शिक्षक की पाती… सीएम के नाम…
स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा संचालित वेब पोर्टल और आन लाइन शिक्षा को लेकर एक शिक्षक पाठक ने अपनी पाती मुख्यमंत्री के नाम प्रेषित की है जिसे जस का तस प्रकाशित किया जा रहा है…
इस पाती में शिक्षक के कुछ सवाल हैं जिसका उत्तर उसे नहीं मिलने के कारण उसने यह पत्र प्रेषित किया है।
आदरणीय मुख्यमंत्री महोदय
जोहार
आपकी सरकार ने इस लॉक डाउन की अवसर पर बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखने के लिए आन लाइन पढ़ाने का प्रयास किया है जिसे लेकर अब कई सवाल जेहन में हैं।
पहला सवाल यह है कि किसी राज्य में शिक्षा की व्यवस्था से यदि अमीर—गरीब और संसाधन युक्त और संसाधन विहिन के मध्य एक लकीर खींच जाए तो क्या यह उचित है? ऐसे में दोनों वर्ग के मध्य स्पष्ट तौर पर भेद उत्पन्न हो जाएगा जिसे कैसे सर्व स्वीकार किया जा सकता है?
आपकी नई व्यवस्था से यही दुविधा खड़ी हो रही है। जिसके पास स्मार्ट फोन है चाहे वह शिक्षक हो, विद्यार्थी या अभिभावक उनका अपना एक वर्ग होता जा रहा है। जिनके पास नहीं है वे स्वयं के संबंध में क्या निर्णय लें?
बहुत से शिक्षकों की सेवानिवृति के करीब की आयु है ऐसे में वे अब फोन, कम्प्यूटर और लैपटॉप का प्रशिक्षण लेंगे? अफसरों का दबाव बढ़ गया है। वे कह रहे हैं कि उपर से आदेश है इसे हर हाल में करना है? पर कैसे? इसका रास्ता कोई सुझा नहीं रहा। बच्चे मिल नहीं रहे फिर भी उनके पंजीयन का दबाव और तरह—तरह के दबाव…
कोरोना जैसे महामारी की बेला पर पहले से ही शिक्षकों को तरह—तरह के दायित्वों के बोझ से युक्त किया गया। ये शिक्षक नाकेदारी भी कर रहे हैं और स्कूल के काम काज भी निपटा रहे हैं। अब उन पर इस तकनीकी शिक्षा के लिए माध्यम तलाशने का दबाव बढ़ाया जा रहा है।
जब सब कुछ बंद है तो उसकी पूर्ति कैसे की जाए? यदि यह प्रयास पहले से जारी रहते तो इसे आसानी के साथ विशेष परिस्थितियों में किया जा सकता था। पर फिलहाल परिस्थितियां विकट हैं।
शिक्षक कोरोना के महामारी के दौर पर विद्यार्थियों के लिए पोषण आहार का वितरण भी कर रहे हैं। क्या यह संभव है कि एक शिक्षक हर तरह के प्रयोग और उपयोग के लिए अपना सर्वस्व न्यौच्छावर करने के बाद भी चिंता मुक्त नहीं रह सकता?
माननीय मुख्यमंत्री जी शायद आपको यह पता भी नहीं हो कि आपके प्रदेश में शिक्षा विभाग में कितने एनजीओ काम कर रहे हैं और उनको पैसा कैसे मिल रहा है? ये एनजीओ पूरी तरह हवा—हवाई हैं। इनका काम दो कौड़ी का भी नहीं है। केवल उपर में बैठे अफसरों के साथ सांठ—गांठ करके धंधा करना ही एक मात्र उद्देश्य है। कृपया आप शिक्षकों की समस्या को गंभीरता से लेंगे और उचित मार्ग दिखाएंगे…
ऐसे ही समय में यह पाती आन लाइन शिक्षा को लेकर लिखने की कोशिश की है… मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि इस पत्र में भले ही मेरे भाव हैं पर विचार बहुसंख्य शिक्षकों का है…
यदि व्यवस्था संचालित हो रही है तो उस पर कुछ सवाल —
- अभी तक जहां सारा फोकस कक्षा पहली से 8 वीं तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए था। वहीं अब सारा ध्यान 9 वीं से 12वीं के बच्चों के लिए किया जा रहा है?
- हर दिन एक घंटा का क्लास सिर्फ एक सब्जेक्ट के लिए लिया जाएगा। इसका मतलब ये कि स्टूडेंट एक दिन में एक सब्जेक्ट का एक ही घंटा पढ़ाई कर पाएगा। फिर सिलेबस कैसे पूरा होगा?
- उन विद्यार्थियों का क्या जिनके पास ना फोन है ना लैपटॉप, कम्प्यूटर या फिर जहां इंटरनेट की सुविधा नहीं है? क्या इस समय उन्हें पढ़ने का अधिकार नहीं है? ऐसे बच्चों के लिए क्या व्यवस्था की गई है? उनका सिलेबस कैसे पूरा होगा? या फिर उन्हें बिना पढ़ाए ही अगले क्लास में भेज दिया जाएगा?
यदि आपको बुरा लगे तो माफ कर दीजिएगा…
सादर अभिवादन के साथ आपके राज्य का
एक शिक्षक