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वर्तमान, कांग्रेस का संक्रमण काल है… जनमानस का विश्वास पाने संघर्ष ही विकल्प…

सुरेश महापात्र। कर्नाटक, मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के भीतर मचे घमासान के बाद यदि लोगों को लग रहा है कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस ऐलान के फलीभूत होने का वक्त आ गया है कि हिंदुस्तान कांग्रेस मुक्त हो जाएगी। यह कहना जल्दबाजी और तात्कालिक घटनाक्रम पर आधारित निष्कर्ष मात्र साबित हो सकता है। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान में सचिन पायलेट के विद्रोह के अपने कारण हैं और इससे कांग्रेस को हो रहे नुकसान को कांग्रेस संगठन के संक्रमण काल से जोड़कर देखा जाना चाहिए। कांग्रेस

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साठ का दशक: तब पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश से बंजारे मवेशियों को लेकर बीजापुर पँहुचते थे.(यादों के झरोखे से..)

“बस्तर संभाग के वरिष्ठ पत्रकार एस करीमुद्दीन ने अपने यादों के झरोखे से बीते बस्तर की तस्वीर बताई है…  जिसे सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत किया गया है”  पड़ोसी राज्य आंध्रप्रदेश इलाके में 60 की दशक में बंजारा परिवार हर साल बीजापुर अपने पालतु जानवरों के साथ आया करते थे। और बीजापुर के जंगलों में अपने जानवरों को चराया करते थे। उस समय वन विभाग का सख्त कानून था कि पालतु जानवरों को जंगल में चराने के लिए भी इजाजत लेनी पड़ती थी। बस्तर में सहज ही इजाजत मिल जाती

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साठ का दशक: जब फ़िल्म अभिनेता शम्मी कपूर भी शिकार खेलने बीजापुर आये थे..(यादों के झरोखे से)

“बस्तर संभाग के वरिष्ठ पत्रकार एस करीमुद्दीन ने अपने यादों के झरोखे से बीते बस्तर की तस्वीर बताई है…  जिसे सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत किया गया है” अविभाजित बस्तर जिले में बीजापुर क्षेत्र ने जल, जंगल ,जमीन और जानवर के संदर्भ मंे देश दुनिया में अपनी अलग पहचान बनायी. यहां वन्य जीवों की बहुलता के चलते यह स्थान पूर्व काल में शिकारियों को अपनी ओर आकर्षिक करता था. 60 के दशक में इस इलाके में शिकार करने के लिए देश के साथ-साथ विदेश के भी शिकारी गर्मी के दिनों

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साठ का दशक : तब जगदलपुर से भोपालपटनम तक का सफर का मतलब…

बस्तर संभाग के वरिष्ठ पत्रकार एस करीमुद्दीन ने अपने यादों के झरोखे से बीते बस्तर की तस्वीर बताई है… जिसे सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत किया गया है। जगदलपुर से भोपालपटनम तक का सफर बड़ा रोमांचक रहा करता था. 60 के दशक तक. सुबह आठ बजे जगदलपुर से आनंद ट्रान्सपोर्ट कंपनी की एक बस चलती थी, जो रात आठ बजे के बाद करीब 12 घंटे की लगातार यात्रा के बाद भोपालपटनम पहुंचती थी. बीजापुर से भोपालपटनम तक की यात्रा के लिए नैमेड़ के हेमंनदास सेठ की एक बस चला करती

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