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छत्तीसगढ़ में परिवर्तन को लेकर दिल्ली में दंगल के पीछे की कहानी… आखिर क्यों भूपेश ने टीएस को नजरअंदाज करना शुरू किया?

सुरेश महापात्र।

फिलहाल छत्तीसगढ़ की गूंज दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में हो रही है। एक शांत और सौम्य राजनीतिक चेहरे के सामने आक्रामक राजनीति के पर्याय दिल्ली दरबार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए जुटे हैं। आज दोपहर तक दिल्ली में छत्तीसगढ़ के करीब 50—60 विधायक पहुंच चुके होंगे। इन विधायकों में कितने किसके पक्ष में हैं यह जान पाना कतई संभव नहीं है।

वैसे बहुत कम लोगों को यह याद होगा कि करीब 8—10 माह पहले कांग्रेस के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह यकायक रायपुर पहुंचे थे और सीएम भूपेश के साथ मुलाकात के बाद उल्टे पैर लौट गए थे। तब भी यह कयास थे कि दिग्गी राजा यूं ही कहीं आते—जाते नहीं हैं तो इस बार उनके आने—जाने का मकसद क्या रहा होगा? इस सवाल का जवाब किसी को नहीं मिला।

कहते हैं दिल्ली दरबार में छत्तीसगढ़ के राजनैतिक हालात का ब्यौरा पहुंचा था। उसे लेकर दिग्गी राजा सीएम भूपेश को अगाह करने के लिए पहुंचे थे। उन्होंने शीर्ष नेतृत्व की चिंता से अवगत कराया था या चेतावनी दी थी। यह ईश्वर ही जानें। पर कुछ तो हुआ था।

इसी के बाद प्रदेश में राजनैतिक तौर पर सतह पर साफ दिखने लगा था कि छत्तीसगढ़ में भारी बहुमत की मजबूत सरकार भीतर से खोखली होने लगी है। राजनीतिक द्वंद चरम पर पहुंचने लगा।

कोरोना काल में इस घटनाक्रम से पहले कई बैठकों में बतौर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव दिखते थे। पर उसके बाद यह बात भी सामने आने लगी कि विभाग की बैठकों में भी मंत्री होने के बावजूद टीएस सिंहदेव को नजरअंदाज किया जाने लगा। यदा कदा विधायकों के माध्यम से सिंहदेव पर राजनैतिक छींटाकशी की घटनाएं होने लगी।

सरगुजा के कांग्रेसी नेता साफ कह रहे हैं कि ‘टीएस सिंहदेव का राजनैतिक सफर पार्षद से शुरू होकर वेटिंग सीएम बनने तक पहुंचा है। इसलिए यह माना जाना कि उन्हें राजनीति की समझ नहीं है यह गलत होगा। उनकी शालीनता और सौम्यता को भले ही राजनीति में कमजोरी माना जाए पर यही उनका असल हथियार साबित होगा। यह समझने में बड़ी भूल कर बैठे सीएम भूपेश!’

साथ ही वे यह भी कहते हैं कि बतौर क्रिकेट खिलाड़ी सिंहदेव अक्सर क्रिकेट की भाषा में ही अपने उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। जब पहली बार ढाई—ढाई साल वाले सीएम की बात को लेकर रायपुर एयरपोर्ट पर सिंहदेव से मीडिया ने सवाल किया था कि यदि उन्हें आश्वासन के मुताबिक सीएम नहीं बनाया गया तो क्या वे भाजपा में शामिल हो जाएंगे? इसके जवाब में उन्होंने कहा ​था कि ‘यदि भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली को कप्तानी से हटाया जाएगा तो क्या वे पाकिस्तान के लिए खेलना शुरू कर देंगे?’

दरअसल मीडिया का एक तबका अपने सवाल से सिंहदेव को घेरने की कोशिश में जुटा था। जिसका जवाब उन्होंने बगैर आपा खोए साफ शब्दों में दे दिया था।

दरअसल कभी पार्टी के विधायकों और कभी मीडिया के सवालों से टीएस सिंहदेव को घेरने की कई कोशिशें की गईं। जिससे वे साफ तौर पर बच निकले। विधायक ब्रहस्पति सिंह के घटनाक्रम में सिंहदेव सदन के भीतर मास्टर स्ट्रोक लगा देंगे इसकी कल्पना तक मुख्यमंत्री भूपेश ने नहीं की ​थी।

ताजा घटनाक्रम के बाद राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि ब्रहस्पति सिंह के मामले में भूपेश एक भूल कर बैठे। जब उन्होंने दिल्ली तक यह खबर परोसी कि सीएम हाउस में आयोजित चाय—पार्टी में 54 विधायकों मौजूद थे।

यह संकेत भी दिल्ली के लिए ही था कि बतौर सीएम भूपेश के साथ खुले तौर पर विधायकों का सम​र्थन है। ऐसे में किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस तथ्य को अनदेखा ना किया जाए।

बताया जा रहा है कि वर्तमान संकट के लिए वामपंथियों का विरोध भी एक अह्म कारण है जिसके चलते भूपेश सरकार फिलहाल सत्ता के चेहरे को लेकर संशय में खड़ी है। लेमरू समेत कई और ऐसे प्रोजेक्ट जिसे लेकर विरोध है। कुछ में अडानी की फंडिंग भी है उसे लेकर भूपेश सरकार का रूख नरम पड़ा है। इसे लेकर वामपंथी साफ तौर पर विरोध में खड़े हैं। इसकी भी खबर दिल्ली में पहुंचाई गई है।

यह साफ दिख रहा है कि कांग्रेस के कई और बड़े चेहरे और मंत्री वर्तमान घटनाक्रम में पूरी तरह मौन हैं। जिनमें पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम ने भी किसी भी पक्ष से बयान नहीं दिया है। बताया जा रहा है कि प्रदेश में सरकार के कामकाज को लेकर मरकाम ने पहले ही अपनी जानकारी हाईकमान को साझा कर दी है।

राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा चेहरा बनकर उभरे अखिल भारतीय कांग्रेस के सचिव राजेश तिवारी को इस घटनाक्रम में किसी भी तरह से अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। भले ही वे उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की टीम में शामिल हैं पर वे टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल को बेहद करीब से पहचानते हैं।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर सीएम भूपेश बघेल ने अपने नंबर दो मंत्री टीएस सिंहदेव को नजरअंदाज करना शुरू क्यों किया? राजनीतिक सूत्रों का दावा है कि ‘भूपेश को पहले ही दिन से पता था कि ढाई बरस के बाद यह सवाल जरूर उठेगा कि दिल्ली में जो आंतरिक समझौता किया गया था उस पर बात होगी। इससे पहले ही वे सिंहदेव को राजनैतिक तौर पर कमजोर कर देना चाहते थे। पर इन सभी घटनाक्रम का असर उल्टा हुआ है।’

बहरहाल शुक्रवार को दिल्ली में कौन शुक्र मनाएगा और किस पर मंगल भारी होगा यह कहना कठिन है। कांग्रेस के सूत्र यह दावा कर रहे हैं कि राहुल गांधी या तो भरोसा करते हैं या पूरी तरह नजर अंदाज…।

बताते हैं छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजित जोगी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था। जब भरोसा टूटा तो दुबारा बात तक करना नसीब ना हो सका। इसलिए सभी इंतजार कर रहे हैं कि भूपेश यदि हाईकमान के एक दिन रूकने के निर्देश के बाद भी दिल्ली से रायपुर लौट आए तो वजह क्या रही होगी? यदि यह सही है तो फैसला आने के बाद निश्चित तौर पर प्रदेश की राजनीतिक फिजां में परिवर्तन साफ दिखने लगेगा। हो सकता है मंत्रियों के चेहरे से लेकर प्रशासन का रंग—ढंग सब बदल जाए…

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