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पांच करोड़ का पत्ता गायब आरोप तय होने के बाद भी ठेकेदार को ना पैसा मिला ना पत्ता… भ्रष्टाचार भूपेश सरकार के दौर का और बचाने वाले विष्णु सुशासन के चेहरे…

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इम्पेक्ट एक्सक्लूसिव। सुकमा/रायपुर।

छत्तीसगढ़ के अति नक्सल प्रभावित इलाके में तेंदूपत्ता के नाम पर किस तरह का गोरखधंधा होता है यह किसी बाहरी को भनक तक नहीं लग सकती। क्योंकि तेंदूपत्ता की तोड़ाई वन समितियों के माध्यम से करवाई जाती है। इसके पहले या तो फड़ की निलामी में तेंदूपत्ता के ठेकेदार फड़ ही खरीद लेते हैं या वन विभाग के माध्यम से की गई तोड़ाई के बाद तेंदूपत्ता संग्रहित गोदामों से ठेकेदारों को निलामी के माध्यम से बेच दिया जाता है।

तेंदूपत्ता का खेल ऐसा ही कि पत्ता तोड़ने वाले संग्राहक को सरकार तमाम सुविधाएं तो देती ही है साथ ही प्रति मानक बोरी के दर पर तेंदूपत्ता की गड्डी के आधार पर भुगतान करती है फिर उससे होने वाले लाभ का बोनस भी देती है।

तेंदूपत्ता की तोड़ाई के लिए जिन फड़ों को ठेकेदार खरीद लेते हैं वे मानक बोरा के हिसाब से खरीदी कर अपने गोदाम में सुरक्षित करते जाते हैं जिसका हिसाब वन समितियों के पास होता है। समिति के रिकार्ड के आधार पर ही पत्ता संग्राहकों को पहले भुगतान मिलता है फिर सरकार द्वारा जारी की गई बोनस राशि संग्राहकों को दी जाती है। यही प्रक्रिया है।

बस्तर में तेंदूपत्ता संग्रहण की आड़ में कभी—कभी ऐसा कुछ अजीब हो जाता है जिसके लिए दोषी भले ही वन विभाग के अफसर हों पर इसका असर तेंदूपत्ता संग्राहकों के हक का भी होता है। करीब तीन साल पहले सुकमा जिले में तेंदूपत्ता संग्रहकों के पैसों के भुगतान का मामला तत्कालीन सीपीआई नेता और कोंटा इलाके के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने उठाया था।

मामला उपर तक पहुंचा और भारी दबाव के बीच तेंदूपत्ता संग्राहकों को उनकी मेहनताना का भुगतान प्रबंध समिति के खाते से किया गया। इसके बाद उन संग्राहकों को बोनस की कितनी राशि दी गई इसका हिसाब फिलहाल नहीं है। पर इस मामले में एक रोचक तथ्य वन विभाग की जांच में बाहर आया।

जिस पर कार्रवाई के लिए अपर प्रबंध संचालक व्यापार ने 5 अक्टूबर 2023 को एक पत्र प्रबंध संचालक लघु वनोपज सहकारी संघ मर्यादित सुकमा को इस आशय के साथ भेजा कि तेंदूपत्ता लाट क्रमांक 37ब समिति पोलमपल्ली सीजन 2021 को रावलमल जैन के गोदाम से तेंदूपत्ता क्रेता जाकिर बाशा शेख कुरनूल आंध्रप्रदेश को दिलाया जाए।

मजेदार बात तो यह है कि रावलमल जैन के गोदाम में तेंदूपत्ता क्रेता जाकिर बाशा शेख का पत्ता कैसे पहुंचा? और आखिर 2021 के संग्रहण का पत्ता 2023 तक किसी दूसरे के गोदाम में होने के दावे का आधार क्या है? पूरा मामला क्या है? जिसके खुलने से छत्तीसगढ़ वन विभाग की जांच रिपोर्ट के बाद तत्कालीन डीएफओ यानी प्रबंध संचालक वनोपज सहकारी संघ मार्यादित सुकमा डा. सागर जाधव निशाने पर आ गए।

दरअसल मामला क्रेता का तेंदूपत्ता किसी दूसरे के गोदाम में होने का मामला भर नहीं है बल्कि करीब पांच करोड़ रुपए का तेंदूपत्ता बिना किसी की जानकारी में किसी दूसरे को बेचकर निगल जाने जैसा मामला है। संभवत: वन विभाग की जांच रिपोर्ट तो यही कह रही है।

आज से ठीक एक साल पहले प्रबंध संचालक लघु वनोपज सहकारी यूनियन सुकमा ने 26 फरवरी 2023 को एक पत्र अपर प्रबंधक संचालक छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज व्यापार एवं विकास सहकारी संघ रायपुर को भेजा है जिसमें तेंदूपत्ता लाट क्रमांक 37ब समिति पोलमपल्ली सीजन 2021 के हवाले के साथ अपनी अनुशंसा भेज दी है जिसमें साफ कहा है कि प्रबंध संचालक लघुवनोपज सहकारी यूनियन ने उप वन मंडलाधिकारी जो पदेन उप प्रबंध संचालक भी होते हैं की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित कर जांच रिपोर्ट दी गई है। जांच प्रतिवेदन से अपनी पूर्ण सहमति जताते दोषी अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ नियमानुसार कार्यवाही की अनुशंसा की है।

परिशिष्ठ एक में तत्कालीन डीएफओ एवं प्रबंध संचालक लघु वनोपज सहकारी यूनियन मर्या सुकमा डा. सागर जाधव के खिलाफ साफ शब्दों में कहा गया है कि उनके द्वारा अपने कर्तब्यों का पालन सुचारू रूप से नहीं किया गया। अपने कार्य में लापरवाही बरतते हुए स्वयं को अनुशासनिक कार्यवाही का भागीदार बनाया है।

पर पूरी कहानी तो किसी मर्डर मिस्ट्री से भी रोचक है। दरअसल तेंदूपत्ता ठेकेदार या क्रेता द्वारा अवैध रूप से तेंदूपत्ता संग्रहण पर रोक लगाने की जिम्मेदारी प्रबंध संचालक की ही होती है। ताकि गरीब आदिवासी तेंदूपत्ता संग्राहकों के साथ किसी भी तरह का अन्याय ना हो सके। इम्पेक्ट की पड़ताल में यह तथ्य सामने आया है कि वर्ष 2021 में सुकमा वन मंडल अंतर्गत अवैध रूप से तेंदूपत्ता संग्रहण कर सीमावर्ती मलकानगिरी के गोदाम में इसका अवैध संग्रहण किया गया।

जिसकी जानकारी मिलने के बाद वन विभाग ने छापामार कार्रवाई कर करीब 8 ट्रक तेंदूपत्ता गोदाम से जब्त किया और उसे सुकमा वापस लाया गया। इसके बाद अंदरूनी इलाके किस्टारम में संग्रहित किए गए तेंदूपत्ता करीब एक ट्रक को भी इसी के साथ समायोजित कर रखवा दिया। जिस गोदाम में इन पत्तों का भंडारण किया गया। नियमानुसार उसे तेंदूपत्ता क्रेता को सौंपा जाना था। पर गोदाम में रखा तेंदूपत्ता किसी अन्य व्यक्ति को बेच दिया गया और इसकी भनक तक लगने नहीं दी गई।

जब तेंदूपत्ता क्रेता ने भंडारण किए गए गोदाम से अपना पत्ता लेना चाहा तो गोदाम में पत्ता था ही नहीं। तो यह पत्ता कहां गायब हो गया। इसके लिए सबसे निचले स्तर के एक कर्मचारी पर गैरजिम्मेदारी का आरोप लगाकर कार्रवाई कर दी गई। पर असल में सच्चाई कुछ और ही थी। इसके बाद इस मामले में बारिकी से पड़ताल विभागीय स्तर पर की गई।

विभागीय जांच में तत्कालीन प्रबंध संचालक की भूमिका को लेकर सवाल खड़े हुए और उनके खिलाफ कार्यवाही की अनुशंसा जांच प्रतिवेदन और रिपोर्ट में की गई। मजेदार तथ्य तो यह है कि उक्त मामले के बाद डीएफओ का तबादला पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में सुकमा से दंतेवाड़ा हो गया।

इम्पेक्ट ने इस मामले में तत्कालीन डीएफओ डा. सागर जाधव से मोबाइल पर बात की तो उन्होंने कहा कि जांच कमेटी ने ना तो उन्हें ऐसे किसी मामले में कोई आरोप पत्र दिया है और ना ही ऐसे किसी मामले की उन्हें जानकारी है। यह सही भी है क्योंकि भ्रष्टाचार में लूट के हिस्सेदार अब विष्णु सुशासन के चेहरे बन चुके हैं सो इंतज़ार है कि वे अनुमोदित करें तो आगे कार्रवाई हो…

उक्त डीएफओ के कार्यकाल में सुकमा वन मंडल में कैम्पा मद से किए गए कार्यों की भी रिपोर्ट इम्पेक्ट में सिलसिलेवार तरीके से प्रकाशित होगी। अब तक की गई जांच में जिस तरह के तथ्य उजागर हुए हैं उससे साफ है कि माओवादी प्रभावित इलाके में जहां 2021—22 में माओवादियों के सहमति के बगैर पत्ता भी नहीं हिल सकता था उन इलाकों में कैम्पा मद के करोड़ों रुपए निगल लिए गए हैं। पढ़ते रहिए इम्पेक्ट…