जन अदालत Live… मौत की दहलीज को छूकर सकुशल लौटा अपहृत जवान… अगवा जवान की पत्नी की गुहार पर पत्रकारों ने की थी पहल…
एक्सक्लूसिव : यह हकीकत है बस्तर में पत्रकारिता की… जब सनसनी के स्थान पर जान बचाने में जुट जाते हैं पत्रकार… cgimpact को पहले ही दिन से पता था पर… जान खबर से बड़ी होती है…
। गणेश मिश्रा. बीजापुर।
छह दिन तक आंखों पर पट्टी बांध वह जंगल में भटकता रहा। दोनों हाथ पीछे से बंधे हुए थे, हथियारबंद नक्सली सख्ती से पहरा देते। बंद आंखों को सूझता न था कि वह कितना चला, कहां पहुंचा, कौन उसके आसपास है।
हर पल भय सताता कि अब डंडे बरसने वाले हैं या फिर उसे शूट कर दिया जाएगा। लेकिन बीजापुर के अपह्त जवान संतोष कट्टम की किस्मत अच्छी थी। उसकी पत्नी सुनीता और दस साल की मासूम बेटी भावना उसकी रिहाई की अपील लेकर दर दर भटकते रहे।
उनकी अपील पर पत्रकारों की टीम चार दिनों तक दुर्गम जंगलों की खाक छानती रही। संतोष कहां है, किस नक्सली लीडर ने उसका अपहरण किया है यह बताने को कोई राजी न था पर टीम ने हार नहीं मानी।
आखिरकार कुछ ग्रामीणों का दिल पसीजा और वेनक्सलियों के मध्यस्थ तक संदेश पहुंचाने को राजी हो गए। रविवार को जंगल से संदेश आया कि संतोष पर निर्णय लेने के लिए नक्सली अपने इलाके में जनअदालत लगाने जा रहे हैं। सोमवार को संतोष की पत्नी और बेटी को भी उस जनअदालत में बुलाया गया।
डेढ़ हजार ग्रामीणों की मौजूदगी में संतोष को जनअदालत में पेश किया गया। नक्सलियों ने छह दिनों में उससे हुई पूछताछ का ब्यौरा दिया, फिर ग्रामीणों ने उससे पूछताछ की जिसके बाद अपहत जवान संतोष ने जनअदालत में आत्मसमर्पण कर दिया और नौकरी छोड़ने की घोषणा की जिसके बाद आखिरकार यह तय हो गया कि वह पुलिस में भले ही है पर उसने जनता पर कोई अत्याचार नहीं किया है।
ग्रामीणों की आमराय से नक्सलियों ने संतोष कट्टम की स्कूटी और उससे अपहरण के दौरान बरामद अन्य सामान लौटा दिया और उसे पत्नी व बेटी के साथ घर जाने की इजाजत दे दी। उन्होंने संतोष से यह वादा जरूर लिया है कि अब वह पुलिस की नौकरी नहीं करेगा और गांव में खेती कर गुजारा करेगा।
सुकमा जिले के जगरगुंडा निवासी संतोष कट्टम की पदस्थापना पुलिस विभाग के
इलेक्ट्रीशियन के तौर पर भोपालपटनम में है। वह छुट्टी लेकर बीजापुर आया था तभी लॉकडाउन में फंस गया।
चार मई को गोरना में आयोजित वार्षिक मेले को देखने वह गया था। वहां मंदिर दर्शन के बाद वह अपने दोस्त का इंतजार कर रहा था कि तभी ग्रामीण वेशभूषा में वहां मौजूद नक्सलियों को उस पर शक हो गया। टीशर्ट और अाईकार्ड से उसकी शिनाख्त हो गई। इसके बाद उसके दोनों हाथ पीछे बांध दिए गए और आंखों पर पट्टी बांध नक्सली उसे अपने साथ ले गए।
सरकार इसे अपनी जीत न समझे- नक्सली नेता
नक्सलियों के गंगालूर एरिया कमेटी के सचिव दिनेश मोड़ियाम ने संदेश भेजा है जिसमें कहा है कि मानवता के आधार पर जवान को रिहा किया गया है। सरकार इसे अपनी जीत न समझे। हम न सभी जवानों के दुश्मन हैं न उनकी हत्या करते हैं। जवान नौकरी छोड़कर गांव आ जाएं।
सरकार की गुलामी करना और जनता पर अत्याचार करना बंद कर दें।लड़ना ही है तो बॉर्डर में जाकर उन विदेशी ताकतों और हमलों से लड़े जो देश पर हमला करने की कोशिश कर रहे है,यहां पुलिस की नौकरी कर सरकार की गुलामी से कोई मतलब नही है,उसने यह भी कहा है कि अगर कोई जवान वापस आकर गांव में जीना चाहता है तो उसका उनका संगठन स्वागत करेगा।
उम्मीद नहीं थी कि जिंदा बचूंगा- संतोष
माओवादियों के जनअदालत में आत्मसमर्पण करने के पश्चात रिहा किये गए संतोष कट्टम को पत्रकारों ने ही उसे पुलिस अफसरों के सुपुर्द किया। इस दौरान वह बार बार नर्वस होता रहा।
उसने कहा- छह दिन से आंखों पर जो पट्टी बंधी थी वह अब खुली है। बंधे हाथों और आंख पर पट्टी के साथ इस दौरान कितने पहाड़, नदी-नाले, जंगल, गांव पार किया पता नहीं है। कभी किसी गांव में ठहरने का मौका नहीं मिला। हमेशा जंगल में ही सोना पड़ता। खाने में चिड़ियाें का मांस और सूखी मछली मिलती। हमेशा डर रहता कि अब मरने ही वाला हूं।
नक्सली लीडर आकर पूछताछ करते तब भी आंख से पट्टी न हटाई जाती। उसने यह भी बताया कि इन सात दिनों में माओवादियों द्वारा उसके साथ न तो मारपीट की गई और न ही बुरा बर्ताव किया गया,उसने यह भी कहा कि अब वह पुलिस की नौकरी छोड़कर खेतीबाड़ी कर जीवन यापन करेगा।