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‘विंग्स टू फ्लाई’ अब उड़ान की तैयारी… एक सप्ताह में 5500 संकुलों से साढ़े पांच करोड़ वसूली की तैयारी… शिक्षा मंत्री बैठे रहे… संविदा अफसर ने दिया डीईओ, डीएमसी और जेडी को फरमान कोई पूछे तो कह देना ‘मैंने कहा है…!’

इम्पेक्ट न्यूज। रायपुर।

दो दिन पहले छत्तीसगढ़ में शिक्षा की व्यवस्था को लेकर एक बड़ी बैठक राजधानी में आयोजित की गई। इसमें प्रदेश के सभी जिलों के सभी JD संभागीय शिक्षा अधिकारी, DEO जिला शिक्षा अधिकारी और DMC डीएमसी को बुलाया गया था। इस बैठक में प्रदेश के शिक्षा मंत्री डा. प्रेमसाय सिंह टेकाम के साथ संविदा प्रमुख सचिव डा. आलोक शुक्ला भी मौजूद थे। बैठक तो ठीक है शिक्षा को लेकर कार्ययोजना को लेकर भी बातें ठीक हैं।

इस बैठक में जब संविदा प्रमुख सचिव डा. शुक्ला ने विंग्स टू फ्लाई एनजीओ के द्वारा प्रकाशित ​मासिक पत्रिका किलोल के लिए फरमान जारी कर दिया। इस फरमान के तहत प्रदेश के सभी संकुलों को अगले एक सप्ताह के भीतर मासिक किलोल पत्रिका की आजीवन सदस्यता लेने के लिए कहा गया। साथ ही यह भी कहा कि यदि कोई इन अफसरों से इस संबंध में कुछ भी सवाल करे तो साफ कह दें कि ‘मैंने कहा है।’

प्रदेश के सभी संभाग और जिलों के अधिकारी शनिवार को बैठक के बाद जिलों में वापस लौटे और इस आदेश के परिपालन के लिए जमीनी तैयारी शुरू कर दी गई है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में करीब 5500 संकुल हैं प्रत्येक संकुल में दस—दस शालाएं हैं। इसके अलावा सभी हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूलों को जोड़ दिया जाए तो यह आंकड़ा और भी बड़ा हो सकता है।

इस पत्रिका किलोल के प्रकाशन और प्रसारण को लेकर सीजी इम्पेक्ट ने पूर्व में कई खबरें प्रकाशित की हैं। जिनके लिंक नीचे हैं…

किलोल : प्रमुख सचिव आलोक शुक्ला का जवाब गोल—मोल… आखिर पत्रिका में शिक्षा विभाग के ​अधिकारी ही क्यों? सहायक संचालक एम सुधीश की भूमिका ‘गंगाधर ही शक्तिमान’ जैसा…
EXCLUSIVE “किलोल” बस पत्रिका ही नहीं बल्कि अफसरी की आड़ में धंधा है…

क्या है किलोल का गणित?

विंग्स टू फ्लाई नामक एनजीओ के माध्यम से एक बाल पत्रिका का प्रकाशन किया जा रहा है। इसका स्वामित्व वर्तमान में स्कूल शिक्षा विभाग के संविदा प्रमुख सचिव डा. आलोक शुक्ला के पास रहा है। इसके प्रधान संपादक भी वही हैं। जिसके बारे में उन्होंने अपनी फेसबुक वाल पर सफाई देते हुए जानकारी भी शेयर की थी।

इस मासिक पत्रिका के लिए प्रति संकुल यदि 10 हजार रूपए की आजीवन सदस्यता का शुक्ल वसूला जाता है तो करीब साढ़े पांच करोड़ रूपए पत्रिका के नाम पर वसूले जाएंगे। यदि सभी स्कूलों के लिए यह फरमान जारी किया जाता है तो यह आंकड़ा कितना बढ़ सकता है इसका अनुमान साफ लगाया जा सकता है।

प्रदेश के कुछ जिला शिक्षा अधिकारियों ने नाम ना छापने की शर्त पर इस तथ्य की पुष्टि भी की है। उन्होंने अपनी परेशानी का भी जिक्र किया है। मैदानी स्तर पर डीईओ को बहुत कुछ फेस करना होता है। आला अफसरों के मौखिक आदेश व निर्देश पर किसी भी कार्य को अमल करना अब कठिन होना बताया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि पूर्व में भी हमने इस तरह की वसूली को लेकर खबर में चेताया था। जिसके बाद भी ना तो प्रदेश सरकार और ना ही सिस्टम ने किसी तरह की कार्रवाई की है। बहरहाल इस बात की चर्चा है कि आखिर किस दबाव में प्रदेश के शिक्षा मंत्री की मौजूदगी में किसी अफसर की इतनी हिम्मत हो सकती है कि वह इस तरह अपने दम पर वसूली के लिए अफसरों को साफ निर्देशित कर सके।

जिस पत्रिका की आजीवन सदस्यता के लिए दबाव डाला जा रहा है। इस संबंध में कुछ जानकारी तो पाठकों को मिलना ही चाहिए… मसलन

उस पत्रिका की ​कीमत क्या होना चाहिए?
किलोल पत्रिका की कीमत किसी भी हाल में दस रुपए से ज्याद नहीं हो सकती।
क्यों?
इसमें प्रकाशित जानकारी और संकलन के लिए किसी भी प्रकार की राशि का उपयोग नहीं किया जा रहा है।
आन लाइन पत्रिका के लिए लागत और भी कम हो सकती है।

यदि सामान्य गणित के हिसाब से देखा जाए तो 5500 प्रति की छपाई का कुल खर्च करीब 55 हजारू रूपए मात्र बैठता है। वह भी मासिक।

जो राशि वसूली की तैयारी है तो उसके हिसाब से प्रति माह करीब एक प्रतिशत ब्याज की राशि का ही हिसाब किया जाए तो करीब साढ़े पांच लाख रुपए बैठता है।

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