मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के बाद छत्तीसगढ़ में विधायकों पर LIB रख रही नज़र… बस्तर में असंतोष की सुगबुगाहट…
इम्पेक्ट न्यूज. रायपुर।
मध्यप्रदेश में तख्ता पलट के बाद कांग्रेस में जो हालत है वह किसी से छिपी नहीं है। इसके बाद धीरे—धीरे राजस्थान में भी सुगबुगाहट ने छत्तीसगढ़ के भीतर बेचैनी बढ़ा दी है। छत्तीसगढ़ में सूत्रों की मानें तो एलआईबी की टीम अब ऐसे विधायकों की गतिविधियों पर करीब से नजर रख रही है। बस्तर से मिली खबरों के मुताबिक एलआईबी के अफसर विधायकों के करीबियों को लगातार टटोल रहे हैं।
इम्पेक्ट से बातचीत में एक बेहद संवेदनशील कांग्रेसी नेता ने यह स्पष्ट किया कि उनसे भी एलआईबी ने पूछताछ की। पर मामला संवेदनशील होने के कारण इस बात की जानकारी हम नहीं दे सकते कि किसी विधायक और किस कार्यकर्ता से यह बातचीत की गई है। पर ऐसे ही दो और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने इस बात की पुष्टि की कि उनसे भी विधायक व सांसद को लेकर सवाल पूछा गया था। पर नहीं लगता कि ये सवाल किसी प्रकार से राजनीतिक उद्देश्यों को लेकर किया गया हो।
ज्ञात हो कि कांग्रेस के पास बस्तर की 12 की 12 सीटों पर विधायक हैं। यहां से केवल कोंटा विधायक कवासी लखमा को मंत्री पद दिया गया है। इसके अलावा लखेश्वर बघेल को बस्तर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष पद के साथ कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है। इसके अलावा विक्रम मंडावी को बविप्रा उपाध्यक्ष और केशकाल विधायक को भी पद देकर संतुष्ट करने की कोशिश की गई है।
दंतेवाड़ा में महेंद्र कर्मा की उत्तराधिकारी देवती कर्मा और केदार कश्यप को पराजित करने वाले चंदन कश्यप के साथ सीनियर विधायक मनोज मंडावी भी पद के इंतजार में हैं। ऐसे में बस्तर से सरकार के खिलाफ किसी प्रकार की भी आवाज उठने से पहले संभालने के लिए खुफिया तंत्र का इस्तेमाल अगर होता भी है तो कोई बड़ी बात नहीं है।
बताया जा रहा है कि शनिवार को यकायक मंत्री कवासी लखमा का पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर दिया गया बयान और संपत्ति के जांच की मांग के अपने राजनीतिक निहितार्थ हैं। बस्तर में लखमा के मंत्री पद को लेकर असंतोष है। इससे भी सरकार के खिलाफ यकायक कांग्रेस के विधायक और कार्यकर्ताओं को एकजुट होने से रोकना सबसे बड़ी चुनौती है।
शुक्रवार को बस्तर जिले के एक कांग्रेस नेता ने इम्पेक्ट से चर्चा में साफ कहा कि सरकार बनने के बाद जो कुछ हो रहा है वह ठीक नहीं है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मेहनत के बाद हक नहीं मिल पा रहा है। मंत्रियों का नाम लेकर कार्यकर्ता ने कहा कि अब भी भाजपा के दौर के सप्लायर और ठेकेदार अपना काम साध रहे हैं।
इस बीच बस्तर मे पूर्व कलेक्टर अयाज तंबोली के रवैये को लेकर भी अब सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेसियों का कहना है कि कार्यकर्ताओं ने संतोष बाफना और कमल चंद्र भंजदेव के खिलाफ संघर्ष किया। कांग्रेस की सरकार में उनके ही जिला अधिकारियों ने उनके हित में बड़ा फैसला देकर अपना हित साध लिया। कांग्रेसी मुंह ताकते बैठे हैं।
बताया जा रहा है कि पूर्व विधायक को पुराना कोर्ट परिसर से लगा करीब 2400 वर्ग फीट जमीन तंबोली ने अलाट कर दिया है। इस फैसले को कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी चल रही है। इसके अलावा बस्तर राजपरिवार के अधिकार से जुड़े बड़े मामले में तंबोली ने 50 साल से अटके मामले का निपटारा कर दिया है। इस फैसले के राजनीतिक मतलब निकाले जा रहे हैं।