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शिक्षक की पाती… सीएम के नाम…

स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा संचालित वेब पोर्टल और आन लाइन शिक्षा को लेकर एक शिक्षक पाठक ने अपनी पाती मुख्यमंत्री के नाम प्रेषित की है जिसे जस का तस प्रकाशित किया जा रहा है… इस पाती में शिक्षक के कुछ सवाल हैं जिसका उत्तर उसे नहीं मिलने के कारण उसने यह पत्र प्रेषित किया है। आदरणीय मुख्यमंत्री महोदयजोहार आपकी सरकार ने इस लॉक डाउन की अवसर पर बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखने के लिए आन लाइन पढ़ाने का प्रयास किया है जिसे लेकर अब कई सवाल जेहन में हैं।

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जेपी मूवमेंट से क्यों अलग है आज का छात्र आंदोलन?

सुदीप ठाकुर. ” मैंने छात्रों से कहा है कि वे एक साल के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दें, ताकि वे पूरी तरह से खुद को इस आंदोलन के लिए समर्पित कर सकें। इस आंदोलन को उन्हीं ने शुरू किया है और इसे सफल बनाना उनकी जिम्मेदारी है। यदि कॉलेज बंद हो जाते हैं, तो उनका कुछ खास नुकसान नहीं होगा, बल्कि इससे उन्हें फायदा ही होना है। शिक्षा प्रणाली उन्हें कुछ नहीं सिखा सकती। यह उन्हें किसी काम के लिए प्रशिक्षित नहीं कर सकती। वे जिस दुनिया में रह रहे

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यह महज पाठ्य पुस्तक निगम का मसला नहीं बल्कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार का मवाद है जो अब बह रहा है…

मुद्दा / सुरेश महापात्र। छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम के महाप्रबंधक अशोक चतुर्वेदी के आरोप पत्र के जवाब में कई पत्र मेरे वाट्स एप पर भेजे गए हैं। जिनके अध्ययन से एक बात तो तय है कि मसला महज थोड़ा बहुत अहं की लड़ाई का नहीं है बल्कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल में 15 बरस तक निगम मंडल की आड़ में भ्रष्टाचार का जो खेल होता रहा उसका मवाद बह रहा है। वर्तमान कांग्रेस सरकार ने फिलहाल सभी निगम मंडलों को सीधे मंत्रियों के अधीन दे रखा है। इससे यह

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इतिहास पढ़कर सिर धुनते रहिए… 1947 बनाम् 2019 का बहस… गांधी, सावरकर, गोड़से और हिंदुस्तान की कहानी…

अपनी बात / सुरेश महापात्र हिंदुस्तान में बहुत कुछ ठीक चल रहा है। 2019 आने वाले समय में इतिहास में बिल्कुल उसी तरह दर्ज हो रहा है जैसा 1947 में हुआ। बस फरक इतना है कि 1947 में खबरें धीमे से और गंभीरता के साथ स्थाई तौर पर पहुंचती थीं, 2019 में खबरें हर पल बदल जाती हैं और खबरों का ट्रेंड भी सोशल मीडिया के हिसाब से बदलता रहता है। हिंदुस्तान की आजादी के बाद जो बहस नेपथ्य में रही और बार—बार प्रभावित करती रही उन्हीं में से अयोध्या

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अपने अपने चाणक्य…

सुदीप ठाकुर महज तीन दिनों के भीतर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा करते समय देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन से बन रही सरकार के बारे में टिप्पणी की थी कि यह तीन पहियों की ऐसी गाड़ी है, जिसका कोई भी पहिया एक दिशा में नहीं चल सकता! फडणवीस ने चाणक्य द्वारा लिखी गई किताब ‘अर्थशास्त्र’ पढ़ी होती, तो शायद यह टिप्पणी नहीं करते। चाणक्य ने इस महान ग्रंथ के सातवें अध्याय में लिखा था, ‘जिस प्रकार गाड़ी का एक पहिया

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लेमरू एलीफेंट रिजर्व की घोषणा ऐतिहासिक फैसला

बघेल सरकार ने कोयला भंडारों के खनन से मिलने वाले अरबों रुपए के राजस्व को ठुकरा कर साल के उस जंगल को बचा लिया है, हम दोबारा हासिल नहीं कर सकते थे. और ऐसा करना आज की तारीख में आसान तो बिल्कुल नहीं था. राजेश आर जोशी. (फेसबुक वाल से साभार ) रायगढ़, धरमजयगढ़ और कोरबा के बेशकीमती साल के जंगलों के नीचे दबे अरबों रुपए के कोयले की जगह 2000 वर्ग किलोमीटर में फैले इलाके को हाथियों के अभयारण्य के रूप में घोषित करने का छत्तीसगढ़ का फैसला कई

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25 हजार पेड़ काटने अडानी की कंपनी एनएमडीसी के ठेकेदारों के फेरे लगाती रही, टेंडर फार्म भी भेजा पर सभी ने हाथ खड़े किए… फिर कौन तैयार हुआ पेड़ की कटाई के लिए? बड़ा सवाल…

इम्पेक्ट न्यूज. किरंदुल. अडानी की कंपनी ने डिपाजिट 13 में पेड़ कटाई के लिए अनुमति मिलने के बाद सबसे पहले एनएमडीसी में काम कर रहे नियमित ठेकेदारों के पास अपना नुमाइंदा भेजा और साथ में एक एग्रीमेंट फार्म। इस फार्म में निर्धारित जगह के पेड़ों की कटाई के लिए अनुबंध किया जाना था। इम्पेक्ट से चर्चा में कुछ ठेकेदारों ने स्पष्ट तौर पर स्वीकार किया कि उन्हें पेड़ कटाई काम के लिए अनुबंधित करने की कोशिश एईएल ने की थी। पर साम​​र्थ्य का अभाव बताकर काम करने से इंकार कर

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अगर एन बैजेंद्र कुमार ‘CMD’ नहीं होते तो क्या ‘NCL’ के रास्ते अडानी की ‘AEL’ का प्रवेश संभव नहीं ​था…?

विशेष रिपोर्ट / सुरेश महापात्र — क्रमश: 3. एनएमडीसी बै​लाडिला के खदान डिपाजिट—13 के खनन के लिए अडानी इंटर प्राइजेस को 25 वर्ष का ठेका मिलने के बाद कई सवाल तैर रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर एन बैजेंद्र कुमार सीएमडी नहीं होते तो क्या एनसीएल के रास्ते अडानी की एईएल का प्रवेश संभव नहीं था…? इसका जवाब ‘हां’ है। आम पाठकों को भले ही यह समझ में नहीं आ रहा हो कि बैलाडिला के लौह अयस्क की खदान क्रमांक —13 जिसे डिपाजिट—13 के नाम से

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​सीएमडी एन बैजेंद्र कुमार के फैसले के खिलाफ लामबंद हो रहे आदिवासी, डिपाजिट—13 में बसे इष्ट देवता को बचाने किरंदुल पंहुचे हजारों आदिवासी…

सुबह 4 बजे से आंदोलन​कारियों ने संभाला मोर्चा, प्रथम पाली के कर्मचारी नहीं जा सके कार्यस्थल, उत्पादन प्रभावित होने की आशंका धीरज माकन एनएमडीसी के डिपाजिट—13 को अडानी की कंपनी को चोरी—छिपे तरीके से खनन के लिए सौंप दिए जाने के बाद बैलाडिला की लौह अयस्क की पहाड़ी तपने लगी है। तपिस का प्रभाव इस कदर बढ़ गया है कि आदिवासियों ने उस पहाड़ को ही घेरना शुरू कर दिया है जिसे अडानी को सौंप दिया गया है। इसके लिए दबे छिपे स्वर में एनएमडीसी के सीएमडी एन बैजेंद्र कुमार

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बैलाडिला की डिपाजिट—13 में खेल : चालाकी देखिए, आईएएस को मोहरा बना दिया सरकार ने…

विशेष रिपोर्ट / सुरेश महापात्र – क्रमश: 2 हां, यह बात पूरी तरह से तथ्यात्मक है। बैलाडिला के डिपाजिट—13 के लिए जो खेल पर्दे के पीछे से खेला जा रहा था उसमें सबसे बड़ी कड़ी सीएमडी स्वयं ही थे। एक प्रकार से सरकार ने आईएएस को मोहरा बनाकर अपना काम निकाल लिया। बस्तर के खनिज संसाधनों को पूंजीपतियों को सौंपने के पीछे भले ही सरकार की मंशा कुछ और ही हो पर एनएमडीसी के लिए सुरक्षित डिपाजिट के एईएल को सौंपने में कारण कुछ और ही प्रतीत हो रहा है। छत्तीसगढ़

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