#BRAND दंतेवाड़ा विकास के ‘दशावतार’ स्वरूप का पर्याय बने ‘दीपक’
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- सुरेश महापात्र।
बीते ढाई दशक में दंतेवाड़ा ने अपने को गढ़ा और अब ब्रांड दंतेवाड़ा ने बदलाव को अंगीकृत किया…
अविभाजित मध्यप्रदेश के दौर में 25 मई 1998 को अविभाजित बस्तर जिले का प्रशासनिक तौर पर पहला बंटवारा हुआ तो दक्षिण में दंतेवाड़ा और उत्तर में कांकेर जिला का उदय हुआ। अगले दो दिन के भीतर दंतेवाड़ा का एक पृथक जिला के तौर पर 25वें बरस का सफर शुरू हो जाएगा।
25 बरस पहले के दंतेवाड़ा से लेकर अब के दंतेवाड़ा में एक बड़ा फासला साफ दिखाई देने लगा है। जिला अधिकारी के तौर पर भले ही हर अधिकारी ने अपनी छाप छोड़ी है। पर एक दशक पहले जिस तरह की बदलाव की शुरूआत दंतेवाड़ा में दर्ज की गई थी उसे बीते दो बरस में पंख लग गए हैं। छोटी—छोटी जरूरतें पूरी करने वाली योजनाओं से लेकर ब्रांड दंतेवाड़ा के माध्यम से दंतेवाड़ा का कायाकल्प कर दिया गया है।
इसके लिए वर्तमान कलेक्टर दीपक सोनी की मुक्त कंठ से प्रशंसा होनी ही चाहिए। उन्होंने एक साथ दर्जनभर योजनाओं के क्रियान्वयन पर अपना फोकस किया। अब नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा सुरक्षा और विश्वास के बूते विकास की नई इबारत लिखता दिखाई दे रहा है। वर्तमान में दंतेवाड़ा विकास के ‘दशावतार’ स्वरूप का पर्याय बने ‘दीपक सोनी’ ने सबसे बड़ा बदलाव प्रस्तुत कर दिया है।
कहा जाता है छोटी प्रशासनिक इकाइयों से आम नागरिकों की जरूरतें आसानी से पूरी होती हैं और क्षेत्रीय विकास की योजनाओं का क्रियान्वयन आसानी से करना संभव हो पाता है। संभवत: इसी परिकल्पना के क्रियान्वयन को साकार करने के लिए दंतेवाड़ा ने बेहद पिछड़ेपन के साथ अपनी शुरूआत की थी। तब ना तो दफ्तर के लिए पर्याप्त भवन थे और ना ही अधिकारियों के निवास के लिए पर्याप्त संसाधन। पर अब दक्षिण बस्तर के प्रवेश द्वार जावंगा से लेकर किरंदुल तक जगमगाता दंतेवाड़ा बदलाव का प्रतीक बन चुका है।
तहसील मुख्यालय से सीधे जिला मुख्यालय बनने वाले दंतेवाड़ा की बुनियाद भी ग्राम पंचायत में पड़ी थी। अब यह नगर पंचायत से नगरपालिका के सफर को पूरा कर चुका है। सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और शुद्ध पेयजल की बुनियादी समस्या से जुझते इस इलाके में माओवाद सबसे बड़ी चुनौती रहा। भले ही इस चुनौती का संपूर्ण समाधान नहीं हो सका है। बावजूद एक बड़े इलाके तक इसकी सुलभता साफ महसूस की जा सकती है।
एक समय था जब डेढ़ दशक पहले माओवादियों ने अंदरूनी इलाकों में स्कूल भवनों का गिरा दिया था। अब इन भवनों को गिराने वाले माओवादी ही मुख्यधारा में शामिल होकर इसका नव निर्माण करते दिख रहे हैं। शुद्ध पेयजल, सड़क और पुलिया की मांग बढ़ी है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता को लेकर ग्रामीणों की सोच में बड़ा बदलाव आया है। यह बदलाव साफ तौर पर प्रशासन की अंतिम व्यक्ति तक पहुंच का नतीजा है।
दंतेवाड़ा में दृष्टिगोचर होते बदलाव निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के परिकल्पना का नतीजा हो पर यह जिले में राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व के साझा सामन्जस्य का परिणाम भी है। बुनियादी समस्याओं के निराकरण के साथ नवाचार की प्रवृत्ति ने दंतेवाड़ा जिले की छवि को सिरे से बदल दिया है। डैनेक्स जैसे ब्रांड ने दंतेवाड़ा का परचम बाहरी दुनिया में फहराया है। आज इसी ब्रांड नाम के साथ दंतेवाड़ा महानगरों में चिन्हा जाने लगा है। इस ब्रांड के सहारे रोजगार, आर्थिक विकास और सम्मान का नवोदय साफ दिखाई दे रहा है।
प्रशासन का काम अंतिम व्यक्ति तक सुविधाओं को पहुंचाने का होता है। जब जिले के नक्सल प्रभावित कई इलाकों में लंबे समय तक काम करते हुए पुलिया निर्माण की देरी से लोगों की दिक्कतों की बात आई तो प्री फेब्रिक्रेटेड लोहे के पुलियों के निर्माण से सहज सुगम व्यवस्था की शुरूआत की गई। अतिसंवेदनशील इलाकों में ऐसे 11 पुलों का निर्माण किया गया है। जिससे ये इलाके अब बारिश में भी सुगम बने रह सकेंगे। बारसूर में छिंदनार का पुल का काम पूरा हो जाना भी दक्षिण बस्तर के हिस्से की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। जिसका श्रेय जिला व पुलिस प्रशासन की टीम को दिया जाना ही चाहिए।
माओवादियों के आत्मसमर्पण के लिए अनुकुल वातावरण का निर्माण और उसके क्रियान्वयन से दंतेवाड़ा में बहुत कुछ बदला है। आत्मसमर्पित माओवादियों के जीवन के बदलाव की कई कहानियां दक्षिण बस्तर में दर्ज हैं। भूपेश है तो भरोसा है के मंत्र से विकास के मार्ग पर दंतेवाड़ा में परिवर्तन की वर्तमान तस्वीर को ‘बदलाव के दशावतार’ से साफ तौर पर समझा जा सकता है।
डैनेक्स ब्रांड नवा दन्तेवाड़ा गारमेन्ट फैक्ट्री : मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के द्वारा गरीबी उन्मुलन के विभिन्न योजनाओं में से जिला प्रशासन ने महिला आत्मनिर्भता हेतु नवा दन्तेवाड़ा गारमेन्ट फैक्ट्री की शुरूआत 31 जनवरी 2021 को गीदम विकासखण्ड के ग्राम पंचायत हारम में की गई है। इससे बने कपड़ों को डेनेक्स ब्रांड का नाम दिया गया है। डेनेक्स का अर्थ है ‘दन्तेवाड़ा नेक्स्ट’। इस ब्रांड में दन्तेवाड़ा जिले की समृद्धि, परम्परा एवं सस्ंकृति की झलक परिलक्षित होती है। अब तक 770 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है। गारमेंट फैक्ट्री की दुसरी यूनिट बारसूर में स्थापित की जा चुकी है। विकासखण्ड कटेकल्याण में दिसम्बर से शुरू की गई। गीदम अंतर्गत छिंदनार में डेनेक्स की अन्य यूनिट स्थापित करने के तैयारी चल रही है। चारों डेनेक्स में 1200 परिवारों को रोजगार देने का लक्ष्य है। अब तक चलित फैक्ट्रियों से राशि 41 करोड़ रूपये का 6 लाख 85 हजार कपड़ों का लॉट बैंगलूरू से अन्य स्थानों के लिए रवाना किया जा चुका है। इसका विक्रय पूरे देश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक हो रहा है।
पूना माड़ाकाल सेल की स्थापना : गरीबों को सशक्त बनाने उनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए रोजगार का अवसर दिया जा रहा है। अपना जीवन यापन करने के लिए जीविकोपार्जन के लिए जिले मे पूना माड़ाकाल सेल के तहत स्वरोजगार तथा रोजगार के अवसर प्रदान किया जा रहे हैं। आज के समय में स्वरोजगार बेरोजगारी दूर करने का अति उत्तम विकल्प है जिससे जिले की उन्नति भी हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में आम नागरिकों की सामाजिक आर्थिक दशा को सुधारने के लिए विशेष रूप से कार्य किये जा रहे हैं। ऐसे ही जिले के समस्त विकासखण्ड पर गठित पूना माड़ाकाल सेल के तहत बेरोजगारों को सतत आजीविका उपलब्ध कराया जा रहा है जिससे वे सामाजिक विकास में अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित कर आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा दें।
बापी ना उवाट : जिले में कुपोषण एवं एनीमिया को कम करने स्वास्थ्य एवं पोषण आदि विषयों में जानकारी देने समाज में व्यवहार परिवर्तन के उद्देश्य से यूनिसेफ द्वारा जिला प्रशासन तथा महिला एवं बाल विकास के सहयोग से संचालित है। जिले के प्रत्येक ग्राम से बुजुर्ग महिला (बापी) का चयन किया गया है जिनकी बातें विचारों को ग्रामवासी अमल में लाते हैं। बापियों के माध्यम से समाज में स्वास्थ्य, पोषण, स्वच्छता के प्रति परिवार समाज एवं ग्राम वासियों में व्यवहार परिवर्तन कराया जा रहा है। 143 ग्राम पंचायतों की सभी ग्राम पंचायतों में 190 बापियां स्वैच्छिक रूप से कार्यरत हैं। युनिसेफ (यूनिसेफ) के साथ जिला प्रशासन द्वारा ‘बापी न उवाट’ (दादी की सीख) कार्यक्रम के माध्यम से गांव की बुजुर्ग एवं अनुभवी महिलाओं को अभियान में शामिल करते हुए उनके अनुभवों एवं नुस्खों के माध्यम से कुपोषण के विरूद्ध जनआंदोलन सुनिश्चित किया जा रहा है।
सुगम स्वास्थ्य दंतेवाड़ा योजना : जिसके तहत् अब किसी मरीज, गर्भवती महिला, दुर्घटना से घायल को एम्बुलेंस के लिए भटकना नही पड़ रहा है। जिले में 44 एम्बुलेंस वर्तमान में मौजूद है, परन्तु नदी, नालों, पहाड़, नक्सल ग्रस्त, विषम परिस्थितियों से भरे दुर्गम क्षेत्रों तक आसानी से पहुंच पाना मुश्किल हो जाता है, इस योजना से अब व्यक्ति अपने आस पड़ोस या समीप स्थित गाँव के वाहन के मालिक को फोन करके अस्पताल जा सकते हैं इसके ऐवज में वाहन मालिक को उचित किराया भाड़ा दिया जाएगा। जिले में कुल 239 गांव एवं 143 ग्राम पंचायत हैं। जिले में 7 संजीवनी एक्सप्रेस 108 एंबुलेंस एवं 8 महतारी एक्सप्रेस 102 की सुविधा उपलब्ध है। किंतु संवेदनशील एवं पहुंच विहीन क्षेत्र होने के कारण वाहन समय पर पहुंच नहीं पाते हैं। अतः 20 जुलाई 2020 से जिला प्रशासन द्वारा सुगम स्वस्थ दंतेवाड़ा की शुरुआत की गई।
ग्राम स्वरोजगार केन्द्र : ग्रामीण कृषि कार्य के लिए मानसून पर निर्भर रहते है जो वर्ष में 4-5 माह ही चलता है साथ ही वनोपज के संग्रह का कार्य भी सीमित अवधि के लिए ही होता है। जिला प्रशासन ने एक अनूठी परिकल्पना ‘‘ग्राम स्वरोजगार’’ पर कार्य करना प्रारंभ किया हैै। दंतेवाड़ा जिलें में 234 ग्राम है। ग्रामों के निवासी अपने जीविकोपार्जन हेतु वनोपज, पशुपालन एवं कृषि पर निर्भर है। जिला प्रशासन के ‘ग्राम स्वरोजगार’ योजना का लाभ ग्रामीणों को मिल रहा है उनकी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति उनके गांव में हो रही है तथा बेरोजगारों को ‘स्वरोजगार’ के रुप में आर्थिक लाभ प्राप्त हो रहा है। इस योजना से जिले के 133 ग्राम पंचायतों के कुल 417 हितग्राहियों को लाभांवित किया जा चुका है।
देवगुड़ी को मिला नया रंग : शासन-प्रशासन की पहल से देवगुड़ी स्थल का जीर्णोद्धार, देवगुड़ी परिसर में वृक्षारोपण कार्य, ग्रामीणों हेतु पेयजल व्यवस्था, देवगुड़ी हेतु शेड निर्माण कार्य जिसमें ग्रामीणजन सु-व्यवस्थित बैठकर अनुष्ठान एवं पूजा-अर्चना कर सकते हैं, नियत स्थान पर प्रसाधन हेतु शौचालय निर्माण कार्य एवं देवगुड़ी परिसर को चैनलिंक तार फैसिंग किये गए हैं। वर्तमान में जिला दंतेवाड़ा के 143 ग्राम पंचायतों में 101 देवगुडि़यों का कायाकल्प कर लिया गया है, शेष देवगुडि़यों का कायाकल्प प्रगति पर है।
वैल्यूएडिशन के साथ ब्रांड : सफेद अमचूर के प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग करके अमचूर के दर में वैल्यूएडिशन किया गया, जिससे महिलाओं को प्रत्यक्ष रूप से लाभ मिल रहा है। यह अमचूर डैनेक्स के नाम से बिक रहा है। जिले में उत्पादित अमचूर को डैनेक्स यानी दंतेवाड़ा नेक्सट के ब्रांड के साथ बाजार में उतारा गया, डैनेक्स दन्तेवाड़ा जिले का अपना ब्राण्ड है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा 20 जून 2020 को वर्चुअल माध्यम से डैनेक्स अमचूर के 5000 पैकेट कि पहली खेप ट्राईफेड व अन्य कम्पनी हेतु रवाना की गयी थी। डैनेक्स सेफ फूड फार्मर प्रोडयूसर कंपनी अंतर्गत किसानों से आम इकट्ठा करके आधुनिक तरीके से अमचूर तैयार किया जा रहा है।
ढेंकी चावल निर्माण इकाई : इसका शुभारंभ 2022 से किया गया है। इसमें वर्तमान में महिला स्व-सहायता समूहो की 15 दीदियां प्रत्यक्ष रूप से कार्यरत् हैं। यहा ढेंकी में उपयोग किए जा रहे धान पास के ही गावों से लाए जाते है, जिससे लगभग 100 से भी अधिक महिलाएं अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित हो रही हैं। इसके अतिरिक्त 90 से अधिक ढेंकी बनकर तैयार है। जिससे और भी लोगों को रोजगार देने का प्रयास किया जा रहा है। ढेंकी चावल तैयार करने के लिए जिले मे ही जैविक रूप से उत्पादित देशज प्रजातिया लोक्टीमाची, बासा भोग, गुरूमुतिया, उमेरिया, चूड़ी धान, पूंसा इत्यादि का उपयोग किया जाता है। कुटाई के बाद चावल की सफाई और पैंकिंग का कार्य भी इन्हीं महिलाओं को दिया गया है। जिले में उत्पादित ढेंकी राईस को डैनेक्स यानी दंतेवाड़ा नेक्सट के ब्रांड के साथ बाजार में उतारा जा रहा है, डैनेक्स दन्तेवाड़ा जिले का अपना ब्राण्ड है। ढेंकी से चावल कुटकर महिलाएं अपनी आजीविका को सुदृढ़ कर रही है।
डेनेक्स आरओ वाटर : आरओ वाटर को जिले के शासकीय भवनों के साथ-साथ सभी घरों तक पहुंच सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। डेनेक्स आरओ वाटर की कीमत 25 रूपये रखी गई है। डेनेक्स आरओ वाटर को जिले के साथ-साथ अन्य जिले में भी पहुंचाने की योजना है। मानव शरीर के लिए डेनेक्स आरओ वाटर का टीडीएस 110 पीपीएम है जो सेहत के लिए बहुत ही अच्छा है। इसका उपयोग से अंदर की बिमारियों से नियंत्रण पाया जा सकता है। दन्तेवाड़ा विकासखण्ड अन्तर्गत ग्राम पंचायत टेकनार मॉ दन्तेश्वरी गौ-संवर्धन केन्द्र में आरओ वाटर प्लांट की स्थापना की गई है। जिसका संचालन प्रगति एवं प्रयास संस्था के द्वारा किया जा रहा है। इस कार्य हेतु स्थानीय महिला स्व-सहायता समूह को प्रशिक्षण दिया गया है जिसमें 10 महिलाएं शामिल है। जिससे महिलाओं को रोजगार मिलने के साथ उनका आर्थिक सुदृढ़ीकरण भी हो रहा है।
राज्य का पहला एन्ट्री-एक्जिट द्वार वाला मॉडल हाट बाजार : जिले के गीदम विकासखण्ड अंतर्गत बारसूर में निर्माण किया गया है। बस्तर क्षेत्र में हाट बाजार का अपना एक अलग ही महत्व है। हाट बाजार ग्रामीण अर्थ व्यवस्था की जीवन रेखा समझी जाती है। जिला प्रशासन की पहल से ग्रामीणों को सर्व सुविधा उपलब्ध कराने हेतु मॉडल हाट बाजार का निर्माण किया गया है। पहला मॉडल हाट बाजार जहां पर लोगो को सभी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही है। बाजार स्थल के चारों तरफ बाउंड्रीवाल से घेराव किया गया है। पहली बार हाट बाजार में एन्ट्री और एक्जिट हेतु सुनियोजित द्वार बनाए गए है जहां ग्रामीणों या व्यापारियों द्वारा लाए गए माल या उत्पाद का वजन किया जा रहा है। जिससे ग्रामीण निर्धारित कीमत पर सामान का विक्रय कर सकें साथ ही एक्जिट द्वार पर यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि उन्हें उनके समानों का उचित मूल्य प्राप्त हुआ है या नहीं।
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