एनजीओ और अफसर के बीच पेंच… रेप का केस…
दबी जुबां से… / सुरेश महापात्र।
एनजीओ यानी अशासकीय संस्था जिनके प्रोजेक्ट की रिपोर्ट में एक बिंदु सामान्यत: यही लिखा रहता है कि यह जीरो इन्वेस्टमेंट के तहत है। …और इसी 0 के आधार पर एनजीओ को काम के लिए इतनी राशि जारी हो जाती है कि जिसका अनुमान सहज लगाना कठिन है। यह अफसाना नहीं हकीकत है। छत्तीसगढ़ शासन के कम से कम तीन ऐसे विभाग हैं जिनमें एनजीओ क्रियाशील हैं और जमकर काम कर रहे हैं।
इनमें कई विभाग शामिल हैं पर स्कूल शिक्षा, महिला एवं बाल विकास, वन और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग। यहीं से शुरू होती है जिले में बैठे अफसरों से लेकर राजधानी में बैठे की पर्सन के बीच की कहानी। इस कहानी में विभाग के प्रमुख अधिकारियों की भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। यानी विभाग में किसी प्रोजेक्ट को स्वीकृत करवाने से लेकर क्रियान्वयन तक की पूरी कहानी ऐसे ही रची जाती रही है। यह कोई नया खेल नहीं है।
अब आप यह सोच सकते हैं कि आखिर एनजीओ की इस व्यवस्था का किसी अफसर पर लगे रेप जैसे गंभीर आरोप से क्या संबंध हो सकता है? ऐसे में यह जान लीजिए कि यदि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मामला सामने आते ही यदि सीएस को पूरे मामले की जांच का जिम्मा सौंपा है तो यूं ही नहीं हो सकता। भूपेश राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी हैं। मुख्यमंत्री बनने से पहले जमीनी स्तर पर जमकर काम किया है। इसीलिए उनके फैसले कई मामलों में जमीनी हकीकत से जुड़ होते हैं।
जांजगीर का मामला भी महज कलेक्टर साहब के नाजायज आशिकी का मसला मात्र नहीं है। बल्कि यह सिस्टम में लगे उस फफूंद का एक हिस्सा मात्र है जो सामने उजागर हो गया। इस मर्ज को समझे बगैर इसका उपचार किया जाना संभव नहीं है। इसीलिए जांच बिठाई गई है।
पीड़िता जनप्रनिधि हैं। विपक्ष की पार्टी से संबंध रखती हैं। कलेक्टर ने एनजीओ के लिए किसी काम का झांसा दिया ऐसा खुद उसने बताया है। कलेक्टर ने झांसा कोई एक दिन में तो दिया नहीं होगा। इसके लिए थोड़ी कवायद भी की गई होगी। यानी सीधे तौर पर पूरे अपराध का ठिकरा अकेले कलेक्टर पर फोड़ना एकतरफा हो सकता है। इसीलिए इसकी तस्दीक शासन करवाना चाह रही है।
यदि सरकारी दस्तावेजों को खंगाला जाए तो बीते 15 सालों में अरबों रूपए एनजीओ के खाते में समा गए हैं। ये रकम भी निश्चित तौर पर जनता के उपयोग के लिए खर्च करने वाली ही रही होगी। सिस्टम ने बिना कोई खर्च किए यदि रकम एनजीओ को दान दी होगी कहा जाए तो ईमानदारी के साथ बेईमानी होगी। मध्यप्रदेश से निकले हनीट्रेप कांड का एक सिरा छत्तीसगढ़ के जंगल विभाग से भी जुड़ा निकला है।
अफसर बेहिसाब पैसा कमाने के लिए जिस तरह से अपनी सीमाएं लांघते हैं उसी का फायदा उठाने के लिए शबाब कीमत अदायगी की पहली किस्त साबित होती है। जेपी पाठक इसके ताजा उदाहरण हैं। अब उन्होंने यदि कुकर्म किया है तो सजा मिलनी ही चाहिए… साथ ही पब्लिक को यह जानना भी जरूरी है कि जिस फाइल के लिए यह लार टपकाई गई उसका वजन कितना था जिसकी कीमत पाठक को चुकानी पड़ी है।
एक हजारी हुआ छत्तीसगढ़
कोरोना संक्रमण के मामले में अब तक की सारी कवायद विफल हो गई हैं। अब प्रदेश के करीब—करीब 23 जिलों में कोरोना संक्रमण के मामले सामने आ चुके हैं। एक समय जब केवल तीन संक्रमितों का उपचार चल रहा था तब लगा था कि हम देश में एक नजीर पेश करने की स्थिति में खड़े हैं। कोरोना वारियर्स के रूप में अफसरों की सफलता की कहानियां अच्छी लग रही थीं। पर अब प्रदेश एक हजार का आंकड़ा पार कर चुका है। करीब पौने 9 सौ एक्टिव केस के साथ एक बार फिर चेतावनी के मुहाने पर हम खड़े हो चुके हैं। वैसे इसके लिए सरकार से ज्यादा लोग जिम्मेदार हैं। सरकार का काम तो लोगों को ऐहतियात बरतने के रास्ते बताना है और उसकी जिम्मेदारी है कि इसका पालन भी करवाया जाए। पर हमेशा बलपूर्वक यदि व्यवस्था कायम कराने की नौबत होगी तो भगवान ही रक्षा कर सकते हैं। प्रदेश में जन जीवन को सामान्य करना है और कोरोना से बचना भी है तो जनता को जागरूक होना होगा यह काम अकेले सरकार के बूते कतई संभव नहीं है।
कोरोना और वित्त व्यवस्था
राज्य सरकार ने कोरोना के चलते पैदा हो रही आर्थिक दिक्कतों से निपटने के लिए कई तरह के वित्तीय खर्च पर रोक लगाने का आदेश जारी किया। इस आदेश में स्पष्ट लिखा था कि जब तक पूरी व्यवस्था कायम नहीं हो जाती है तब तक नियुक्ति, तबादला पर भी रोक लगा रहेगा। पर आदेश जारी होने के बाद से ही सिलसिलेवार तरीके से ऐसे आदेश जारी हो रहे हैं। यह समझना कठिन है कि सरकार ने वित्तीय पाबंदी बताने के लिए लगाई है या इसका पालन भी करने की जरूरत है।
खुफिया खेल
राज्य में नई सरकार आने के बाद से खुफिया और एसीबी विभाग में दो दफा फेरबदल हो चुका है। पर इस बार का सभी को चौंकने पे मजबूर कर दिया। एक ही झटके में जीपी सिंह और हिमांशु गुप्ता को किनारे लगा दिया गया। इस कार्रवाई के लिए सीएम के लिए खुफिया का काम किसने किया? यह बड़ा सवाल है।
भाजपा का विष्णु अवतार…
प्रदेश भाजपा को एक बार फिर विष्णु का सहारा मिला है। विष्णु देव साय की नियुक्ति को लेकर एंटी रमन खेमा खुश नहीं है। इस खेमे के अंतिम कार्यकर्ता का मानना है कि यदि प्रदेश में संगठन को मजबूत करना है तो विष्णुदेव को खेमेबाजी से बाहर होने का प्रमाण अपनी कार्यशैली से देना होगा। फिलहाल भाजपा में नए अध्यक्ष की नियुक्ति के बाद बेचैनी खत्म हो गई है। अब मैदानी लड़ाई के लिए कमर कसने की तैयारी बूथ लेबल तक की जा रही है।
और अंत में…
छत्तीसगढ़ में भले ही क्वरंटाईन सेंटर की अव्यवस्था को लेकर बड़ा हंगामा मचा। फिर भी जब मजबूर मजदूरों को हवाई जहाज से वापस लाया गया तो मन में ठंडक पहुंची… अंत भला तो सब भला… इसके लिए सरकार का आभार…