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इनक्रेडिबल दंतेवाड़ा के रियलिस्टिक गोल के साथ संसाधन, सुविधा और विकास की दिशा में काम ही प्रमुख लक्ष्य: विनीत नंदनवार

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अमूमन बस्तर का नाम आते ही इससे बाहर के लोगों में इसकी एक छवि खुद बा खुद गढ़ जाती है… इसका जिक्र आते ही पिछड़ापन, अशिक्षा, अंधकार के साथ नक्सलवाद और सुरक्षा बालों के दोतरफा फांस में फंसे आदिवासियों का चेहरा घूमने लगता है। पर अब बस्तर की तस्वीर अब लगातार बदल रही है। जब अविभाजित बस्तर में दो नए जिले बने तब जगदलपुर के एक बालक की उम्र महज 13 बरस की रही… तब वह कक्षा आठवीं का विद्यार्थी रहा… अब वही बालक छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद बस्तर का पहला आईएएस बना… दंतेवाड़ा जिला के अपने गठन के 25वें बरस में युवा दंतेवाड़ा का यह युवा कलेक्टर है। नाम है विनीत नंदनवार… इनकी बॉडी बिल्डिंग के लोग कायल हैं… सोशल मीडिया में इनकी फिजिक के लोग कायल हैं। संभवतः ये इकलौते आईएएस हैं जिन्होंने संयमित भोजन और नियमित व्यायाम से अपने शरीर का सौष्ठव बरकरार रखा है। वे केवल सफलता की जगह अपनी विफलता पर भी खुलकर बात करते हैं… वे कहते हैं “लोग विफलता से डरते हैं यदि उन्हें विफलता के डर से मुक्त करवाना है तो सफल लोगों को अपनी विफलता पर भी बात करना चाहिए…” ड्रेस सेंस और एक शानदार फिजिकल अपियरेंस के साथ जब कलेक्टर विनीत नंदनवार गांव वालों से मिलते हैं तो उन्हें अच्छा तो लगता ही होगा…

बस्तर इम्पेक्ट ने अपने 15 वें स्थापना दिवस के लिए इस युवा कलेक्टर से उनकी प्राथमिकताओं को लेकर चर्चा की…  वे कहते हैं इनक्रेडिबल दंतेवाड़ा के लिए उन्होंने कई रियलिस्टिक गोल तय किए हैं… बातों से लगता है वे यहां के संसाधन, सुविधा और विकास की दिशा में काम करना चाहते हैं…

उनसे बातें तो बहुत सी हुईं… बहुत कुछ जस का तस… पेश है…

मैंने यहां सबसे पहला काम एजुकेशन को लेकर प्रारंभ किया है। इसमें मुख्यमंत्री जी के निर्देश पर जिले के सभी हाई स्कूल और हायर सेंकेंडरी स्कूल को स्वामी आत्मानंद विद्यालय के तौर पर डेवलप कर रहे हैं। जिले में कुल 54 स्कूल हैं जिनमें से 6 स्कूल पहले से इसके तहत संचालित हैं। इसमें पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जा रहा है।

दूसरा यह है कि मैंने स्वयं सरकारी स्कूल से पढ़ाई की है। मैं बस्तर हाईस्कूल का विद्यार्थी रहा हूंु। पढ़ाने के कई तरीके हो सकते हैं। कोई खेल कूद के माध्यम से पढ़ाता है कोई संगीत के माध्यम से पढ़ाता है। कोई आडियो विज्वुल के माध्यम से पढ़ाता है। मेरा उद्देश्य यही है कि बच्चा सीखना चाहिए। मैंने उसके लिए दंतेवाड़ा जिले में लर्निंग आउट कम पे काम प्रारंभ किया है। सभी स्कूलों को अलग-अलग जोन में बांटा गया है। रेड, येलो और ग्रीन जोन के तहत स्कूलों को बांटा जा रहा है। इसका मानक यही है। मैनंे कोई अलग काम नहीं किया है। क्योंकि शासन की योजना में ही लर्निंग आउटकम डिफाइन है। अगर इसी आधार पर भी काम हो जाएग तो बच्चों की शैक्षणिक गुणवता में सुधार हो जाएगा। एक बार बच्चें को पढ़ने को लेकर ललक जाग गई तो फिर वह कभी पीछे मुड़कर नहीं देखता है। इसी कान्सेप्ट पर काम कर रहे हैं। जिले के सभी स्कूलों की ग्रेडिंग की जा चुकी है। सीएससी के स्तर पर जिसके तहत चार से छह स्कूल का एक समूह होता है। इसके माध्यम से मानिटरिंग का प्रापर मैकेनिज्म तैयार है। हम इस पर लगातार काम कर रहे हैं कि अगर कोई स्कूल रेड जोन में है तो उसके सुधार के लिए अगली रणनीति क्या होना चाहिए?

सच कहूं तो यह मेरा कोई इनोवेशन नहीं है। मैं चाहता हूं कि जो काम आलरेडी चल रहा है उसकी सफलता सुनिश्चित की जाए। यानी बच्चों की और स्कूलों की बेसिक को मजबूत करना है।

मैं स्वयं हिंदी माध्यम का विद्यार्थी रहा हूं। यहां के बच्चों को इंग्लिश में बहुत समस्या आती है। इसके लिए इंग्लिश की पाठशाला आने वाले दिनों में शुरू कर दिया जाएगा। इसका कान्सेप्ट इस तरह से है कि इंग्लिश की ट्यूटर धमतरी की की हैं। उन्होंने बीच में कार्यशाला भी लिया था। इसके माध्यम से हर दिन हम ग्रामर के चैप्टर और डेली यूजेस के सेंटेंस हैं वाक्यूबलेरी है इसके लिए एक घंटा का आनलाइन क्लास चलेगा। इसे जिले के 13 स्थानों को कनेक्ट कर रहे हैं। इसके माध्यम से एक ही जगह से सीधे 1700 बच्चों तक पहुंच सुनिश्चित हो सकेगी। इन चयनित जगहों पर स्मार्ट क्लास बना हुआ है, प्रोजेक्टर लगा हुआ है सारे बच्चे इसके माध्यम से आसानी से पहुंच पाएंगे। धीरे-धीरे इंग्लिश लैंग्वेज की पहंच बढ़ेगी। हिंदी माध्यम से आत्मनंद के विद्यालयों के बच्चों को इसके माध्यम से इंग्लिश की तैयारी करवाई जा सकेगी। इंग्लिश क्योंकि ग्लोबल लैंग्वेज है मुझे लगता है बच्चों को नेटिव लैंग्वेज के साथ-साथ ग्लोबल लैंग्वेज भी सीखना चाहिए। उसपे हमने काम किया हुआ है।

तीसरा यह है कि हम दंतेवाड़ा जिले में एक मार्गदर्शन कार्यक्रम चला रहे हैं। बेसिकली मैं जब स्टूडेंट था तो मेरे साथ वाले किसी का 95 परसेंट आ रहा है और मेरा 78 परसेंट आ रहा है तो मैं देखता था। मेरे से ज्यादा तैयारी करने वाले साथी स्टूडेंट का कम परसेंट आता था। तो बाद में मैं जब यूपीएससी के दौरान यह रियलाइज किया कि वास्तव में जब स्ट्रेटजी सही होती है पढ़ने का तरीका हमें पता है तो क्या पढ़ना है इससे ज्यादा इंपार्टेंट क्या छोड़ना होता है।

तो अभी मार्गदर्शन कार्यक्रम में कोशिश कर रहे हैं कि बच्चों को पढ़ने का तरीका बताया जाए कि कैसे पढ़ना चाहिए? मैं अपने यूपीएससी के आधार पर यह कार्यक्रम चला रहे हैं। हम अब तक करीब दो हजार बच्चों तक पहुंच चुके हैं। हमारा पहला प्रयास यही है कि 11वीं और 12वीं के सारे बच्चों को जिला लेबल पर सेचुरेट किया जाए। दंतेवाड़ा और गीदम के सारे बच्चों को हमने कव्हर कर लिया है। अगले चरण में कुआकांेडा, कटेकल्याण, बचेली और किरंदुल यहां पर भी हम बच्चों से इंटरेक्ट करेंगे।

बच्चों को कई तरह की दुविधाएं होती हैं। ज्यादा पढ़ना चाहिए, कैसे पढ़ना चाहिए? जैसे एक उदाहरण है गणित में हम युगबोध की किताबें पढ़ते थे बहुत मोटी किताब है उसमें एक जैसे ही एक्जाम्पल होते थे। कई तरह से प्रदर्शित होते थे। जिसका मतबल एक जैसा ही होता है। हमारा उद्देश्य यही है कि हमें यदि कांसेप्ट पता है तो सभी सवाल आसानी से हल किए जा सकते हैं। यह मैंने अपनी यूपीएससी के दौरान पढ़ने का तरीका सीखा। अब इसे ही बच्चों के साथ शेयर कर रहा हूं। क्योंकि मुझे अब लगता है कि जब मैं बच्चा था तो मैं और भी अच्छा परफार्म कर सकता था। मेरे परसेंट और अच्छे आ सकते थे। मुझे पढ़ने का सही तरीका पता नहीं था जिससे रिजल्ट प्रभावित हुआ। अभी मैं बच्चों के साथ वही शेयर कर रहा हूं। एक और बात है बच्चे असफलता से डरते हैं। तो मैं अपनी असफलताओं के बारे में भी बताता हूं। मेरा चौथा अटेंप्ट था जब मैं आईएएस में सफल हुआ। मैं खुद सरकारी स्कूल से हूं हिंदी माध्यम से पढ़ाई किया हूं तो मार्गदर्शन कार्यक्रम में बच्चें मुझसे कनेक्ट हो पाते हैं। फिलहाल दो हजार बच्चों तक पहुंचे हैं इसे लगातार चलाते रहेंगे।

हमने एक और काम किया है कि हम 12वीं तक के बच्चों का ड्राप आउट तो देखते हैं। इसके बाद कितने बच्चे कॉलेज तक जा रहे हैं कितने बच्चे बाहर निकल रहे हैं तो इसपे अक्सर हमारा फोकस कम हो जाता है। तो मैंने इसके लिए यह काम किया है कि जो 12वीं के बच्चें हैं वे हायर एजुकेशन में भी जा सकें। तौ मैंने अभी कॉलेजेस हैं कुआकोंडा और कटेकल्याण है जहां कॉलेज स्वीकृत है बिल्डिंग नहीं बन पाई है हम कटेकल्याण में बिल्डिंग बना रहे हैं वहां छात्रावास की व्यवस्था भी कर रहे हैं ताकि आस-पास के बच्चे भी उच्च शिक्षा से वंचित ना रह सकें। मेरी कोशिश है कि माननीय मुख्यमंत्री जी के मार्गदर्शन में अंदरूनी क्षेत्र के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें। हम शिक्षा के विकेंद्रीकरण पर काम कर रहे हैं। ताकि कोई भी बच्चा उच्च शिक्षा से वंचित ना रह सके।

दंतेवाड़ा जिले में संचालित छू लो आसमान योजना को हम और भी सिस्टोमैटिक करने जा रहे हैं। हम जिस तरह से यूपीएससी की तैयारी करते थे उसी तर्ज पर नीट और जेईई के लिए सिलेबस डिफाइन कर दिया है कि किस दिन किस विषय की तैयारी होगी। जिन एक्जाम की तैयारी करवाई जा रही है उसमें मल्टिपल च्वाइस प्रश्न होते हैं। तो हमे ज्यादा से ज्यादा साल्व करना होता है। तो मुझे लगा कि यहां थोड़ा इम्प्रुवहमेंट किया जा सकता है। तो उसी मुताबिक तैयारी करवाई जा रही है। हम जो पढ़ा रहे हैं वह सिलेबस से मैच होना चाहिए। यह कर दिया गया है।

हम जावांगा में खास कर नक्सल प्रभावित बच्चे हैं उसके लिए भी हम नीट की तैयारी शुरू करवा रहे हैं। यह संस्था सीबीएसई एफिलेटेड है हम कोशिश कर रहे हैं वहां आस-पास 11वीं-12वीं पढ़ रहे बच्चों को लाया जा सके। कई बार ऐसा होता है जिन बच्चों का सलेक्शन नहीं हो पाता है वे एक साल ड्राप लेते हैं ताकि तैयारी कर सकें। मैंने यहां देखा कि 50-60 बच्चे ड्राप लेकर तैयारी कर रहे हैं मैंने उन बच्चों की तैयारी के लिए जावंगा में मर्ज करने के लिए व्यवस्था की है। इससे जो बच्चे वास्तव में जाना चाहते हैं उन्हें आगे बढ़ने में सहायता मिल सकेगी और वे आगे बढ़ पाएंगे। क्योंकि अक्सर आर्थिक कारणों से कई बच्चों की तैयारी नहीं हो पाती है ऐसे बच्चों के लिए आर्थिक कारण आड़े नहीं आएंगे। फिलहाल हम काम्पिटिशन एक्जाम की तैयारी करवा रहे हैं थोड़ा सा कुछ समस्याएं थीं उसे दूर कर दिया है। अभी हम एसएससी, बैंक, व्यापन ना केवल मैं सच बोलना ज्यादा प्रीफर करता हूं आईएएस के लिए थोड़ा समय लगता है। तो मैने यह काम किया है कि यदि कोई नीचे लेबल एसएससी, रेलवे, बैंक या व्यापम की तैयारी कर रहा है तो हम उसकी भी तैयारी शुरू करवा रहे हैं। पीएससी की तैयारी की क्लासेस भी चल ही रहे हैं। कहीं ना कहीं हमारे यहां से ज्यादा से ज्यादा लोग ऐसी परीक्षाओं में सफल हो सकें। ओवर आल हमारे यहां क्लास फर्स्ट से अब तो माननीय मुख्यमंत्री जी के निर्देश पर बालबाड़ी भी शुरू हो गया है। आंगनबाड़ी में भी जहां-जहां पर स्मार्ट आंगनबाड़ी हैं जहां टीवी दिया गया है। इसके लिए हमे बहुत एक्स्ट्रा खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ी। एक पेन ड्राइव हो जाएगा जिसमें मैं कई सारे विडियो को डाउनलोड करवा कर उपलब्ध करवा रहा हूं। वह वहां चलता रहेगा इससे बच्चों में लर्निंग के लिए पढ़ने के लिए ललक होगी। इस तरह से दंतेवाड़ा जिले में आंगनबाड़ी से लेकर हायर एजुकेशन तक के लिए प्लान किया हुआ है। इस पर जीरो से हमने काम स्टार्ट किया है।

जैविक खेती की पहचान

हमारे जिले में 234 गांव है उसमें करीब 100 गांव जैविक हो चुके हैं। उसके प्रमाणिकरण के लिए हमने शासन से पत्राचार किया हुआ है। हमारे 80 से 85 गांवांें में करीब 50-60 किसान किसी भी रूप में कैमिकल फर्टिलाइजर का इस्तेमाल नहीं करते हैं। हमारा उद्देश्य टारगेटेड एप्रोच में काम करना है। तो जैविक खेती को लेकर हमारा टारगेटेड एप्रोच है कि जैविक खेती के लिए किसान की समस्या क्या है। इसके लिए माननीय मुख्यमंत्री के मार्गदर्शन पर हम उस समस्या के निदान की दिशा में जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं। अभी हम संकल्पना के स्तर पर हमारी बायो फर्टिलाइजर पर बात चल रही है। देखिए यदि आपको आर्गेनिक करना है तो उसकी मूल जरूरत को पूरा करना होगा। यह कितना इकॉनामिकली संस्टेनेबल है। क्योंकि कोई किसान केमिकल से तभी आर्गेनिक खेती के लिए मुड़ेगा जब उसे फायदा दिखेगा और उसे संस्टेनेबिलिटी दिखेगी। इस पर मैने काम शुरू करवा दिया है संभव है हम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचेंगे। क्योंकि जो 100 गांव हैं उसे आर्गेनिक बनाए रखना है और जो 85 गांव है उसमें उसके विस्तार के लिए प्रयास करना है। मैं नहीं कहता कि उसे मैं उसे पूरी तरह से जैविक कर दूंगा। मैं उसमें कितना कांट्रिब्यूट करूंगा यह यानी और कितने और गांवों को आर्गेनिक कर सकता हूं यह लक्ष्य है।

अभी हम एफआरए पट्टा पर काम शुरू कर चुके हैं। एफआरए के पट्टा वाले किसानों को फलदार पौधों का रोपण करके उनकी इनकम को कैसे बढ़ा सकते हैं।

यहां कई जगहों पर गया जहां उद्वहन सिंचाई योजना में काम हो रहा था जहां मैंने देखा कि सिंचाई विभाग है उसके पास उद्वहन की योजना तो है पर खेत-खेत तक पानी पहुंचे उसमें कुछ कमियां थीं जिसे मैंने वापस से ठीक करवाकर किसानों को रबी की फसल लेने के लिए तैयार करना है।

एक सर्वे के स्तर पर काम चल रहा है कि जहां भी हमारी सदावाहनी नदियां हैं चाहे वो इंद्रावती हो, शंकिनी-डंकिनी हो तो इसके आजु-बाजू के निजी किसान जो खेती करने को इच्छुक हों तो उनके लिए नदी से पानी को कैसे पहुंचाया जा सके… इसके लिए उनके खेतों को इलेक्ट्रिफाइड किया जा सके ताकि वे नदी के पानी को उद्वहन करके अपने खेतों तक पहुंचा सकें। इसका सर्वे करवा लिया गया है। करीब 12 गांवो चिन्हाकित किए गए हैं जिसके लिए हम निश्चित तौर पर काम करेंगे। ताकि किसानों की इनकम को डबल किया जा सके। माननीय मुख्यमंत्री जी के निर्देश पर रागी, कोदो-कुटकी का रकबा बढ़ाने का हम काम कर रहे हैं। धान के बदले अन्य फसल को प्रोत्साहित करने का काम चल रहा है।

गोठानों पर

गोठान में लगातार गोबर खरीदी चल रही है। माननीय मुख्यमंत्री जी के निर्देश पर यहां गौ मूत्र की खरीदी शुरू कर दी गई है। अब गोठानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम किया जा रहा है जिसके तहत कुछ गोठानों में कड़कनाथ मुर्गी पालन के साथ मुर्गी व अंडो के उत्पादन और विक्रय का काम चल रहा है। इसके साथ-साथ बायोफ्लेक तकनीक है इसके तहत सीमित क्षेत्र में मछली पालन को एड किया हुआ है। इसके साथ ही अलग-अलग मल्टिपल एक्टिविटि को फोकस कर गोठानों में इंटरक्रापिंक कर सकें यह कोशिश चल रही है। जहां फलदार पौधों के माध्यम से गोठान आत्मनिर्भर होते जाएंगे। माननीय मुख्यमंत्री जी की मंशानुसार रूरल इंड्रस्ट्रियल पार्क बनाना है। इसी ओर हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें हर दिन कुछ ना कुछ नया वैल्यूएड करते चले जा रहे हैं।

दंतेवाड़ा के बारे में

दंतेवाड़ा से बचपन से मेरा संबंध रहा है। मेरे लिए तो यह होम डिस्ट्रिक्ट जैसा ही है क्योंकि 1998 से पहले यह सब तो एक ही बस्तर जिला का हिस्सा रहा। यहां काम करने की काफी संभावनाएं हैं। बहुत ज्यादा अर्पाचुनिटी है यहां का माहौल बहुत अच्छा है। हमारे लोग बहुत अच्छे हैं। जो भी क्वालिटी चीजे होती हैं उसे सपोर्ट करते हैं। सेंटिमेंटली मैं इस दंतेवाड़ा से बहुत ज्यादा जुड़ा हुआ हूं। बहुत बड़ी बातें ना करते हुए मैं यहां अपने रियलिस्टिक गोल पर फोकस कर रहा हूं। जिसमें सारे परिणाम जमीन पर दिखेंगे। बेसिक चीजों पर मैं बोलता हूं कि बुनियादी तौर पर प्रशासन का दायित्व निभाने में ज्यादा फोकस करता हूं। मसलन लोगों के आधार कार्ड, जाति-निवास प्रमाण पत्र, बैंक खाते, राशन कार्ड आदि जिससे अंतिम व्यक्ति का सीधा संबंध है उसकी जरूरत को पूरा करना है। यहां करीब 40 हजार हितग्राही चिन्हित हुए हैं जिनके लिए जाति प्रमाणपत्र का काम पूरा कर रहे हैं उनके लिए लेमिनेशन कर उन्हें प्रमाणपत्र दिया जा रहा है। अर्बन फेसिलिटी पर फोकस करने साथ-साथ आस-पास के गांवों को भी सुविधाएं मुहैया करवाने की कोशिश है क्योंकि समयबद्ध तरीके से शहरीकरण का विस्तार होता है विशेषकर एपीजे अब्दुल कलाम सर का एक विजन था के पीयूआरए (पुरा) योजना प्रोविजन आफ अर्बन एमिनिटी आफ रूरल एरिया के तहत काम करेंगे।

स्वास्थ्य के लिए

स्वास्थ्य के लिए कई बुनियादी चीजों पर मैं काम करना शुरू कर दिया हूं। जैसे कि एक विषय था कि जो कटेकल्याण का सीएचसी (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) और कुआकोंडा के सीएचसी की स्थिति बहुत खराब है बताया गया तो मैंने वहां विजिट किया और नए भवन के लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है वहां बेहतर से बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाई जाएंगी। वहीं सब हेल्थ सेंटर में जहां भवन जीर्ण-शीर्ण हो गई हैं उनके पुननिर्माण की योजना है। मिशन बेस पर सीएचसी और सब हेल्थ सेंटर स्वीकृत कर दिया गया है। ताकि कोई भी व्यक्ति स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित ना रहे। हम केवल और केवल इंफ्रास्ट्रक्चर पर ही काम नहीं कर रहे हैं। बल्कि हम ह्यूमन रिर्सोस पर भी काम कर रहे हैं। यहां मैंने स्कील्ड बर्थ अटेंडेंस की ट्रेनिंग शुरू करवा दी है। उसके बाद सुपरवाइजर और हेल्थ सुपरवाइजर को ट्रेंड करेंगे मतलब हम बुनियादी स्वास्थ्य जरूरतों को ध्यान में रखकर काम कर रहे हैं। विशेषकर जो महिलाओं और बच्चों से जुड़ा हुआ है। शादी के बाद बच्चे के गर्भधारण से लेकर छह साल तक माता और बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर काम हो रहा है। कोई भी गर्मवती माता बिना रजिस्ट्रेशन ना रहे यह लक्ष्य है। इसके बाद उसे समय के अनुसार दवा, टीका, पोषण पर काम किया है। जिला अस्पताल में दो-तीन बार विजिट कर चुका हूं। वहां पर जो भी कमियां दिख रही हैं उसे सुधारने का टास्क दे दिया गया है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगातार सुधार की संभावनाएं बनी ही रहती हैं। चिकित्सकों की उपलब्धता, विशेषज्ञ चिकित्सकों की उपलब्धता, उपलब्ध स्वास्थ्य उपकरणों की देखभाल और उपयोग की निरंतरता पर फोकस है।

पर्यटन की संभावना

वास्तव में हमारा दंतेवाड़ा इनक्रेडिबल है बस्तर इनक्रेडिबल है। यदि हम टूरिज्म को बोलें तो रियलिस्टिक एप्रोच से हम यहां आने वाले समय में टूरिज्म सर्किट डवलप किया जा सकता है। होम स्टे जैसी सुविधाएं यहां दी जा सकती हैं। वास्तव में हमारे यहां जिस तरह के झरने हैं,  माईजी का जो मंदिर है, ऐतिहासिक व पुरातात्विक धरोहर हैं, ट्राइबल कल्चर है… यानी एक ही जगह पर पर्यटन से जुड़ी हर चीज है। यहां बहुत ज्यादा पोटेंसियल है। हम यहां इसके लिए काम करेंगे। पर्यटन से रोजगार भी बढ़ेगा। कई देश तो केवल पर्यटन के रोजगार पर ही डिपेंड हैं।

खेल के लिए
दंतेवाड़ा जिले में करीब-करीब सभी क्लबों से मैंने बात की है यहां एक खेल परिसर बना हुआ है। आने वाले समय में उसे चालू करने की तैयारी है।

एक बात और…

दंतेवाड़ा में इससे पहले जो भी बेहतर काम हुए हैं मसलन डैनेक्स हो या छू लो आसमान या जावंगा एजुकेशन सिटी मेरी कोशिश ही है कि उसे और भी आगे ले जाया जाए…

(जैसा उन्होने बताया)