क्या यह माना जाए जिसने रोका था उसी ने खो करवा दिया…? केडी बने सत्ता के केंद्र उनके सहारे बस्तर की राजनीति…
इम्पेक्ट न्यूज। रायपुर।
वैसे देखा जाए तो जिले में कलेक्टर का पद भले ही ब्यूरोक्रेसी के लिए महत्वपूर्ण होता हो पर अब सत्ता के केंद्र के सहारे ही इन पदों पर रहने और हटने का खेल चलन में है। कलेक्टर कांफ्रेंस के ठीक दूसरे दिन बस्तर के कलेक्टर विजय दयाराम को राजधानी शिफ्ट कर दिया गया। उनकी जगह पर अब सुकमा के हरीश एस को बस्तर में जिम्मेदारी सौंपी गई है। बस्तर की राजनीति में इस समय सुकमा और बस्तर का जो रिश्ता है वह सत्ता के केंद्र के हिसाब से गहरा है।
बस्तर कलेक्टर विजय दयाराम को हटाने के बाद चर्चा तेज है कि ऐसा क्या हो गया कि जिसने रोका था उसी ने ही खो भी करवा दिया। दरअसल बस्तर में इस समय सत्ता के केंद्र में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण देव हैं। वे भले ही सार्वजनिक तौर पर यह कहते हों कि हमारा क्या है ना मंत्री हमारी सुनता है और ना ही सरकार… पर भीतरखाने से देखा जाए तो केडी ही बस्तर की राजनीति के केंद्र में हैं।
यह चर्चा बीते दो सप्ताह से तेज थी कि अब केडी का विजय दयाराम के साथ मोह भंग हो गया है। पर इसकी भनक वे किसी को लगने नहीं दे रहे थे। बस्तर के कोटे से मंत्री बनाए गए केदार कश्यप वन विभाग देख रहे हैं पर वे केडी के प्रभावक्षेत्र में एक फारेस्ट गार्ड तक के तबादले के लिए जोखिम लेना नहीं चाहते। बाकि सारे नेता भी केडी की राजनीति के इर्द—गिर्द चक्कर काटते दिख रहे हैं।
सत्तारूढ़ पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष कितना पावरफुल हो सकता है यह देखना समझना हो तो बस्तर के भाजपा नेता किरण देव को देखकर समझा जा सकता है। अतीत की एक बात है जिसकी चर्चा अब होना चाहिए। किरण देव के अग्रज स्व. अमर देव भाजपा की राजनीति में तेजी से पैर पसार रहे थे। तब बस्तर की राजनीति में स्व. बलिराम कश्यप की तूती बोलती थी।
जगदलपुर की आरक्षित सीट से अमरदेव ने विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन भरा। उनकी जाति पर आपत्ति लगाई गई। स्व. देव ने अपनी जाति राजगोंड लिखा था। मामला डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट सुनिल टंडन की अदालत में सुना गया। उन्होंने फैसला सुनाया कि राजगोंड अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं है। बस यही एक हैंडब्रेक था जिसे बलिदादा ने दबा दिया। यानी बलिदादा को यह पता था कि यदि देव परिवार बस्तर की राजनीति में आगे बढ़ता है तो कश्यप परिवार की राजनीति पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।
देव परिवार की राजनीति को किरण देव बड़ी शिद्दत से थामे रहे और जब एक मौका मिला तो उन्होंने यह दिखा भी दिया कि देव परिवार को लेकर बलिदादा की आशंका निर्मूल नहीं थी। 2023 के चुनाव में किरण देव के विधायक चुने जाने के बाद बस्तर की राजनीतिक फिजां पूरी तरह से बदल गई है। देव भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं यदि देखा जाए तो छत्तीसगढ़ में भाजपा के अब तक के सबसे पावरफुल अध्यक्ष दिखाई दे रहे हैं। बड़ी बात तो यह है कि किरण देव जिस तरह से भाजपा की राजनीति की बारिकियों को समझते हैं वे किसी के सामने यह जताते तक नहीं कि उनके बगैर पत्ता भी नहीं हिलेगा! और उनके बगैर पत्ता हिल भी नहीं रहा है।
सबसे बड़ा उदाहरण बस्तर में कलेक्टर विजय दयाराम हैं। जब पहली बार प्रशासनिक सर्जरी हुई तो सभी यह मान रहे थे कि कांग्रेस के दौर के डीएम विजय अब पराजित हो जाएंगे। पर किरण देव ने अपना वीटो लगा दिया। वे बच गए। अब जब सभी को लगा कि विजय अभी बने रहेंगे तो देव ने अपना पावर दिखा दिया। विजय राजधानी शिफ्ट कर दिए गए। विजय दयाराम आने वाले दिनों में बस्तर दशहरा को लेकर बड़ी तैयारी में जुटे थे। ‘द बस्तर मड़ई’ की थीम पर तेजी से काम चल रहा है। पहली बार रायपुर में बस्तर दशहरा को लेकर कार्ययोजना बैठक हुई। विश्वप्रसिद्ध बस्तर दशहरा में कलेक्टर का अपना रूतबा दिखाई देता है। समूचा पावर सेंटर कलेक्टर के आस—पास रहता है। ऐसे समय में संभवत: कलेक्टर विजय दयाराम की इच्छा के विपरित बस्तर से रवानगी ने बड़ा संदेश दे दिया है।
सीएम विष्णुदेव की समीक्षा बैठक के बाद सरकार ने शनिवार को दो कलेक्टरों में फेरबदल कर दिया। बस्तर कलेक्टर विजय दयाराम के स्थान पर हरीश एस. को बस्तर की कमान सौंपी गई है। हरीश अभी सुकमा जिला के कलेक्टर हैं। वहीं, भिलाई नगर निगम के कमिश्नर देवेश कुमार ध्रुव को सुकमा का कलेक्टर बनाया गया है। सुकमा जमींदार परिवार के किरण देव ने अपने क्षेत्र के कलेक्टर को बस्तर में बिठाकर यह साबित कर दिया कि फिलहाल बस्तर में सत्ता के केंद्र में परिवर्तन आसान नहीं है।
विजय दयाराम को राज्य कौशल विकास अभिकरण का सीईओ बनाया गया है। अब तक इसकी जिम्मेदारी राजेश सिंह राणा संभाल रहे थे। जीएडी के अवर सचिव अन्वेष धृतलहरे के द्वारा जारी आदेश के अनुसार राणा पहले की तरह सीईओ क्रेडा बने रहेंगे। उन्हें केवल अतिरिक्त प्रभार से मुक्त किया गया है।
बड़ा सवाल यही है कि केडी का विजय दयाराम से यकायक मोह भंग क्यों हो गया? जमीन पर गाना गुनगुनाते कलेक्टर के विडियो वायरल हो रहे थे। चित्रकोट और जगदलपुर में वे लगातार समां बांध रहे थे। लोगों को लुभा भी रहे थे पर बताया जा रहा है कि राजनीति में एक कदम फिसलते ही धाराशाई होने में देर नहीं लगती। विजय दयाराम भाजपा के भीतर और भी सत्ता के केंद्र तलाशने में लग गए थे और यही बात शायद खटक गई।
खैर यह कहना ही सही होगा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले महीने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की समीक्षा की थी। इस दौरान शाह ने बस्तर संभाग में विकास और नक्सल उन्मूलन के लिए वहां अच्छे अफसरों विशेष रुप से कलेक्टर को पदस्थ करने का निर्देश दिया है। इसमें विजय दयाराम को लेकर क्रियेटिविटी की कमी दिखी। पर हरीश एस भी तो कांफ्रेंस में सीएम के निशाने पर थे। सरस्वती साइकिल योजना के क्रियान्वयन को लेकर फिर भी उन्हें बस्तर पावर सेंटर मिलना बड़ी बात है।