तीन राज्यों की सरहद पर आस्था और इतिहास की संगम स्थली भद्रकाली सैलानियों की नजरों से ओझल,
जीवनदायिनी इन्द्रवती पहुँचकर गोदावरी में होती है समाहित, छत्तीसगढ़ के साथ तेलंगान, महाराष्ट की सीमाएं भी करती है स्पर्श,
पर्यटन की असीम संभावनाओं के बाद भी उपेक्षित है यह स्थल.
बीजापुर। बस्तर में काकतीय राजवंश की स्थापना के प्राचीनतम इतिहास पर गौर करें तो बीजापुर के भद्राकाली गांव का जिक्र सबसे पहले होता है। वो इसलिए कि वर्तमान तेलंगाना के वारंगल से काकतीय राजा अन्नमदेव भद्राकाली के इंद्रावती और गोदावरी दो नदियों के संगम स्थल से ही बस्तर में दाखिल हुए थे और भोपालपट्नम पर अपनी पहली जीत दर्ज कर बस्तर में काकतीय राजवंश की नींव रखी थी। मां भद्रकाली के मंदिर के लिए चर्चित बीजापुर का भद्रकाली गांव के समीप ही बस्तर की जीवनदायिनी इंद्रावती और दक्षिण की तरफ बहती गोदावरी दो नदियों का समागम होता है। संगम के इस पार छत्तीसगढ़ तो उस पार तेलंगाना और महाराष्ट की सीमाएं स्पर्श करती है। प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण यह स्थल प्राचीन महत्ता के नजरिए से भी महत्वपूर्ण है, बावजूद प्राकृतिक और ऐतिहासिक महत्ता के बाद भी भद्रकाली को पर्यटन पटल पर पहचान दिलाने की कोशिशें आज पर्यंत नहीं हुई है। यही वह स्थान है जहां से वर्ष 1324 में अन्नमदेव ने नागों के शासित क्षेत्रों में प्रवेश किया और बस्तर राज्य की स्थापना की । इसी संगम स्थली पर प्रार्थना करने के बाद अन्नमदेव ने अपना बस्तर विजय युद्धाभियान आरंभ किया था। यही वह स्थान है जहां से अस्सी के दशक में नक्सलवादी भोपालपट्नम में प्रविष्ठ हुए थे। यही संगम स्थली तीन राज्यों के बीच सांस्कृतियों का आदान प्रदान कर रही है। इंदा्रवती और गोदावरी नदियों का संगम भद्रकाली प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत सुंदर और महत्वपूर्ण है। वरिष्ठ साहित्यकार राजीव रंजन के अनुसार यह स्थान ऐतिहासिक दृष्टि से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वारंगल से बस्तर की ओर आए अन्नमदेव ने वर्ष 1324 में इसी स्थान से संगम को पार किया और भोपालपलट्नम में पहली जीत दर्ज कर काकतीय वंष की स्थापना की और फिर धीरे-धीरे बस्तर पर अपना अधिकार स्थापित किया। इस क्षेत्र में भद्रकाली माता का जो मंदिर है वह पुरातात्विक और आस्था की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यदि हम इन सब को इनकी समुचित महत्ता प्रदान करेंगे तो पर्यटन की दृष्टि से यह पूरा क्षेत्र महत्वपूर्ण हो सकता है।
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तीन राज्यों की सीमाओँ से घिरी है संगम स्थली
भद्रकाली गांव और संगम स्थली तक पक्की और फिर कच्ची सड़क का सफर कर पहुंचा जा सकता है। बीजापुर जिला मुख्यालय से भोपालपट्नम और इसके आगे ताड़लागुड़ा की तरफ बढ़ते भद्राकाली गांव पड़ाव में पड़ता है। थाने के समीप से एक कच्ची सड़क गांव और संगम की तरफ जाती है। महाराष्ट के अलावा तेलंगाना की सीमाएं संगम को स्पर्श करती है, लिहाजा यहां तापमान अधिक होता है। दोपहर के वक्त तेज गर्मी तो वही शाम ढलने के हवा में ठंडक महसूस होती है। संगम के इर्द-गिर्द बालू के अलावा चट्टानी श्रृंख्लाएं मौजूद है। जिनके मध्य पानी का ठहराव भेड़ाघाट की प्रतिकृति प्रतीत होती है। अस्थियां विसर्जन के उद्देष्य से लोग हमेशा से यहां पहुंचते रहे हैं, जिसके चलते यह स्थल आस्था का केंद्र भी बना हुआ है। वही संगम की नैसर्गिक सुंदरता, सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त का विहंगम नजारे को देख इस स्थल पर पर्यटन की संभावनाएं और भी बढ़ जाती है।
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सुविधाओं से मिलेगा पर्यटन को बढ़ावा
टेकरी पर स्थित मां भद्राकाली के मंदिर तक पक्की सड़क के अलावा संगम स्थली तक पक्की सड़क बन जाने के साथ यहां पर्यटकों की सहूलियत के लिए विश्रामगृह, पेयजल, शौचालय आदि की समुचित व्यवस्था हो जाए तो ऐतिहासिक, धार्मिक और नैसर्गिक सुंदरता से परिपूर्ण भद्रकाली का पर्यटन के मामले में अवष्य पहचाना जाएगा।