बैक टू बैक तीन मंडल संयोजक और तीन जिले जहां आदिवासी बच्चों के निवाले पर डकैती के सबूत… कहीं अफसर, कहीं विधायक तो कहीं सिस्टम के नाम पर भ्रष्टाचार…
सुरेश महापात्र।
यह भी एक विचित्र सत्य है कि छत्तीसगढ़ में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ जब जमीनी स्तर पर आदिवासी बच्चों के निवाले से कमीशनखोरी का मामला बैक टू बैक उजागर हुआ हो। और बड़ी बात यही है कि इस तरह के मामलो को उजागर करने के पीछे आदिवासी विकास के सिस्टम का सबसे अंतिम कर्मचारी का योगदान है।
छत्तीसगढ़ की यह विचित्र स्थिति है कि मुख्यमंत्री आदिवासी, आदिम जाति कल्याण विभाग के मंत्री आदिवासी, प्रभारी मंत्री आदिवासी, विधायक आदिवासी, विभागीय सचिव आदिवासी, विभागीय प्रमुख आदिवासी, मंडल संयोजक आदिवासी और सिस्टम की वह कड़ी यानी आश्रम शाला और हास्टल के अधीक्षक जिनके कंधे पर आदिवासी बच्चों का भविष्य है वे भी ज्यादातर आदिवासी ही हैं और निवाला छिना जा रहा है वह भी आदिवासी बच्चों का।
पहला मामला बस्तर संभाग के बीजापुर जिले से सामने आया। जब एक महिला अधीक्षक से मंडल संयोजक ने पैसे की मांग की। उस टेप की बातों को यदि कसौटी पर परखा जाए तो मंडल संयोजक का कथन पूरे सिस्टम की पोल खोलने वाला है। वह एक ऐसी कड़ी है जिसे ऐसे आश्रम, छात्रावासों के अधीक्षकों से वसूली का जिम्मा दिया गया है। वह साफ बता रहा है कि एक बार पचास हजार रुपए, दुबारा पच्चीस हजार रुपए और अब 15—15 हजार रुपए वसूली का टार्गेट दिया गया है। यदि अधीक्षक यह राशि नहीं देंगे तो उन्हें हटाया जाएगा।
बीजापुर के मामले में अधीक्षक का बयान गौर करने लायक है जब वह बता रही है कि क्या इस तरह की राशि सभी ने दे दी है। मंडल संयोजक ही स्वीकारोक्ति सिस्टम का असली पोल है। बीजापुर जिले में आदिवासी बच्चों के स्कूलों में दशकों से ताला लगा रहा। इस बार कई स्कूलों को दुबारा संचालित करने की कोशिश शुरू की गई। कहीं बच्चे पेड़ के नीचे तो कहीं झोपड़ियों में पढ़ रहे थे। उन बच्चों के लिए तिरपाल और कारपेट की खरीदी को लेकर भी बड़ी चर्चा हुई। इस मामले के मीडिया में आने के बाद संबंधित मंडल संयोजक को निलंबित कर दिया गया। अधीक्षक को नोटिस जारी किया गया। इसके आगे क्या कार्रवाई हुई कोई नहीं जानता?
दूसरा मामला चित्रकोट विधानसभा क्षेत्र के बास्तानार ब्लाक का है। इसमें विधानसभा का जिक्र ही इसलिए किया गया है क्योंकि बस्तर जिले में कई विधानसभा क्षेत्र हैं और इसमें मंडल संयोजक ने विधायक विनायक गोयल के नाम पर पैसे की मांग की थी। विधायक विनायक गोयल ने अपना पक्ष रखते यह स्पष्ट किया कि इस तरह के भ्रष्टाचार के मामले को गंभीरता से लिया गया है। संबंधित मंडल संयोजक को निलंबित कर दिया गया है। पर सवाल तो वहीं खड़ा है कि आखिर एक विधायक के नाम पर एक अदना सा अधिकारी क्या वसूली की हिमाकत करने लायक हो सकता है?
बड़ी बात तो यही है कि जिस आश्रम की अधीक्षिका को लेकर यह बातचीत रिकार्ड की गई थी उसने मामला उजागर होने के चार दिन पहले ही अधीक्षिका का पद छोड़ दिया था। यानी इस मामले में मंडल संयोजक से हुई बातचीत को रिकार्ड करने के बाद ही पद छोड़ा। इस बातचीत का सार भी साफ है कि वसूली आश्रम में रह रहे आदिवासी बच्चों के निवाले के हिस्से की ही है। जिसे लेकर अधीक्षिका इंकार करती दिख रही है।
विधायक के लिए अधीक्षिका का साफ संदेश भी यही था कि उन्हें हटा दिया जाए जो दे सके उसे पद सौंप दिया जाए। इस मामले में भी मंडल संयोजक को हटाने के बाद मामला शांत हो गया है क्या इस तरह के मामले की तह तक जाने की जरूरत नहीं थी? आखिर मंडल संयोजक का मनोबल इतना कैसे बढ़ सकता है?
तीसरा मामला आदिवासी बहुल सुकमा जिले से सामने आया है। बताया जा रहा है कि मंडल संयोजक छिंदगढ़ ब्लाक से है। यानि मसला छिंदगढ़ ब्लाक का ही है। सीपीआई की छात्र शाखा ने इस मामले को उठाया है। आदिवासी बहुल इस क्षेत्र में माओवादी समस्या से निपटते प्रशासन के सामने आदिवासी बच्चों के निवाले में मची लूट भी कम बड़ी चुनौती नहीं है। इम्पेक्ट ने तीसरा मामला सामने आने के बाद विभाग के सचिव नरेंद्र दुग्गा से बात करने की कोशिश की पर वे मिटिंग में थे सो बात नहीं हो सकी।
उनके निर्देश पर सुकमा के सहायक आयुक्त ने पूरे मामले में पक्ष रखा। सहायक आयुक्त शरद शुक्ला ने जानकारी दी कि इस मामले को कलेक्टर सुकमा ने गंभीरता से लिया है। मंडल संयोजक को हटाया जा रहा है। सवाल अभी भी वहीं खड़ा है कि आखिर एक के बाद एक तीसरे जिले में आदिवासी विकास विभाग के ही आश्रम छात्रावासों में इस तरह की अवैध वसूली का आडियो अधीक्षकों ने क्यों रिकार्ड किया? ऐसा नहीं लगता कि आश्रम अधीक्षक इस तरह की व्यवस्था से परेशान हो चले हैं और वे आदिवासी बच्चों के निवाले से समझौता करने के बजाए अपनी नौकरी का जोखिम उठाने तक तैयार हो गए हैं।
मामला इसलिए भी गंभीर है कि छत्तीसगढ़ में इस समय मुख्यमंत्री आदिवासी हैं और अवैध वसूली वाले सिस्टम से जुड़े ज्यादातर अधिकारी, नेता भले ही संलिप्त ना हों पर वे हैं आदिवासी ही। बस्तर संभाग माओवादी प्रभावित इलाका है यहां से माओवादी समस्या के समाधान के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 की डेडलाइन तय कर दी है। ऐसे में यदि बस्तर के आदिवासी बच्चों की शिक्षा, सुविधा से जुड़ी व्यवस्था पर इस तरह के जमीनी भ्रष्टाचार के मामले क्या नई चुनौती नहीं साबित होंगी?
निश्चित तौर पर इसके लिए जवाबदेही की अपेक्षा की जानी चाहिए। सारे आश्रम, छात्रावास और आवासीय विद्यालयों में शैक्षणिक सामग्री और भोजन की गुणवत्ता से लेकर उनकी व्यवस्था से जुड़े हर मसलों पर गहन निगरानी की दरकार है। बेहतर होगा कि जिस तरह से राजस्व विभाग में आमूल चूल परिवर्तन किया गया है उसी तर्ज पर कुछ बड़ा करना ही चाहिए।
इम्पेक्ट लगातार
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