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अपने अपने चाणक्य…

सुदीप ठाकुर

महज तीन दिनों के भीतर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा करते समय देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन से बन रही सरकार के बारे में टिप्पणी की थी कि यह तीन पहियों की ऐसी गाड़ी है, जिसका कोई भी पहिया एक दिशा में नहीं चल सकता!

फडणवीस ने चाणक्य द्वारा लिखी गई किताब ‘अर्थशास्त्र’ पढ़ी होती, तो शायद यह टिप्पणी नहीं करते। चाणक्य ने इस महान ग्रंथ के सातवें अध्याय में लिखा था, ‘जिस प्रकार गाड़ी का एक पहिया दूसरों की सहायता के बिना अनुपयुक्त होता है, इसी प्रकार राज्य चक्र भी अमात्य आदि की सहायता के बिना एकाकी राजा के बिना नहीं चलाया जा सकता। इसलिए राजा को उचित है कि वह योग्य अमात्यों को रखे और उनके मत को बराबर रखे।’ (कौटलीय अर्थशास्त्र विद्याभास्कर, मेहरचंद लक्ष्मण दास, अध्यक्ष संस्कृत पुस्तकालय सैदपिट्ठा बाजार लाहौर द्वारा प्रकाशित किताब, पेज नंबर 35)

शनिवार तड़के दोबारा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय लगता है कि फडणवीस ने अमात्य यानी अपना मंत्री चुनते समय गलती कर दी, वरना उनके उपमुख्यमंत्री अजीत पवार तीन दिन में ही अपने चाचा शरद पवार के पास नहीं लौट जाते जिन्हें नया चाणक्य कहा जा रहा है!

महाराष्ट्र के ताजा राजनीतिक घटनाक्रम में इतिहास के जिस शख्स को सबसे अधिक याद किया जा रहा है, वह चाणक्य ही है। हालांकि जो भाजपा चाणक्य से अपने अतीत को जोड़कर देखती रही है, वह सियासत के इस खेल में फिलहाल बुरी तरह मात खा गई है।

वैसे चाणक्य का भारत के लिए क्या महत्व है, यह जानने के लिए सुनील खिलनानी की किताब Incarnation: India in 50 Lives ( हिंदी में अवतरणः भारत के पचास ऐतिहासिक व्यक्तित्व) पढ़नी चाहिए। इसमें खिलनानी ने ऐसी पचास शख्सियतों के बारे में लिखा है, जिन्होंने भारत के ढाई हजार वर्ष के ज्ञात सफर को प्रभावित किया है।

खिलनानी चाणक्य या कौटिल्य के अर्थशास्त्र से यह पंक्ति उद्धृत करते हैं, ‘किसी धनुर्धारी द्वारा छेड़े गए तीर से किसी एक व्यक्ति की मौत हो सकती है या संभव है कि कोई नहीं मारा जाए, लेकिन रणनीति के उपयोग से बुद्धिमान व्यक्ति गर्भ में मौजूद शिशु तक को मार सकता है। ‘ यह पंक्तियां वाकई बेहद निर्मम हैं, लेकिन चाणक्य सत्ता हासिल करने के लिए साम दाम दंड भेद की नीति की वकालत करते हैं। आज की सत्ता की राजनीति इससे अलग कहां है?

सत्ता की जिन दुरभिसंधियों को हम आज देख रहे हैं, उसमें कहीं न कहीं चाणक्य के सूत्र भी जिम्मेदार हैं, जो भारतीय राजनीति को प्रभावित करते रहे हैं। और यह किस्सा तो बेहद मशहूर है कि कैसे 1937 में कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में जवाहर लाल नेहरू ने चाणक्य के छद्म नाम से मॉडर्न रिव्यू में खुद की आलोचना करते हुए एक लेख लिखा था।

नेहरू ने लिखा था, ‘कांग्रेस अध्यक्ष में एक तानाशाह की सभी प्रवृत्तियां मौजूद हैं, व्यापक लोकप्रियता, दृढ़ उद्देश्य, ऊर्जा, गौरव, संगठनात्मक क्षमता, कठोरता और, भीड़ को आकर्षित करने की क्षमता, दूसरों के प्रति असहिष्णुता और बेबस और अक्षम लोगों के प्रति अवमानना का भाव।’

मगर आधुनिक भारत में जवाहरलाल नेहरू को नहीं, बल्कि सरदार वल्लभ भाई पटेल को चाणक्य के अधिक नजदीक माना जाता है। मई, 2014 के बाद से तो इस परियोजना पर खासा काम किया गया है। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के 140 वें जन्मदिन के मौके पर 31 अक्तूबर 2015 को उन्हें कुछ इस तरह से याद किया थाः

‘…. हिंदुस्तान के इतिहास की तरफ देखें, तो चाणक्य ने चार सौ साल पहले देश को एक करने के लिए भगीरथ प्रयास किया था और बहुत बड़ी मात्रा में सफलता पाई थी। चाणक्य के बाद भारत को एकता के सूत्र में बांधने का अहम काम किसी महापुरुष ने किया तो वो सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया, और उसी के कारण तो आज कश्मीर से कन्याकुमार और अटक से कटक तक हम इस भारत मां को याद करते हैं, भारत मां की जय बोलते हैं…।’ (https://www.indiatoday.in/india/story/after-chanakya-it-was-patel-who-strung-india-together-in-unity-pm-270689-2015-10-31)

जी हां, प्रधानमंत्री मोदी ने चार सौ साल ही कहा था, इतिहास को लेकर इस तरह की उनसे यह कोई पहली चूक तो है नहीं।

आजाद भारत में जिस एक और शख्स ने चाणक्य के रूप में लंबे समय तक पहचान बनाए रखी, वह थे मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र। उन्हें नेहरू के विरोधी के तौर पर जाना जाता था। नेहरू से उनका इतना मतभेद था कि वह 1951 जनसंघ ( आज की भाजपा) के अध्यक्ष बनने तक को तैयार हो गए थे। लेकिन यही डी पी मिश्र नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनते ही उनके चाणक्य बन गए! 1969 में कांग्रेस के ऐतिहासिक विभाजन के पीछे इंदिरा के इसी चाणक्य की अहम भूमिका थी।

भाजपा ने समय समय पर अपने चाणक्य बदले हैं। इसमें दो लोगों का जिक्र किया जा सकता है, एक हैं डी पी मिश्र के पुत्र ब्रजेश मिश्र और दूसरे हैं, उसके पूर्व लौह पुरुष लालकृष्ण आडवाणी। 1998 में प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने पूर्व आईएफएस अधिकारी ब्रजेश मिश्र को अपना मुख्य सचिव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया था। ब्रजेश मिश्र के निधन के बाद वरिष्ठ पत्रकार वीर संघवी ने लिखा था कि वाजपेयी ने उनमें अपने पिता की तरह चाणक्य जैसी चालाकी देखी थी।

आडवाणी को भी चाणक्य होने का थोड़े समय के लिए सौभाग्य मिला था। 2013 की ऐसी ही सर्दियों जब यह तय हो गया था कि भाजपा 2014 के लोकसभा चुनाव में आडवाणी को नहीं नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाएगी, तो उन्हीं दिनों भाजपा प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने कहा था, ‘जहां तक आडवाणी जी की बात है तो वह चाणक्य की तरह है। वह नंद वंश को बेदखल कर चंद्रगुप्त को सिंहासन पर बिठाएंगे।’ ( https://www.indiatoday.in/india/north/story/chanakya-advani-coronate-chandragupta-modi-says-bjp-211292-2013-09-17)

मई, 2014 के बाद से अमित शाह भाजपा के नए चाणक्य बनकर उभरे हैं। महाराष्ट्र के ताजा घटनाक्रम से लगता है कि उन्होंने भी चाणक्य के अर्थशास्त्र का ठीक से अध्ययन नहीं किया है।

चाणक्य ने अर्थशास्त्र के नौवें अध्याय में लिखा थाः

‘देखा जाता है कि आदमियों की भी घोड़ों की तरह आदत होती है। घोड़ा जब तक अपने स्थान पर बंधा रहता है, बड़ा शांत मालूम पड़ता है, परंतु जब वह रथ आदि में जोड़ा जाता है, तो बिगड़ जाता है, बड़ी उछलकूद मचाता है। इसी प्रकार प्रथम शांत दीखने वाला पुरुष भी कार्य पर नियुक्त हो जाने पर कभी कभी विकार को प्राप्त हो जाता है। इसीलिए राजा को चाहिए कि वह कर्ता (अध्यक्ष), कारण (नीचे के कर्मचारियों) देश, काल, कार्य, नौकरों का वेतन, और उदय अर्थात लाभ के विषय में अवश्य जानता रहे।’
(कौटलीय अर्थशास्त्र विद्याभास्कर, मेहरचंद लक्ष्मण दास, अध्यक्ष संस्कृत पुस्तकालय सैदपिट्ठा बाजार लाहौर द्वारा प्रकाशित किताब, पेज नंबर 147)

महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के महा विकास अगाड़ी के नेता उद्धव ठाकरे का रथ तैयार है। क्या वह सारे घोड़ों को एकजुट रख पाएंगे?

http://shorturl.at/bfsuR

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