नो माइल स्टोन “पामेड़”,
छत्तीसगढ़ का ऐसा गाँव जिसकी दूरी आज पर्यंत तक मापी नहीं जा सकी है..
(special story)
प्रदेश में संभवतः यह पहला गांव होगा, जिसकी राजधानी रायपुर और जिला मुख्यालय बीजापुर से दूरी को दर्शाता कोई माइलस्टोन नहीं है।
बीजापुर। माओवादियों के इंटर स्टेट कॉरिडोर कहे जाने वाले पामेड़ अविभाजित मध्यप्रदेष का हिस्सा रहा। 2001 में छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद बीजापुर के आखिरी छोर पर बसा यह गांव छत्तीसगढ़ में गिना गया, बावजूद अविभाजित मध्यप्रदेष से लेकर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भी पामेड़ की दूरी मापी नहीं जा सकी है। प्रदेष में संभवतः यह पहला गांव होगा, जिसकी प्रदेष की राजधानी और जिला मुख्यालय से भी दूरी को दर्षाता कोई माइलस्टोन नहीं है। सालभर पहले पहली बार मील के पत्थर से इस गांव की दूरी नापी गई, वो भी तेलंगाना की सरहद से। छत्तीसगढ़ गठन के बाद अलग-थलग पड़े इस इलाके तक सड़क बनी भी तो तेलंगाना को जोड़ती। तेलंगाना के तिप्पापुर से पामेड़ तक 12 किमी सड़क का निर्माण सालभर पहले पूरा हुआ था। सीमावर्ती राज्य पर पूरी तरह निर्भर छत्तीसगढ़ के इस गांव तक अब भी सीधी सड़क नहीं बन सकी है। नतीजतन तेलंगाना में प्रवेष किए बिना पामेड़ नहीं पहुंचा जा सकता है। तेलंगाना से करीब 18 किमी दूर बसे पामेड़ गांव में 2005 तक गुरूवार को साप्ताहिक हाट भरता था। बाजार की वजह से इस दिन सुबह से शाम तक रौनक रहती थी। बाजार में तेलंगाना के वेंकटापुरम, चेरला व अन्य गांवों से व्यापारी आया करते थे। जुडूम के बाद इलाके में नक्सल गतिविधियां तेज हुई और पामेड़ का बाजार भी नक्सलियों से संघर्ष में बंद हो गया। चूंकि पिछड़े इलाकों तक विकास के लिए सड़क ही सबसे बड़ी जरूरत होती है। पामेड़ को जोड़ती सड़क ने पामेड़ वासियों को राहत जरूर दी है, परंतु तेलंगाना पर उसकी निर्भरता तब तक खत्म नहीं हो सकती, जब तक सड़क का विस्तार बासागुड़ा तक ना हो। हालांकि तेलंगाना से सीधे जुड़ने के बाद पामेड़ सहित आस-पास के दर्जनभर गांवों को बड़ी राहत जरूर मिली है। पामेड़ वैसे तो वनभैंसों की शरणस्थली के रूप में एक समय चर्चित था। नक्सल समस्या के कारण पामेड़ अभ्यारण्य के द्वार वन्य प्राणियां के लिए अघोषित रूप से बंद हो गए। इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 442..23 वर्ग किमी है। इसके अंतर्गत वन के 96 कक्ष , जिनका क्षेत्रफल 275.42 वर्ग किमी एवं संरक्षित वन के 49 कक्ष, जिनका क्षेत्रफल 165.27 एवं असीमांकित एवं राजस्व का क्षेत्र 1.54 वर्ग किमी क्षेत्र सम्मलित है। माओवादी दखल के कारण जगरगुण्डा के बाद पामेड़ वह इलाका है जो टापू में तब्दील सा नजर आता है। अरनपुर से जगरगुण्डा को जोड़ने जिस तरह की चुनौतियां वहां पुलिस और प्रषासन के सामने पेष आ रही है, ठीक वैसे ही हालात इस तेलंगाना से पामेड़ तक बनी सड़क के निर्माण में बने हुए थे। बासागुड़ा से पामेड़ तक जंगली रास्तों का सफर सीधे पामेड़ तक पहुंचाता है। बरसात को छोड़ बाकी समय षिक्षक, स्वास्थ्य कर्मी ही जंगले के रास्ते करीब 45 किमी की दूरी तय कर पामेड़ पहुंचते हैं। यही जंगली रास्ता बासागुड़ा से सीधे पामेड़ को जोड़ती है और यह सड़क बन जाए तो पामेड़ सीधे बीजापुर से जुडे़गा और तब इसकी दूरी भी मापी जा सकेगी।