#between naxal and force कोंटा इलाके के 2500 वर्ग किलोमीटर तक विस्तारित आधार क्षेत्र में माओवादियों की C+4 टेक्टिस से ताड़मेटला में सीआरपीएफ को सबसे बड़ा नुकसान…
Getting your Trinity Audio player ready...
|
- सुरेश महापात्र।
सलवा जुड़ूम की परिस्थितियों में मीडिया अपना काम तो कर रही थी पर उसे बहुत ज्यादा सर्तकता बरतने की स्थिति रही। इसकी बहुत सी वजहें रहीं… (11) आगे पढ़ें…
दोरनापाल से चिंतलनार होते हुए जगरगुंडा दूरी 50 किलोमीटर और दोरनापाल से एर्राबोर होकर कोंटा करीब 50 किलोमीटर यानी करीब 2500 वर्ग किलोमीटर इलाके में माओवादियों का आधार क्षेत्र फैला हुआ है। एनएच के एक ओर सबरी का प्रवाह और दूसरी ओर माओवादियों का गढ़। विशेषकर इस इलाके में माओवादियों ने अपना आधार क्षेत्र बनाया हुआ है।
6 अप्रेल 2010 को ताड़मेटला में सीआरपीएफ के एक सर्चिंग आपरेशन के दौरान घात लगाकर हमले में 76 जवान शहीद हो गए। यह इस तरह की पहली घटना साबित हुई जिसमें दुनिया के सबसे बड़े अर्धसैनिक बल को जबरदस्त नुकसान पहुंचा था। इस हमले की खबर के बाद राज्य और केंद्र सरकार की चूलें हिल गई।
हमले के दो दिन बाद ही गृहमंत्रालय द्वारा 8 अप्रेल को एक सदस्यीय समिति को पूरे मामले की जांच की जिम्मेदारी सौंपी थी। सीमा सुरक्षा बल के पूर्व प्रमुख ई.एन. राममोहन को यह काम सौंपा गया था। एकल सदस्यीय इस कमेटी के प्रमुख ने दंतेवाड़ा जिले में छह अप्रैल को नक्सलियों द्वारा 76 सुरक्षाकर्मियों की हत्या पर अपनी रिपोर्ट 26 अप्रेल 2010 को केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम को सौंपी।
अधिकारियों की चूक की जांच के लिए सीआरपीएफ द्वारा गठित कमेटी की जांच रिपोर्ट पर उचित कार्रवाई की जाएगी। कुछ चूकों के लिए जिम्मेदार पाए गए अधिकारियों को तब से स्थानांतरित कर दिया गया है। एक कोर्ट ऑफ इंक्वायरी की गई है, अधिकारियों की चूक की जांच के लिए सीआरपीएफ द्वारा गठित और रिपोर्ट पर उचित कार्रवाई की जाएगी।
इसके अलावा, इनपुट के अनुसार सीआरपीएफ से उपलब्ध है, उन्होंने समिति की सिफारिशों पर उचित कार्रवाई की है। इनमें, अन्य बातों के साथ-साथ, प्रत्येक राज्य में नक्सल विरोधी अभियानों के प्रभारी अधिकारी के रूप में एक आईजीपी स्तर के अधिकारी के रूप में पोस्टिंग शामिल है छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और और झारखंड।
जगदलपुर, नारायणपुर, बीजापुर, पश्चिम मेदिनीपुर, पलामू, रांची और चाईबासा में इन क्षेत्रों में विशेष रूप से डीआईजी की पदस्थापना कर नक्सल विरोधी अभियान चलाना।
वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों में राज्य पुलिस और सीआरपीएफ के साथ प्रभावी समन्वय तंत्र स्थापित करना और सीटीजेडब्ल्यू स्कूल, कांकेर में सीआरपीएफ कर्मियों का प्रशिक्षण दिए जाने का उल्लेख किया गया।
इस रिपोर्ट के बाद जिस तरह की उम्मीद की जा रही थी कि वास्तविक खामियों तक जांच कमेटी पहुंचेगी ऐसा नहीं हुआ। बल्कि राममोहन कमिटी की रिपोर्ट में सिवाए इन कुछ बिंदुओं के सारी बातें दार्शनिक तौर पर दर्ज की गईं थीं। विशेषकर इसमें माओवादी समस्या को लेकर तथ्यों का जिक्र किया गया था। जबकि जांच के दौरान इस तथ्य को जानने की प्रतिक्षा रही कि आखिर माओवादियों ने इतनी बड़ी वारदात को कैसे अंजाम दे दिया। इसमें किस तरह की सुरक्षा खामियां थीं जिसके चलते यह घटना घटित हुई?
कमेटी की रिपोर्ट के बाद दंतेवाड़ा के एसपी अमरेश मिश्रा का तबादला कर दिया गया। सीआरपीएफ के नलिन प्रभात को हटा दिया गया। दंतेवाड़ा में पदस्थ डीआईजी नक्सल आपरेशन एसआरपी कल्लूरी को एसएसपी के तौर पर पदस्थ कर दिया गया।
6 अप्रेल को हादसे के बाद मैंने डीआईजी एसआरपी कल्लूरी से उनका पक्ष जानने की कोशिश की थी तो उन्होंने साफ तौर पर कह दिया कि ‘ताड़मेटला इलाके में फोर्स किसी आपरेशन में निकली है इसकी जानकारी उन्हें नहीं थी।’ जबकि हमें बाद में पता चला कि उन्हें सर्चिंग आपरेशन के संबंध में पूरी जानकारी थी। और तो और आपरेशन से पहले डीआईजी एसआरपी कल्लूरी, एसपी अमरेश मिश्रा और सीआरपीएफ के नलिन प्रभात की डिटेल प्लानिंग हुई थी। जिसमें खुफिया इनपुट के आधार पर बड़े आपरेशन के लिए फोर्स को रवाना किया गया था।
यह भी तथ्य सामने आया था कि डीआईजी एसआरपी कल्लूरी और एसपी अमरेश मिश्रा के बीच सब कुछ सही नहीं था। जिसकी वजह यही थी कि दोनों के वर्किंग स्टाइल में बड़ा फर्क था। हांलाकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि नक्सल मोर्चे पर दोनों ने फ्रंट फुट पर खेलना ही सही मान रखा था।
हमारी जानकारी के अनुसार विस्तृत प्लानिंग के बाद सीआरपीएफ की एक कंपनी को आपरेशन के लिए रवाना किया गया। जिसके तहत ताड़मेटला, तिम्मापुर, मोरपल्ली इलाके की सर्चिंग कर वहां माओवादियों का एक तलाशी अभियान चलाकर लौटना था। इनपुट था कि माओवादी के बड़े लीडर हिड़मा ने वहां कैंप किया था।
इलाका बड़ा था और गर्मियों के दिन थे। फोर्स के निकलने के बाद ही माओवादियों को उनकी आमद की भनक लग चुकी थी। वे जवानों को थका देना चाहते थे। फोर्स दो दिन तक इलाके की सर्चिंग करते हुए थक चुकी थी। इस दौरान कहीं भी माओवादियों की मौजूदगी नहीं मिली तो फोर्स लौटने से पहले थकान मिटा रही थी कि माओवादियों ने घेराबंदी कर फायरिंग खोल दिया। जवानों को बचने का मौका ही नहीं मिल सका।
पीएलजीए के स्थापना की दसवीं वर्षगांठ के मौके पर दिसंबर 2010 में प्रकाशित अपनी पत्रिका में माओवादी संगठन ने 6 अप्रेल 2010 की घटना के अपनी सफलता को लेकर विस्तार से उल्लेख किया है। इसमें माओवादियों ने बताया कि यह वारदात मुकरम इलाके में हुई थी। जिसे उन्होंने ताड़मेटला 2 का नाम दिया है। इसमें 30 घंटे तक दंडकारण्य की कंपनी 3 ने उर्पलमेटा में जिस तरह की सफलता हासिल की थी इसी तरह कंपनी 8 ने मुकरम ताड़मेटला में हमला एक कदम आगे मोबाइल वॉर ऑपरेशन की सफलता के तौर पर चिन्हित किया है।
इस पत्रिका में माओवादियों ने अपनी दो रणनीति का जिक्र किया है जिसमें पहला ‘स्थानीय लोगों के साथ मजबूत बंधन और मजबूत जन आधार एक दूसरे के पूरक हैं और ‘ऐतिहासिक मुकरम-ताड़मेटला’ घात लगाकर हमला की सफलता में इसने मदद की।’ दूसरा ‘निचले स्तर की कमानों के तहत मध्य कमान और पीएलजीए में तीन प्रकार के बलों को केंद्रीकृत किया गया था। बेहतर C4 (कमांड-कंट्रोल-संचार-समन्वय) यहां लागू किया गया था।’
ऐसा माना जा सकता है इस इलाके में माओवादियों की मर्जी के बगैर सांस लेना भी दूभर है। इसी इलाके में सलवा जुड़ूम के बाद सबसे ज्यादा पलायन दर्ज किया गया। आधिकारिक आंकड़े और एनजीओ के आंकड़े अलग—अलग हो सकते हैं पर हजारों विस्थापित आदिवासी परिवार आज भी तेलंगाना में अपना जीवन बसर करने को मजबूर हैं। 12 आगे पढ़ें…
क्रमश: