सभी जानते हैं यहां भाजपा का गणित बेहद कमजोर है और कांग्रेस में लोग भी सिंधिया जैसे तो नहीं हैं…
- दबी जुबां से… / सुरेश महापात्र।
छत्तीसगढ़ में जब से भूपेश बघेल की सरकार कायम हुई है तब से ही दिल्ली और रायपुर के बीच रस्सा कसी का खेल चल रहा है। दिल्ली में पीएम मोदी किसी की सुनते हों ऐसा किसी को नहीं लगता। छत्तीसगढ़ में भूपेश किसी को सुनते हों ऐसा भी किसी को नहीं लगता! दोनों अपनी मर्जी के मालिक हैं। कभी धान को लेकर तो कभी धन को लेकर केंद्र व राज्य के बीच टकराव प्रत्यक्ष है। कोरोना को लेकर राज्य सरकार की संजीदगी देखते ही बनी। केंद्र सरकार ने राज्यों को कोरोना से अलर्ट का पत्र भेजा तो सीएम भूपेश बाबू गंभीर हो गए। इतना गंभीर कि बाबा को ही भूल गए।
दिल्ली से लौटे और आनन—फानन में स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों का बैठक ले लिया। बैठक में पूरा अमला था पर स्वास्थ्य मंत्री नहीं थे… स्वाभाविक था कि लोग तो पूछेंगे ही कि बाबा कहां चले गए। मीडिया ने बाबा को कुरेदा तो वे बोल पड़े कि ‘मैं था तो यहीं पर जब किसी ने बताया ही नहीं तो…’ यानी समझदार को ईशारा काफी है। मध्यप्रदेश में टूटन—फूटन के बाद राजस्थान को समझाईश दी गई। छत्तीसगढ़ का हाल खुद भूपेश बाबू बताकर आए थे तो उनका आत्मविश्वास मजबूत होना ही था। सभी जानते हैं यहां भाजपा का गणित बेहद कमजोर है और कांग्रेस में लोग भी सिंधिया जैसे तो नहीं है…
छत्तीसगढ़ में छापा और सियासत…
इस बार कुछ ज्यादा ही बड़ा हो गया। इनकम टैक्स विभाग ने छत्तीसगढ़ में छापा मार दिया। सरकार भी परेशान और मीडिया भी पशोपेश में क्या दिखाएं? क्या छापें? क्योंकि कोई कुछ बता ही नहीं रहा था। हां इतना जरूर है कि आयकर विभाग कभी इतना बेबस नहीं दिखा जितना इस दफे छत्तीसगढ़ में उसे देखा गया। हमेशा यातायात के मसले पर बहुत सी बातों का अनदेखा करने वाली पुलिस ने छापामार दल के वाहन जब्त कर लिए। कारण बताया नो पार्किंग जोन में खड़े किए गए थे! खैर बात यह नहीं है कि उस दौरान क्या हुआ और क्या नहीं। बात यह है कि उसके बाद क्या हुआ?
छापा के बाद दंतेवाड़ा के कलेक्टर को याद आया कि डिपाजिट 13 में ग्राम सभा की जांच की रिपोर्ट आ चुकी है। उन्होंने कव्हर लैटर बनाकर रायपुर भेज दिया। जांच में जो बात आई थी उससे हंगामा मचना स्वाभाविक था। एनएमडीसी द्वारा एनसीएल को खदान देने के लिए जो ग्राम सभा बुलाई गई थी उसे जांच रिपोर्ट में फर्जी बताया गया। इसी की आड़ में एनसीएल ने खनन का टेंडर आमंत्रित कर अडानी इंटर प्राइजेस को खनन ठेका दे दिया था। यह खेल चुनाव की अधिसूचना के करीब सप्ताह भर पहले जारी किया गया था। यानी आनन—फानन में अडानी बैलाडिला में इन हो गए थे।
कलेक्टर ने 5 मार्च को रिपोर्ट भेजी इसी दिन खनिज विभाग ने एनसीएल को नोटिस थमा दिया कि नियमानुसार समय पर खनन प्रारंभ नहीं करने के कारण क्यों ना इसे वापस ले लिया जाए। इसके बाद वन विभाग हरकत में आया और एनसीएल के पूर्व सीईओ व्हीएस प्रभाकर को उस मामले में गिरफ्तार कर लिया जिसे करीब एक बरस पहले दर्ज किया था। वन विभाग ने आदिवासियों की मांग के बाद अवैध कटाई का मामला दर्ज किया था। पर इसमें माना जा रहा है कि कार्रवाई तब हुई जब भूपेश बाबू की ओर से हरी झंडी दी गई।
ईंट का जवाब पत्थर…
भूपेश बाबू को ईंट का जवाब पत्थर से देना आता है यह अब बताने की जरूरत नहीं। उन्होंने आईटी और ईडी का जवाब अडानी से दे दिया है। यानी अभी आगे और लड़ाई की पूरी गुंजाईश…! बस्तर में बैलाडिला के डिपाजिट 13 में एनसीएल द्वारा अडानी की कंपनी को खनन ठेका दिए जाने का मामला तूल पकड़ा था। आरोप था कि पर्दे के पीछे से पूरा खेल कर दिया गया। आपके इसी बंदे ने ही इस मामले को बाहर निकालकर दिखाया था। आदिवासी अपने अराध्य नंदराज पर्वत पर अडानी को खनन ठेका दिए जाने को लेकर नाराज हुए और इसके बाद बड़ी कहानी हुई। पर इस कहानी में नया मोड़ तब आया जब आईटी विभाग ने छत्तीसगढ़ में ऐसे छापा मारी की जैसे वह किसी मामले की पड़ताल में जुटी हो…
केवल कयास ही कयास…
मीडिया की मजबूरी आखिर दर्शक और पाठकों तक खबर पहुंचाना भी तो है। सरकार की मजबूरी को ऐसे समझा जा सकता है कि उसे क्या हो रहा है मामले में बड़े—बड़े मीडिया घराने थोथी और भोथरी सूचना दिखाने और छापने के लिए चिन्हे गए। पहले दिन जो छापा उसका खंडन भी दूसरे दिन उसी जगह पर छापकर कर दिया। हां भई ऐसा ही हुआ।
ऐसा पहली बार तो हुआ नहीं पर यह छापा सीएम तक आंच पहुंचाने वाला रहा। आखिर उनकी निज सचिव के निवास तक पहरेदारी हुई। तालाबंदी हुई। भारी नौटंकीबाजी के बीच उनकी निज सचिव सामने आईं और फिर जो हुआ सबने देखा। इससे पहले सीएम रमन के करीबी सचिव बीएल के निवास पर भी छापा पड़ा था… तब भी कई बड़ी—बड़ी बातें सामने आईं थी। विशेषकर सीएम रमन बाबू के हिसाब—किताब को लेकर…!
करीबी ही लड़ रहे…
छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में यह जबरदस्त चर्चा है कि इस छापे की राजनीति के पीछे किसका हाथ है? दबी जुबां से लोग कह रहे हैं कि अमन बाबू ने ढांढ बाबू को अपना जलवा दिखाया है। कुछ तो यह भी कह रहे हैं कि सीएम के करीबी दो ब्यूरोक्रेट के बीच जबरदस्त रस्सा कसी चल रही है। वे दोनों एक दूसरे को निपटाने में पूरी ताकत लगाए बैठे हैं। दोनों एक दूसरे को लंगी मारकर आगे दिखने में सीएम को यूज करने से बाज नहीं आ रहे…। एक को सीएम ने थोड़ा किनारे लगा दिया है। वहीं दूसरे पर फिलहाल वरदहस्थ ही है। बता रहे हैं कि राजदार के साथ वैसा ही सलूक किया जाता है जैसा अपनी परछाई के साथ लोग करते हैं। रहती भी है और नहीं भी बस उजाले का फरक होता है।
और अंत में…
राजकाज में इतना समझ लीजिए कि शिक्षा विभाग में जो हो रहा है उसकी समझ शिक्षा मंत्री को छोड़ सभी को है…