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सबसे खराब दौर में कांग्रेस… हताशा व अविश्वास की परिणति आंतरिक संघर्ष…

दिवाकर मुक्तिबोध। बडी दिक्कत में है कांग्रेस। 137 साल पुरानी पार्टी और उसका नेतृत्व कभी इतना असहाय, इतना निराश नजर नहीं आया था जितना इन दिनों दिखाई दे रहा है। हालांकि उस दौर में भी पार्टी ने अनेक आंतरिक संकटों का सामना किया था, तरह तरह की चुनौतियां झेलीं थीं,  दर्जनों असंतुष्ट बडे नेता पार्टी छोडकर चले गए , इनमें से कुछ ने अपनी-अपनी कांग्रेस बना लीं लेकिन कांग्रेस की आत्मा अपने मूल शरीर में कायम रही। अब यही आत्मा मृतप्राय शरीर की दारूण स्थिति देखकर छटपटा रही है और

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‘ अर्धविराम ‘ के बहाने कुछ बातें…

दिवाकर मुक्तिबोध। दो मई को प्रेस क्लब में पत्रकार सनत चतुर्वेदी पर केन्द्रित किताब ‘अर्धविराम ‘ के लोकार्पण कार्यक्रम में मुझे शामिल होना था। समय था शाम साढे पांच बजे । आधे घंटे पहले मैं घर से निकल ही रहा था कि एकाएक मौसम बुरी तरह बिगड़ गया। तेज आंधी तूफान के साथ बरसात भी शुरू हो गई। करीब एक सवा घंटे के बाद आसमान साफ हुआ। अंधड शांत हुआ और बरसात भी थम गई पर विलंब हो चुका था लिहाजा मेरा जाना रूक गया। जबकि इस कार्यक्रम में शामिल

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मुख्यमंत्री ने कलेक्टरों को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि जनता के आवेदन रद्दी की टोकरी में नहीं जाने चाहिए…

दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इन दिनों ग्रामीण जनता से सीधे संवाद के लिए उनके बीच हैं। चार मई से उनकी यात्रा सरगुजा संभाग के बलरामपुर जिले से प्रारंभ हुई जो संभवतः 15 जून तक चलेगी। वे सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में जाएंगे। हर जिला मुख्यालय में वे रात्रि विश्राम करेंगे और प्रत्येक विधानसभा के किन्हीं तीन गांवो के निवासियों से बातचीत के जरिए जानने की कोशिश करेंगे कि सरकारी योजनाओं का समुचित लाभ उन्हें मिल रहा है अथवा नहीं? शासन-प्रशासन से संबंधित उनकी समस्याएं क्या हैं ?

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छत्तीसगढ़ में ‘आप’ की दस्तक के मायने…

दिवाकर मुक्तिबोध पंजाब विधानसभा चुनाव में प्रचंड विजय से उत्साहित आम आदमी पार्टी अब गुजरात, हिमाचल प्रदेश व छत्तीसगढ़ में अपने लिए नयी संभावनाएं तलाशने जुट गई है। छत्तीसगढ़ में अगले वर्ष नवंबर में राज्य विधानसभा के चुनाव हैं। कांग्रेस व भाजपा की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। आम आदमी पार्टी भी पीछे नहीं है। पार्टी के गुजरात प्रभारी व मूलत: छत्तीसगढ़ निवासी सांसद संदीप पाठक, प्रदेश प्रभारी संजीव झा व दिल्ली की आप सरकार के मंत्री गोपाल राय के हाल ही के छत्तीसगढ़ दौरे से यह स्पष्ट है कि

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खैरागढ़ उपचुनाव के बहाने यह भी तय प्रतीत होता है कि 2023 के दौरान व्यवस्था के खिलाफ चलने वाली लहर की गति भी धीमी रहेगी….

दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आसानी से ‘सत्ता का कथित सेमीफाइनल ‘ जीत लिया है। खैरागढ़ उपचुनाव को वे सत्ता का सेमीफाइनल ही मानते थे। भाजपा भी इसे सेमीफाइनल मानकर चल रही थी। यहां 12 एप्रिल को मतदान हुआ और 16 को मतगणना के साथ ही यह सीट भी कांग्रेस के खाते में चली गई जो 2018 के विधानसभा चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के पास थी। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद यह चौथा उपचुनाव था। इसके पूर्व दंतेवाड़ा , चित्रकोट व मरवाही सीट

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तेज बाजारवाद व तरह-तरह के दबाव के बीच मूल्यपरक पत्रकारिता के लिए रास्ता बनाना अत्यधिक कठिन… दिवाकर मुक्तिबोध। कुछ यादें कुछ बातें-18

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-18 -दिवाकर मुक्तिबोध। ललित सुरजन मुझसे उम्र में कुछ वर्ष ही बड़े थे। मैं बीएससी कर रहा था, वे एमए। लेकिन उनका बौद्धिक स्तर बहुत ऊंचा था। जबकि मैं इस मामले में उनसे बहुत बौना। क्या हिंदी, क्या अंग्रेजी, दोनों पर उनकी पकड़ जबरदस्त थी। चूंकि कालेज की पढाई के साथ साथ उन्होंने देशबंधु का काम भी

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अखबारों में काम करने से हिंदी सुधरी, भाषा शैली भी ठीक हुई… अनुभव बढ़ा व घटनाओं को पत्रकार की नजर से देखने-समझने की दृष्टि भी विकसित हुई… दिवाकर मुक्तिबोध। कुछ यादें कुछ बातें-17

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-17 -दिवाकर मुक्तिबोध। पत्रकारिता को पेशा बनाऊँगा, सोचा नहीं था। कह सकते हैं इस क्षेत्र में अनायास आ गया। जब भिलाई से हायर सेकेंडरी कर रहा था, तीन बातें सोची थीं। एक -भिलाई स्टील प्लांट में नौकरी नहीं करूंगा, दो- केमिस्ट्री में एमएससी करूँगा और तीसरी बात- शैक्षणिक कार्य नहीं करूंगा। पर जैसा सोचा था, वैसा नहीं

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मुझे पूरा भरोसा था कि नौकरी बजाते हुए मै बीएससी फायनल की परीक्षा पास कर लूंगा। लेकिन मैं मन का कच्चा था… अपने से ही धोखा खा गया… दिवाकर मुक्तिबोध… कुछ यादें कुछ बातें — 16

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-16 -दिवाकर मुक्तिबोध। मैं बीएससी फायनल में पहुंचा ही था कि मुझे सरकार के शिक्षा विभाग में नौकरी मिल गई। शिक्षक की। लोअर डिवीजन टीचर। खम्हारडीह शंकर नगर के मिडिल स्कूल में। यह स्कूल मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल के निवास से लगा हुआ था। यह बात है 1969-70 की। अब साइंस कालेज में पढाई और

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मुझे पूरा भरोसा था कि नौकरी बजाते हुए मै बीएससी फायनल की परीक्षा पास कर लूंगा। लेकिन मैं मन का कच्चा था… अपने से ही धोखा खा गया… दिवाकर मुक्तिबोध… कुछ यादें कुछ बातें — 15

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-15 -दिवाकर मुक्तिबोध। अपने से शुरू करता हूं, दो चार छोटी मोटी बातें। वैसे बचपन की अनेक घटनाएं स्मृतियों में दर्ज हैं , पर एक रह रहकर याद आती रहती है। घटना नागपुर की। मैं प्राइमरी कक्षा का छात्र था। हम मोहल्ला गणेश पेठ में रहते थे। एक दिन एक फेरीवाले ज्योतिषी महाराज घर के दरवाजे पर

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मुझे नहीं लगता इस सलीके से कोई और व्यक्ति यह काम कर सकता था जैसा रमेश भैय्या ने कर दिखाया… कुछ यादें कुछ बात… 14, दिवाकर मुक्तिबोध

दिवाकर मुक्तिबोध. छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-14 82 के हो गए हैं रमेश भैय्या। रमेश गजानन मुक्तिबोध। मेरे बडे भाई। हम भाइयों , मैं, दिलीप व गिरीश में सबसे बड़े। भिलाई स्टील प्लांट की नौकरी से रिटायर होने के बाद उन्होंने भाइयों के साथ ही रहना पसंद किया। हम चारों भाई रायपुर के सड्डू इलाके की एक कालोनी मेट्रो ग्रीन्स में

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