दंतेवाड़ा जिला : जहां विधायक, साहब और नेताओं के त्रिकोण में फंसी कांग्रेस की नैय्या…
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इम्पेक्ट न्यूज। रायपुर/दंतेवाड़ा।
दंतेवाड़ा जिले में ऐन विधानसभा चुनाव से पहले जबरदस्त त्रिकोण में कांग्रेस की नैय्या फंसती दिख रही है। इस त्रिकोण में विधायक, साहब और कांग्रेस के वे नेता जिनका सरोकार महेंद्र कर्मा की राजनीति के दौर से रहा है। राजधानी में विधायक, अफसर और नेताओं का जमावाड़ा है। जिले में राजनीतिक स्थिरता को तलाशते लोग राजधानी की करवट का इंतजार कर रहे हैं। पूरी लड़ाई काम और जिम्मेदारी के इर्दगिर्द मंडरा रही है। कांग्रेस के कई हिस्से हो चुके हैं एक हिस्से में संगठन है, दूसरे में कर्मा परिवार और तीसरे में अफसर समर्थक कांग्रेसी हैं। ऐसे समय में सबसे मजे में विपक्ष भाजपा के लोग हैं जो बिल्ली के भाग से सिंका टूटने का इंतजार कर रहे हैं।
आज से एक बरस पहले तक दंतेवाड़ा जिले में सब कुछ सामान्य सा लग रहा था जो जिला कलेक्टर के एक तबादले के बाद असामान्य सा हो गया है। दरअसल दंतेवाड़ा जिले में हर कलेक्टर की प्राथमिकता के अनुसार काम करने की परंपरा बहुत पुरानी है। जो भी कलेक्टर जिले में पदस्थ होता है उसके पास पहले सीएसआर अब जिला खनिज न्यास (डीएमएफ) और कार्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (सीएसआर) के तौर जिले को हर साल मिलने वाली करोड़ों रुपए के उपयोग की भी जिम्मेदारी होती है। इस तरह से दंतेवाड़ा जिला छत्तीसगढ़ के प्रभावशाली जिलों में सबसे उंचे दर्जे पर रहा है। यहां पदस्थ होते ही कलेक्टर के पास जिले के विकास और उत्थान की महती जिम्मेदारी भी होती है।
अब हर कलेक्टर की काम करने की प्रकृति ओर प्रवृत्ति अलग—अलग होती है। ऐसे में जिले में सक्रिय राजनीतिक दलों के लिए हर कलेक्टर के साथ व्यवहार का तरीका भी अलग—अलग ही होता है। बीते एक साल से दंतेवाड़ा में बहुत कुछ बदल रहा है और बहुत कुछ बदल गया है वाली स्थिति है। यहां अपने दौर में कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ में सीधे तौर पर कांग्रेस की तमाम कमजोरियां सतह पर दिखाई दे रही है। एक तरफ कांग्रेस के शहीद महेंद्र कर्मा की विरासत है और दूसरी तरफ कर्मा के दौर के वे कांग्रेसी जिन्हें विरासत के व्यवहार ने असामान्य कर दिया है।
जिले में पदस्थ कलेक्टर विनीत नंदनवार ने मंगलवार को समय सीमा की बैठक नहीं ली तो जिले के अधिकारियों को उनके मुख्यालय में नहीं होने की जानकारी मिली। दंतेवाड़ा के लोग कह रहे हैं कोई कलेक्टर से पूछ तो सकता नहीं कि वे कहां और क्यों जा रहे हैं? कर्मा परिवार के लोग भी राजधानी में पहुंचे हुए हैं। मंगलवार को दिन भर दंतेवाड़ा की निगाह राजधानी से आने वाली खबरों पर लगी रही। हर कोई यह जानने की कोशिश में जुटा था कि विधायक देवती कर्मा और जिला पंचायत अध्यक्ष तूलिका कर्मा जिले के कलेक्टर विनीत नंदनवार को लेकर सीएम भूपेश बघेल से मिलने के लिए निकले हैं तो मुलाकात हुई या नहीं? मुलाकात हुई तो क्या बात हुई? जिले में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या विधायक देवती कर्मा मुख्यमंत्री को कलेक्टर के तबादले के लिए मना सकेंगी?
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इसके बाद एक खबर और बाहर आई कि दंतेवाड़ा जिले के दिग्गज कांग्रेसी नेताओं का भी जमावड़ा राजधानी में लगा है। पर वे कर्मा परिवार की सियासत से दूर बैठकर निगाहबिनी में लगे हैं। मंगलवार को जब इम्पेक्ट ने देवती कर्मा के कलेक्टर को लेकर मुख्यमंत्री से मुलाकात की संभावना को लेकर खबर दी तो जिपं अध्यक्ष ने सोशल मीडिया में तैर रही खबर के आधार पर यह जानने की कोशिश करते कई लोगों से चर्चा करते यह स्पष्टीकरण भी दिया कि क्या केवल सीएम से मिलने के लिए ही हम रायपुर जा सकते हैं? और कोई दूसरी वजह भी तो हो सकती है।
अंतत: देवती कर्मा और तूलिका कर्मा की मंगलवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से कोई मुलाकात नहीं हुई। वे दोपहर को उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव से मिलने के लिए उनके निवास पर पहुंचे थे। अंदर में क्या बात हुई इसका ब्यौरा किसी के पास नहीं है। पर जिला कांग्रेस अध्यक्ष अवधेश गौतम और कांग्रेस के कुछ और नेताओं के राजधानी में पहुंचने की खबर उन्हें भी है।
दंतेवाड़ा के मामले में आज इम्पेक्ट ने महेंद्र कर्मा के सबसे करीबी रहे शकील रिजवी से चर्चा की तो बहुत सारी जानकारियां बाहर आई हैं। उन्होंने बीते कुछ महिनों में दंतेवाड़ा जिले में घटित राजनीतिक, प्रशासनिक और व्यवहारिक घटनाओं की जानकारी दी। कलेक्टर विनीत नंदरवार का एक तरह से बचाव करते शकील रिजवी ने स्पष्ट किया कि राजनीति में सबकी सहमति से काम होना चाहिए। यदि आप जिला प्रशासन की किसी कार्य से नाराज हैं तो बात करनी चाहिए। सार्वजनिक बयानबाजी से सरकार की छवि पर बुरा असर पड़ता है। उन्होंने साफ माना कि दंतेवाड़ा में विनीत नंदनवार के आने के बाद पुराने कार्यकर्ताओं को ज्यादा तरजीह मिल रही है।
दो महिने पहले की एक घटना का जिक्र करते शकील रिजवी ने बताया कि कांग्रेस भवन में जिपं अध्यक्ष तूलिका कर्मा ने बैठक बुलवाई इसमें विधायक देवती कर्मा भी मौजूद थीं। सबके सामने यह कहा गया कि कलेक्टर को हटाना है। इसके लिए हमें एक होकर बात उठाना चाहिए। वजह पूछे जाने पर यह बताया कि जिले के कई सरपंचों की यह शिकायत है कि उन्हें काम नहीं मिल रहा है। डीएमएफ से केवल बड़े काम करने की जगह पंचायतों को भी काम मिलना चाहिए।
इस पर नेतृत्व का सवाल उठाया गया तो जिला अध्यक्ष अवधेश गौतम ने भी साथ देते कहा कि यहां तूलिका नेतृत्व करें सभी साथ जाकर कलेक्टर से मिलेंगे और सरपंचों और पंचायत प्रतिनिधियों को भी साथ लेकर जाएंगे। यह मामला अधर में अटक गया। बकौल शकील रिजवी तो करीब 15 सरपंचों को लेकर वे स्वयं कलेक्टर विनीत नंदनवार से मिलने पहुंचे। यहां कलेक्टर के सामने सरपंचों ने कहा कि उन्हें 10—10 लाख का काम दिया गया है। शकील कहते हैं ‘अब बताएं ऐसे में किसकी बात को सही माना जाए?’
शकील यह भी बताते हैं कि मामला जिले में वाटर प्यूरीफायर की सप्लाई वाले एक मामले से भी जुड़ा है जिसकी बिलिंग को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ था। इसके बाजार मूल्य से ज्यादा बिलिंग वाले मामले को लेकर ही तूलिका और कलेक्टर नंदनवार के बीच पहली बार असहज स्थिति निर्मित हुई थी। बकौल रिजवी वहीं जिलें में विभिन्न कार्यों को लेकर कलेक्टर का कहना है कि विधायक मैडम स्वयं सभी निर्णय लें और परिवार की आम सहमति हो तो कोई दिक्कत नहीं है। पर यहां विधायक के साथ ही साथ परिवार के अन्य लोग भी अपनी प्राथमिकताओं को चाहते हैं तो ऐसे में सब कुछ संतुलन करना स्वयं देवती कर्मा की जिम्मेदारी है।
फिलहाल दंतेवाड़ा जिले में कांग्रेस के कई फाड़ साफ दिखाई दे रहे हैं। एक कवासी लखमा का समर्थक समूह है, दूसरे में वे लोग हैं जो कभी महेंद्र कर्मा की राजनीति के सक्रिय सितारे रहा करते थे। तीसरे वे हैं तो सीधे तौर पर जिला कलेक्टर से उपकृत हैं। चौथे वे हैं जो करते दंतेवाड़ा की राजनीति हैं पर उनका सरोकार मुख्यमंत्री से सीधे बना हुआ है। इसमें से शकील रिजवी कर्मा और भूपेश दोनों के साथ वाले हैं।
सूत्रों का दावा है कि दंतेवाड़ा जिले की इस प्रशासनिक राजनीति में अग्नि चंद्राकर का महती रोल है। माना जा रहा है कि सूर्यकांत तिवारी और अग्नि चंद्राकर के माध्यम से ही विनीत नंदनवार को दंतेवाड़ा जिले में पदस्थापना मिली थी। जिले में सारे बड़े काम रायपुर के ठेकेदार कर रहे हैं। डीएमएफ को लेकर मुख्यमंत्री के स्पष्ट निर्देश हैं कि जिले के कलेक्टर इस राशि से किसी तरह की सप्लाई से दूर रहें। ठोस निर्माण करवाएं जाएं। यानी सीएम की गाइड लाइन स्पष्ट है और कलेक्टर यदि कुछ भी गलत करेंगे तो उन्हें ही जिम्मेदार माना जाएगा।
अब जिले में हालात यह है कि एक त्रिकोण बना हुआ है इसमें एक ओर विधायक देवती कर्मा और उनका परिवार है। दूसरे में जिला प्रशासन है और तीसरे कोण में जिले से कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं। इनमें विमल सुराना, अवधेश गौतम और शकील रिजवी प्रमुख तौर पर शामिल हैं। यानी जिले में एक अदृश्य चक्रव्यूह में कर्मा परिवार की राजनीति बुरी तरह फंसी हुई है। महेंद्र कर्मा होते तो संभवत: मामला यहां तक कतई ना पहुंचता। आज की परिस्थिति में यदि देवती कर्मा कलेक्टर विनीत नंदनवार के तबादले के लिए अड़ी हैं तो दूसरी ओर उन्हें जिले में बनाए रखने के लिए भी फिल्डिंग सजी हुई है। इस बीच बुधवार को कलेक्टर विनीत नंदनवार दंतेवाड़ा पहुंच गए हैं।