दो बड़े घटनाक्रम और उनका जिक्र जरूरी तो है…
हिंदुस्तान में इन दिनों लोकसभा चुनाव की गहमागहमी मची है। चारों ओर से नारों और आरोपों की चिल्लपों से भरे इस वातावरण में यह कहना कठिन है कि कौन सही और कौन गलत! ठीक ऐसे समय में दो बातें तो ऐसी हैं जिनका जिक्र करना ही चाहिए और उस पर मंथन भी क्योंकि इन दो बातों से आने वाले वक्त में बहुत कुछ होना दिख रहा है…
पहली बात तो भोपाल से भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी प्रज्ञा ठाकुर नाम में साध्वी ना लगाने के पीछे यही कारण है कि वे अपने इस नाम का ही उपयोग नामांकन में करेंगी।
प्रज्ञा ठाकुर का अतीत दक्षिण पंथी विचारधारा के लोगों के लिए कट्टर हिंदु और राष्ट्रवादी मसला है। जो इस बात को स्वीकार नहीं करते उनके लिए दंक्षिण पंथ की विचारधारा से जुड़े लोगों का साफ कहना है कि वे हिंदु और राष्ट्रवादी नहीं हैं।
भाजपा 2019 में कोई भी दांव छोड़ना नहीं चाहती। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजादी के 70 बरस बाद पहले पीएम हैं जिन्होंने अपनी चुनावी आक्रमकता से विपक्ष को अचंभित कर दिया है।
जब उन्होंने प्रज्ञा ठाकुर का जिक्र करते चुनावी रैली में एक प्रकार से प्रज्ञा के द्वारा उठाए गए तथ्यों को समर्थन किया है तो यह अपने आप में बड़ी घटना है क्यों कि प्रत्याशी घोषित होने के बाद अपनी पहली ही सभा में प्रज्ञा ने जो कहा है उससे पूरे देश में हल्ला मचा हुआ है।
26/11 के आतंकवादी हमले में शहीद एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे की शहादत को शायद ही कोई भूला होगा? शहीद हेमंत करकरे पर प्रज्ञा ठाकुर ने जिस तरह के आरोप लगाए और मौत को जायज ठहराया यह हिंदुस्तान की नई पहचान है।
चुनाव के दौरान राजनैतिक प्रचार में सबसे निचला स्तर 2019 का माना जाना चाहिए। चाहे विपक्ष के प्रमुख दल कांग्रेस की ओर से लगातार चौकीदार चोर है के नारे हों या सत्ता पक्ष की ओर से कांग्रेस अध्यक्ष पर वंशवाद और चोरी को लेकर कई स्तरहीन आरोप लगाए गए हैं।
पहली बात तो यही है कि प्रज्ञा ठाकुर के प्रत्याशी बनाए जाने के बाद नई चर्चा चल पड़ी है कि क्या भारत की राजनीति अब अपराधियों और गंभीर किस्म के आरोपों के बाद कानून के दायरे या तो जमानत पर हैं या सजा के मुहाने पर खड़े हैं।
सवाल सिर्फ प्रज्ञा ठाकुर का ही नहीं है बल्कि ऐसे बहुत से चेहरे चुनाव मैदान पर किस्मत आजमा रहे हैं। सोशल मीडिया में फेक न्यूज पर चुनाव आयोग का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। बस गनीमत है कि तीसरा चरण पूरा होते तक कहीं से किसी अप्रिय घटना की सूचना नहीं आई है।
फिर भी पूरे देश में माहौल बहुत कुछ बदला—बदला सा है। इस वातावरण में यह तय करना कठिन हो गया है कि चुनाव के बाद सब कुछ बहुत आसानी से सामान्य हो पाएगा। बदले हुई परिस्थितियों में मतभेद, मनभेद का स्तर छू चुका है। यह चिंता की बात है।
दूसरी घटना सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश पर लगे यौन शोषण के इल्जाम से जुड़ी है। बीते 72 घंटों में जो कुछ हुआ है उससे कई तरह की चिंता उपजती दिख रही है। सीजेआई पर लगाए गए आरोप ना तो स्वीकार करने जैसे लग रहे हैं और ना ही अस्वीकार करना उचित लग रहा है। सीजेआई रंजन गोगोई ने न्यायपालिका पर गंभीर खतरा तो बताया है पर यह भी देखा जाना जरूरी है कि ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने जो दिशा निर्देश दिए हैं उसका अनुपालन स्वयं पर लगे आरोपों के बाद करना न्यायपालिका के लिए नजीर बन सकता है।
आरोप लगाने वाली पीड़िता को झूठा कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में जो व्यवस्था दी है उसी के तहत सीजेआई को भी खड़ा होना पड़ेगा। यह अलग बात है कि आरोपों को लेकर साजिश की बात कही जा रही है पर अलग न्याय पालिका के प्रमुख पर दाग लगा होगा तो पूरी न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठता रहेगा।
आज मुद्दा में बस इतना ही…