लिखीं हैं। इन्होंने दो खंडों में भारतीय पत्रकारिता की वर्तमान दशा और दिशा पर लेख लिखा। इस लेख को वरिष्ठ पत्रकार रूचिर गर्ग ने अपनी वॉल पर शेयर किया। इस लेख को पढ़ने

Read More
EditorialPolitics

छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के बाद बृजमोहन अग्रवाल की राजनीति का सवाल “जीत तो जायेंगे पर आगे क्या?”

-​ दिवाकर मुक्तिबोध। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को छत्तीसगढ़ के सात निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान के साथ ही राज्य की सभी 11 सीटों पर प्रत्याशियों का भाग्य इवीएम मशीनों में कैद हो चुका है. अब नतीजों की प्रतीक्षा है जो चार जून को मतगणना के साथ ही सामने आ जाएंगे. इन 11 सीटों में से जिन पांच पर परिणाम जानने की बेताबी है वे हैं- राजनांदगांव, महासमुंद, कांकेर, कोरबा तथा जांजगीर-चांपा. ये सभी हाई-प्रोफाइल सीटें हैं फिर भी राजनांदगांव, महासमुंद व कोरबा के मामले में जिज्ञासा

Read More
Breaking NewsEditorialState News

पिड़िया मुठभेड़ : सवालों के घेरे में बहुत कुछ!

सुरेश महापात्र। बस्तर में इन दिनों एक बार फिर युद्ध सी गर्जना का दौर है। बड़ी संख्या में माओवादियों के ठिकानों में फोर्स बेहद आक्रमकता के साथ लगातार आगे बढ़ रही है। एक प्रकार से माओवादी मोर्चे पर फोर्स की बढ़त का दौर बस्तर के घने जंगलों में दर्ज हो रहा है। अब से कुछ ही दिन बाद जब झीरम घाट पर माओवादियों के हमले की 11वीं बरसी पूरी होगी तब एक बार फिर कांग्रेस के नेता माओवादियों के खिलाफ आवाजें तो उठाएंगे पर साथ ही सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी

Read More
Editorial

छत्तीसगढ़ में 2019 से अलग हैं ये चुनाव…

– दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार में वरिष्ठ मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को जब रायपुर संसदीय सीट से टिकिट दी गई तो उसकी जमकर चर्चा हुई . यद्यपि भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के इस फैसले को आश्चर्य के साथ नहीं देखा गया क्योंकि इस तरह के प्रयोग पिछले कुछ चुनावों में होते रहे हैं फिर भी जब बृजमोहन को टिकिट मिलने की घोषणा हुई तब तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आती गईं तथा यह मुद्दा काफी समय तक गर्म रहा. लेकिन धीरे-धीरे इस हाई-प्रोफाइल सीट पर चर्चा का बाज़ार ठंडा पड़ता

Read More
Editorial

चुनाव विष्लेशण : अब की बार 400 पार का नारा और मोदी – गारंटी कितनी असरदार…

दिवाकर मुक्तिबोध। अठारहवीं लोकसभा के पहले चरण के मतदान के  लिए अब चंद घंटे ही शेष हैं। 19 अप्रैल को21 राज्यों के 102 सीटों पर मतदान  होगा। ये चुनाव पिछले तमाम  चुनावों की तुलना में अधिक संघर्षपूर्ण एवं आत्मकेन्द्रित होने के साथ ही देश की राजनीति की नई दिशा भी तय करते नजर आएंगे। इस बार के चुनाव मुख्यतः ईडी की अति सक्रियता, दुर्भावना के साथ विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस को सभी तरफ से घेरने की क़वायद, एक मुख्यमंत्री को चुनाव  प्रचार के मौलिक अधिकार से  वंचित रखने की कोशिश तथा भाजपा

Read More
Breaking NewsEditorial

ब्रांडिंग, बॉन्डिंग और ब्रेनमेपिंग में भाजपा का कोई मुकाबला है ही नहीं… 2024 के बाद असल लड़ाई इ​तिहास बदलने की ही है…!

सुरेश महापात्र। कहा ही जाता है प्यार और जंग में सब जायज़ है तो ऐसे में राजनीति को भी जंग के हिस्से मान लिया जाना ही सही होगा। राजनीति के जंग में अब राजनीतिक दल के हर पहलू का प्रभाव जनता पर पड़ता है। इसके लिए चाणक्य ने सूत्र वाक्य सदियों पहले ही दे दिया था। साम, दाम, दंड और भेद ये चार तत्व राजनीति के मौलिक हथियार हैं। इसका उपयोग और दुरूपयोग ही राजनीति में परिणाम को प्रभावित कर सकता है। भारतीय जनता पार्टी को लेकर अब स्पष्ट तौर

Read More
Nazriya

‘धाकड़’ सरकार को सांसदों की जरूरत ही नहीं…

सुरेश महापात्र। जिन लोगों का जन्म मेरी तरह 1971 के बाद हुआ है उनके लिए इस वक्त सबसे बड़ा वक्त है। वे अपनी आंखों से सरकार की ताकत देख सकते हैं। क्योंकि इससे पहले जन्म लेने वाले ज्यादातर ने इंदिरा के युग को देख ही लिया होगा यह माना जा सकता है। हिंदुस्तान में कांग्रेस पर इस बात को लेकर आरोप लगता रहा है कि इसने हिंदुस्तान में 70 बरस तक अपनी सरकार चलाई। इसके साथ ही यह भी आरोप लगता रहा है कि इतने ही बरस तक नेहरू और

Read More