Madhya Pradesh

सोशल मीडिया पर झूठ की फैक्ट्री चलाने वाली जमात, टीवी चैनलों पर निरर्थक हल्ला-गुल्ला

  • सोशल मीडिया पर झूठ की फैक्ट्री चलाने वाली जमात
  • टीवी चैनलों पर निरर्थक हल्ला-गुल्ला
  • पाकिस्तान का झूठा प्रोपेगैंडा

22 अप्रैल को पहलगाम हमले के बाद सोशल मीडिया पर "झूठ और अफवाहों की फैक्ट्री चलाने वाले, प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा और आरएसएस से घृणा करने वाले अंध-विरोधी-इकोसिस्टम" ने जैसे पोस्ट-प्रोडक्ट सोशल मीडिया पर परोसे, उसे देखकर कोई हैरानी अथवा अचरज नहीं हुआ। सिर्फ़ अफ़सोस हुआ कि इस इकोसिस्टम के महानुभाव अपनी ऊर्जा का अपव्यय करते हुए नकारात्मकता की ओर जा रहे हैं और गिरावट के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। अफ़सोस इस बात का भी है कि इस जमात के लोग हमारे समाज के प्रबुद्धजन हैं और ख़ुद को "उदारवादी व सेक्युलर" मानते हैं। पिछले ग्यारह वर्षों से यह "छद्म उदारवादी-स्यूडो सेक्युलर" जमात असत्य और अफवाहों की फैक्ट्री चला रही है। अतः इनका असत्य भाष्य कोई नई बात नहीं है और न ही आख़िरी बात। वैसे इनके असत्य भाष्य का फ़ायदा अंततः भाजपा के खाते में ही जाता है।

हमारे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मेनस्ट्रीम चैनल भारत पाकिस्तान के बीच की तनातनी को जिस हल्ले-गुल्ले और अत्यधिक आक्रामक अंदाज़ से दर्शकों को परोस रहे हैं, उससे भी कोई अच्छा दृश्य उत्पन्न नहीं हो रहा है। 7 से 10 मई के बीच युद्ध के चार दिनों में इन चैनलों के एंकरों ने टीआरपी हासिल करने के चक्कर में हल्ला मचाने की सारी हदें लाँघ दी थी। कोई कह रहा था कि भारतीय सेनाएँ पीओके में घुस चुकी हैं। कोई कह रहा था कि भारतीय नौसेना का युद्धक पोत कराची के पास पहुँच गया है। कोई कह रहा था कि लाहौर पर हमारा कब्ज़ा बिल्कुल नज़दीक है। कोई कह रहा था कि पाकिस्तान के अंदरूनी इलाकों में हमला करने के लिए हमारे फाइटर जेट उड़ान भर चुके हैं। सही ख़बर किसी चैनल के पास नहीं थी। आख़िर दूसरे दिन रक्षा मंत्रालय को सभी मीडिया चैनलों, डिजिटल प्लेटफॉर्म और व्यक्तियों को सख्त एडवाइज़री करना पड़ी। इस एडवाइजरी में कहा गया कि रक्षा अभियानों और सुरक्षा बलों की आवाजाही की लाइव कवरेज या रियल टाइम रिपोर्टिंग से परहेज करें। इसके बाद ही टीवी चैनलों के एंकरों पर थोड़ी-सी लगाम लगी। हमारा अनुभव तो यही है कि इस हल्ले गुल्ले का दर्शकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, उल्टे उन्हें कोफ्त ही होती है।

पहलगाम के हमले के बाद हमारे विपक्ष ने बहुत ही जिम्मेदारी और संवेदनशीलता का परिचय दिया था और परंपरागत नेगेटिव बयानों से परहेज करते हुए हर क़दम पर सधे हुए बयान दिए थे। सारे विपक्षी नेताओं ने वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए केन्द्र सरकार और सेना के हर कदम का समर्थन किया था। शशि थरूर ने तो दिल जीतने वाले बयान दिए हैं। वैसे भी शशि थरूर बहुत ही सुलझे हुए, सलीकेदार, शालीन, प्रबुद्ध राजनेता हैं। उनके बेहतरीन लेख और बयान शालीनता, बुद्धिमत्ता और ज्ञान से भरे होते हैं। उनकी पहली और संभवतः सबसे बड़ी ग़लती यही थी कि वे कांग्रेस के सबसे ताक़तवर परिवार की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में खड़े हो गए थे। उसके बाद से बड़ी ही ख़ामोशी से पार्टी में उनका क़द कम किया जाने लगा और आज वे कांग्रेस को अलविदा कहने की कगार पर खड़े हैं। पिछले 20 वर्षों से हम देख रहे हैं कि कांग्रेस ने बड़ी तादाद में अच्छे लोगों को खोया है। निःसंदेह पार्टी किसी भी बड़े-से-बड़े व्यक्ति से बड़ी होती है, मगर साल-दर-साल प्रतिभाशाली बुद्धिमान लोगों को खोते चले जाना क्या अच्छी बात है ?

संवेदनहीन रवैया

ख़ैर, विपक्ष के जिम्मेदाराना रवैये के ठीक विपरीत सोशल मीडिया के वीर-बहादुरों ने इन माध्यमों पर बेहद संवेदनहीन असत्य पोस्ट्स की झड़ी लगा दी है। दुनिया का कोई भी मसला हो, कोई भी विषय हो ये महानुभाव हर मामले के "विशेषज्ञ" हैं। 22 अप्रैल के बाद इन्हें हर दिन रंग बदलते देखकर रंग बदलने वाले प्राणी भी शर्मिंदा हो रहे हैं। इस दिन के बाद 7 मई तक कोई दिन ऐसा नहीं था, जब इन्होंने मोदी को न कोसा हो, कि वे जवाबी हमला क्यों नहीं कर रहे हैं। जब भारतीय सेनाओं ने प्रचंड हमला किया और पाकिस्तान मार खाने लगा, तो इन महानुभावों को युद्धविरोधी कविताएं, गीत, तराने याद आने लगे और इन 'तथाकथित-उदारवादियों' ने जंग के ख़िलाफ़ पोस्ट्स से सोशल मीडिया को भर दिया। Say no to war के स्लोगन हवा में लहराने लगे।

इस मक़ाम पर एक सवाल जरूर पैदा होता है कि–ख़ुदा न ख़्वास्ता अगर हालात इसके उलट होते और भारत को नुक़सान उठाना पड़ रहा होता, तो इन महानुभावों की प्रतिक्रिया क्या होती? आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि तब ये तराने और गीत सुनाई न पड़ते और न ही Say no to war का कोई स्लोगन दिखाई पड़ता। इसलिए कि इनकी सारी प्रतिक्रियाएं घोर सिलेक्टिव होती हैं। यह तो नहीं माना जा सकता कि ये सारे महानुभाव पाकिस्तान के हिमायती हैं, मगर मोदी और भाजपा का इनका अंध-विरोध जाने-अनजाने इन्हें पाक परस्ती के वृत्त में ले जाता है।

इसकी सबसे बड़ी मिसाल, एक बार फिर, तब दिखाई पड़ी, जब जंग रोकने का ऐलान हुआ। तब इनका रंग पूरी तरह से बदल गया। पुनः ये 'तथाकथित उदारवादी' युद्ध पिपासु की मुद्रा में आ गए और मोदी को कोसने लगे कि पाकिस्तान को और ठोंका क्यों नहीं, पीओके क्यों नहीं लिया ? स्पष्ट है कि मोदी के क़दमों से ही इनका रंग तय होता है। न तो इस जमात के युद्ध विरोध में कोई सच्चाई है और न ही इनका सीज़फायर के फ़ैसले का विरोध सच्चा है। इस इकोसिस्टम, इस जमात के बारे में ज़्यादा कुछ लिखने की जरूरत नहीं है। पूरी दुनिया इन्हें अच्छी तरह जान चुकी है, पहचान चुकी है। इन महानुभावों को अगर इसमें ख़ुशी मिलती है, तो इन्हें इनकी ख़ुशी मुबारक।

युद्ध के लिए आतुर लोग इस पर भी गौर करें

रूस और यूक्रेन के बीच तीन वर्षों से युद्ध चल रहा है। कोई भी देश यह कहने की स्थिति में नहीं है कि उसने युद्ध जीत लिया है। एक नज़र नुक़सान पर डालें। एक मोटे अनुमान के मुताबिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रूस को 109 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है और तक़रीबन एक लाख से ज़्यादा रूसी सैनिक मारे गए हैं। युद्ध में हो रहे खर्च की भरपाई के लिए उसे साइबेरिया के अकूत भंडार से निकलने वाले तेल और गैस की क़ीमतें काफी कम करना पड़ीं। अमेरिका को भी यूक्रेन को हथियारों और नक़दी मदद देने में तक़रीबन 12 लाख रुपए ख़र्च करने पड़े हैं। नाटो देशों को कितना नुक़सान उठाना पड़ा है, इसका आकलन नहीं किया जा सका है। यूक्रेन तो तक़रीबन तबाही के कगार पर पहुंच गया है। उसे 54 लाख करोड़ रुपए का नुक़सान झेलना पड़ा है और उसके 50 से 60 हजार सैन्य कर्मी मारे जा चुके हैं। यूक्रेन जैसे छोटे देश के लिए यह नुक़सान बहुत ही बड़ा है। इससे भी बड़ी हानि यह है कि रूस की बमबारी से यूक्रेन के 25 लाख से ज़्यादा इमारतें ध्वस्त हो गई हैं। तक़रीबन 70 लाख से ज़्यादा नागरिकों को देश छोड़कर पोलैंड, माल्दोवा, हंगरी और यूरोप के अन्य कई देशों में निर्वासन की अभावग्रस्त ज़िंदगी बिताने पर विवश होना पड़ा है।

राफेल गिराने की अफवाहें

दुनिया जानती है कि पाकिस्तानी सरकार, आर्मी और आईएसआई असत्य प्रोपेगैंडा चलाने में माहिर हैं। युद्ध के दौरान तो इनका झूठ बोलने और अफ़वाहें फैलाने का कारखाना ही चल पड़ता है। इनके असत्य प्रोपेगैंडा को तो भारत के लोग अच्छी तरह जानते-समझते हैं। कुछ भोले-भाले लोग इन अफ़वाहों को सच भी मान लेते हैं। यह एक जाल है, जो पाकिस्तान हर वक़्त बिछाता है। अफ़सोस तब होता है, जब मीडिया के हमारे वरिष्ठ साथी पाकिस्तान की अफवाहों को, पाकिस्तान के झूठे प्रोपेगैंडा को जानते-बूझते ख़बर बनाकर मीडिया में परोस देते हैं। उससे भी बड़ी विडंबना यह होती है कि हमारा सबसे बड़ा विपक्षी दल इसे मोदी और भाजपा के ख़िलाफ़ बड़ा मुद्दा बनाकर पब्लिक डोमेन में ले आता है।

हाल के दिनों में इसकी एक बड़ी मिसाल सामने आई। 7 मई को जब पाकिस्तान भारतीय सेना से मार खा चुका था, तब शहबाज़ शरीफ़ अपनी संसद में बड़े फ़ख़्र से 2025 के साल का सबसे बड़ा झूठ बोल रहे थे कि पाक एयरफोर्स ने भारत के पाँच फाइटर जेट्स को मार गिराया है, जिनमें दो राफेल हैं। दूसरे ही दिन 8 मई को पाक रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ़ ने अमेरिकी न्यूज़ नेटवर्क सीएनएन से एक इंटरव्यू में कहा कि हमने भारत के कुछ लड़ाकू विमान गिराए हैं, जिनमें एक राफेल है। सीएनएन के संवाददाता ने जब सबूत माँगे, तो ख़्वाजा महोदय ने बड़ी मासूमियत से कह दिया कि आप सोशल मीडिया में देख लीजिए। तीसरे दिन उनके किसी सैन्य अधिकारी ने मीडिया के सामने आकर कहा कि हमने एक राफेल गिराया है, जिसका मलबा भारत में जा गिरा है और एक भारतीय पायलट को क़ैद कर लिया है। चौथे दिन सेना के प्रवक्ता कहते हैं कि हमने किसी पायलट को नहीं पकड़ा है। इन बयानों का विरोधाभास ही यह बतलाने के लिए काफी है कि पाक सरकार और आर्मी सफ़ेद झूठ बोल रही है। इधर सीज़फायर के बाद भारतीय वायु सेना ने पूरी तरह स्पष्ट कर दिया कि कोई जेट नहीं गिराया गया और हमारे सारे पायलट सुरक्षित है।

पाकिस्तान के इस असत्य का फैक्ट चेक किया गया, तो सारा झूठ सामने आ गया। पाकिस्तान की तरफ़ से वायरल वीडियो जून 2024 में महाराष्ट्र में क्रैश हुए सुखोई-30MKI विमान का था, न कि राफेल का।
गूगल से हमने बीबीसी, रॉयटर्स, सीएनएन सहित बहुत से विदेशी नेटवर्क्स की ख़बरों को खंगाला। सभी ने पाक आर्मी के हवाले से खबर देते हुए कहा था कि हम इसकी पुष्टि नहीं करते। किसी भी नेटवर्क के पास सबूत का कोई चित्र अथवा वीडियो नहीं था।

फिर हमने GROK से यही सवाल पूछा। यह AI आजकल मोदी विरोधियों का सर्वाधिक पसंदीदा सूचना स्रोत बना हुआ है–

GROK से हमारा सवाल–"क्या पाकिस्तान ने भारत का राफेल लड़ाकू विमान गिराया है? सच क्या है? क्या यह पाक आर्मी का झूठ है?"
GROK का जवाब–"पाकिस्तान द्वारा भारत का राफेल लड़ाकू विमान गिराए जाने का दावा सत्य नहीं है और इसे गलत सूचना के रूप में खारिज किया गया है। भारतीय सूत्रों, जैसे प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB), और तथ्य-जांचकर्ताओं ने स्पष्ट किया है कि पाकिस्तानी सेना का यह दावा झूठा है। कोई विश्वसनीय भारतीय या अंतरराष्ट्रीय स्रोत, जैसे फ्रांसीसी अधिकारियों या स्वतंत्र मीडिया, इसकी पुष्टि नहीं करता। पाकिस्तानी मीडिया और कुछ सोशल मीडिया हैंडल्स ने दावा किया कि पाकिस्तानी वायु सेना ने पांच राफेल जेट्स सहित भारतीय विमानों को मार गिराया और इससे दसॉल्ट एविएशन के शेयरों में 6% की गिरावट आई। हालांकि, यह भी गलत है।

PIB ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा है कि वायरल वीडियो जून 2024 में महाराष्ट्र में क्रैश हुए सुखोई-30MKI विमान का था, न कि राफेल का। भारतीय सेना और सरकार ने भी पुष्टि की है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान राफेल जेट्स ने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए और कोई भी भारतीय राफेल विमान नहीं गिराया गया। इसके विपरीत, भारत ने S-400 और राफेल का उपयोग कर पाकिस्तानी ड्रोन हमलों को विफल किया।
GROK का बताया सच: पाकिस्तान का राफेल गिराने का दावा झूठा और प्रचारात्मक है। भारतीय राफेल जेट्स सुरक्षित हैं और ऑपरेशन सिंदूर में प्रभावी रहे हैं। यह दावा पाकिस्तानी सेना और मीडिया द्वारा फैलाई गई गलत सूचना का हिस्सा है।"

प्रोपेगैंडा या ख़बर

राफेल गिराने के प्रोपेगैंडा को हमारे यहाँ के एक अंग्रेज़ी अख़बार ने बड़ी ही चालाकी से ख़बर बनाकर छाप दिया। इस 'महान' अख़बार के पास भी कोई सबूत नहीं था। सिर्फ़ पाकिस्तानी विदेश मंत्री इशाक डार के एक असत्य बयान को जस-का-तस उठाकर ख़बर बना दी गई, जिनके मुताबिक राफेल विमान जब पाकिस्तान में घुसे, तो पाक एयरफोर्स के चीन निर्मित J-10C लड़ाकू विमानों ने उनका पीछा किया और मिसाइल दागकर कुछ राफेल गिरा दिए। ये ख़बर अगर सच होती तो विदेशी मीडिया इस पर टूट पड़ता और वास्तविक फ़ोटो और वीडियो दिखाए जाने लगते।

इस अंग्रेज़ी अख़बार की ख़बर को सोशल मीडिया के हमारे कुछ वीर बहादुरों ने नमक मिर्च लगाकर रस लेते हुए 'आँखों देखा हाल' के अंदाज़ में कुछ इस तरह से पोस्ट किया, मानो वे वहाँ मौजूद थे। इस ख़बर और पोस्ट में इनकी मंशा साफ़ नज़र आ रही थी। ये महानुभाव चीन के J-10C को राफेल से श्रेष्ठ बताना चाहते हैं। सच कहा जाए तो वैश्विक बिरादरी एक बार फिर अलग-अलग ब्लॉक्स में विभाजित हो चुकी है और हम संभवतः फिर से शीतयुद्ध के दौर में आ चुके हैं। कांग्रेस ने भी जो सवाल उठाए हैं, उसे इसी नज़रिए से समझा जा सकता है।

यह एक पक्ष है, जो निरंतर एक नैरेटिव सेट कर रहा है कि भारत पाक युद्ध के चार दिनों में चीनी लड़ाकू विमान राफेल से ज़्यादा प्रभावी साबित हुए हैं। इसकी वजह से पूरा यूरोप सदमे में है और चीन व पाकिस्तान में जश्न मनाया जा रहा है। ऐसी सोच पर ही आश्चर्य हो रहा है कि एक बे-सिर-पैर की अपुष्ट खबर कैसे पूरे यूरोप को ग़म में धकेल सकती है ? इससे भी बड़ी हैरानी की बात यह है कि हमारा सबसे बड़ा विपक्षी दल भारतीय सेना के शौर्य की बात न करके पाकिस्तान के असत्य प्रोपेगैंडा को उठाकर केन्द्र सरकार से सवाल कर रहा है। हमारी सेनाओं ने अभूतपूर्व शौर्य दिखाते हुए पाकिस्तान के 11 एयरबेस और 9 आतंकी ठिकाने ध्वस्त किए हैं। साथ ही पाकिस्तान के हर शहर के आसपास मिसाइल दागकर पाक आर्मी को सीधा संदेश दिया है कि ये सभी शहर भारतीय सेना के निशाने पर है।

मार खाकर भी यदि पाकिस्तान जश्न मना रहा है, तो यह पाक आर्मी और आईएसआई का मसला है। वैसे वैश्विक बिरादरी इस जश्न पर हँस रही है। इस जश्न की वजह समझी जा सकती है। पाकिस्तान के भिक्षापात्र में आईएमएफ ने 12 हजार करोड़ रुपए की भिक्षा डाल दी है। उनकी ख़ुशी की दूसरी बात यह है कि डोनाल्ड ट्रंप ने शहबाज़ शरीफ़ को प्रधानमंत्री मोदी के बराबर मान लिया है। मगर वे भूल जाते हैं कि भारतीय सेना के हमले से उन्हें तक़रीबन 28 हजार करोड़ रुपए का नुक़सान हुआ है।

● नीरज मनजीत