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अगर एन बैजेंद्र कुमार ‘CMD’ नहीं होते तो क्या ‘NCL’ के रास्ते अडानी की ‘AEL’ का प्रवेश संभव नहीं ​था…?

  • विशेष रिपोर्ट / सुरेश महापात्र — क्रमश: 3.

एनएमडीसी बै​लाडिला के खदान डिपाजिट—13 के खनन के लिए अडानी इंटर प्राइजेस को 25 वर्ष का ठेका मिलने के बाद कई सवाल तैर रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर एन बैजेंद्र कुमार सीएमडी नहीं होते तो क्या एनसीएल के रास्ते अडानी की एईएल का प्रवेश संभव नहीं था…? इसका जवाब ‘हां’ है।

आम पाठकों को भले ही यह समझ में नहीं आ रहा हो कि बैलाडिला के लौह अयस्क की खदान क्रमांक —13 जिसे डिपाजिट—13 के नाम से पहचाना जाता है उसके संबंध में सीधे तौर पर एनएमडीसी के सीएमडी की भूमिका को लेकर स्थिति संदेहास्पद क्यों है?

तो यह जानना जरूरी है कि एनएमडीसी हिंदुस्तान की महानवरत्न कपंनी है। इसके पास करीब सात दशक से खनन का अनुभव है। हिंदुस्तान में खनन के लिए इससे बड़ी कोई कंपनी नहीं है जिसके पास इतना बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद हो।

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एनएमडीसी का ग्रोथ रेट सबसे ज्यादा है। वहीं करीब 315.813 हेक्टेयर में फैले डिपाजिट —13 में काम शुरू करने के लिए अडानी इंटरप्राइजेस के पास ना तो संसाधन हैं और ना ही टीम। अडानी की कंपनी को एनएमडीसी और छत्तीसगढ़ सरकार ने धोखे से लोगों की आंख में धूल झोंकते कानून की आड़ में काम सौंप दिया है।

इसमें एनएमडीसी के वर्तमान अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक एन बैजेंद्र कुमार की पूर्ण भूमिका है। क्योंकि जो कंपनी एनएमडीसी और सीएमडीसी ने संयुक्त रूप से बनाई है उसमें एनएमडीसी की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत है।

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एनएमडीसी का कोई भी पूर्व पूर्णकालिक कर्मचारी यदि सीएमडी के पद पर होता तो वह कतई एनएमडीसी के हितों के विरुद्ध एनसीएल के माध्यम से अडानी के द्वारा खनन के ठेके पर सहमति देता ही नहीं। यह मामला एक तरह से सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करने वाला है।

यदि एनसीएल के लिए खनन का का काम ठेके में दिया जाना था तो यह काम एनएमडीसी भी कर सकता था। जिसमें अडानी के खाते में जाने वाली कमाई भी एनएमडीसी को ही प्राप्त हो सकती थी। इससे किसी का हित भी बाधित नहीं होता। यह कथन एनएमडीसी के वरिष्ठ कर्मचारियों का है। जिन्हें इस बात पर गंभीर आपत्ति है कि एनएमडीसी को दीमक की तरह चाटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने साजिश की है।

इन कर्मचारियों का स्पष्ट कहना है कि एनएमडीसी के निजीकरण की दिशा में सरकार कदम बढ़ा रही है। इसके लिए पिछले रास्ते से उनकी मनपसंद कंपनी को काम दिलाने की साजिश की गई है।

इन कर्मचारियों का तर्क है कि बस्तर में स्थि​त लौह अयस्क के सभी खदानों के लिए जहां भी प्राइवेट कंपनियां काम कर रही हैं उनमें एनएमडीसी के सेवानिवृत्त अफसरों की सेवा ली जा रही है। ये हर तरह की तकनीकी मदद के लिए एनएमडीसी की ओर ही मुंह ताकते खड़े रहते हैं। अगर सीएमडी ही किसी निजी कंपनी की हितचिंतक हो गए तो पूरी की पूरी महानवरत्न कंपनी का बंटाधार सुनिश्चित है।

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एनएमडीसी कर्मचारी यूनियन के सचिव राजेश संधू का स्पष्ट आरोप है कि एनएमडीसी के निजीकरण के लिए सरकार क्रियाशील है। इसका विरोध किया जाएगा। वे कहते हैं कि डिपाजिट—13 को अडानी की कंपनी को खनन के लिए ठेके में देने का काम इस तरह से किया गया कि किसी को कानो कान खबर तक नहीं लगी। यहां तक की मजदूर यूनियन को भी अंधेरे में रखा गया।

एनएमडीसी से जुड़े सूत्रों ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि एनएमडीसी को अपने अधिकार क्षेत्र में खनन के लिए मिले खदान को किसी निजी कंपनी को देने का अधिकार ही नहीं है। वैसे भी बस्तर में पांचवीं अनूसूची प्रभावित होने के कारण यहां पर किसी के भी अधिकार सीमित हैं।

ऐसे में सरकार ने अडानी को लाभ पहुंचाने के लिए रास्ता बनाने की नियत से पहले डिपाजिट—13 को लेकर प्रधानमंत्री की मौजूदगी में एनएमडीसी और सीएमडीसी के मध्य करार निष्पादित करवाया। इसका उद्देश्य साफ था बस्तर के खनिज संपदा के लिए अडानी के रास्ते को सुगम बनाना।

कई चरणों में डिपाजिट की खनिज संपदा के लिए साजिश की गई। जिसमें प्रथम चरण में यह एनएमडीसी और सीएमडीसी के मध्य मेमोरंडम आफ अंडरस्टैंडिंग ही था जिसे 9 मई 2015 को निष्पादित किया गया। इसके बाद दूसरे चरण में एनएमडीसी और सीएमडीसी द्वारा संयुक्त उद्यम एनसीएल बनाया जाना। एनसीएल बनाए जाने के बाद जब एनएमडीसी ने एनसीएल को पट्टा का हस्तांतरण कर दिया तो एनसीएल एक स्वतंत्र इकाई के तौर पर खनन के लिए फैसला लेने के लिए हकदार हो गई।

इसके बाद एनसीएल द्वारा डिपाजिट—13 के खनन के लिए टेंडर आमंत्रि​त किया जाना भी संदेहास्पद है। इस टेंडर के बारे में किसी को भी अधिकृत सूचना नहीं थी। चूंकि टेंडर का निष्पादन एनसीएल द्वारा किया गया था सो किसी का ध्यान न जाना स्वाभाविक ही था।

सूत्रों ने बताया कि एनसीएल के इस टेंडर प्रक्रिया में प्रथम चरण में केवल चार फर्मों ने शिरकत की थी। जिसमें माना जा रहा है कि दो फर्म अडानी इंटरप्राइजेस लिमि. (एईएल) की सपोर्टिंग फर्म ही रही। एक अन्य विदेश फर्म ने भी इसमें भागीदारी की थी। जिसके निविदा में शामिल होने से एईएल के लिए खनन का ठेका मिलने में बाधा खड़ी होने के कारण निविदा निरस्त कर दी गई।

इसके बाद दूसरी बार कुछ नई शर्तों के साथ निविदा आमंत्रित की गई। जिसमें पूर्व में शामिल विदेशी कंपनी स्वत: अयोग्य हो गई और खनन का ठेका एईएल को मिल गया। (हांलाकि हम इस तथ्य की पड़ताल करने में अक्षम हैं कि इसमें वास्तव में तकनीकी तौर पर किसी तरह की अवैधानिक कार्रवाई की गई है।)

कुलमिलाकर एनएमडीसी के खदान को सीधे तौर पर अडानी को खनन के ठेके पर दिए जाने लेकर गंभीर सवाल खड़े हैं। जिनका जवाब छत्तीसगढ़ सरकार और एनएमडीसी से अपेक्षित है।

इस संबंध में सीएमडी एनएमडीसी के पक्ष के लिए उनसे संपर्क किया गया पर वे मोबाइल पर उपलब्ध नहीं हो सके। इसके पश्चात वाट्सएप पर मैसेज भेजकर प्रत्युत्तर चाहा गया है। उन्होंने पढ़ लिया है पर जवाब प्रेषित नहीं किया है। पाठकों के लिए सूचनार्थ

सर नमस्कार

डिपाजिट-13 को लेकर आपका पक्ष लिया जाना है। इस संबंध में आपको मोबाइल पर कॉल किया था पर बात नहीं हो पाई।
आपका पक्ष अपेक्षित है इस बावत हमारा सवाल
1— क्या डिपाजिट-13 के खनन का ठेका दिलाने में कोई प्रक्रिया दोष है?

2— क्या सीएमडी को इस संबंध में जिम्मेदार माना जा सकता है?

3— क्या एनएमडीसी स्वयं खनन का ठेका नहीं ले सकती थी?

सादर — सुरेश महापात्र

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