भारत द्वारा सिंधु जल समझौता (1960) को निलंबित करने से पाकिस्तान पर गंभीर और बहुआयामी प्रभाव… पूरा मामला ऐसे समझें
इम्पेक्ट न्यूज़। डेस्क/रायपुर।
भारत द्वारा सिंधु जल समझौता (1960) को निलंबित करने से पाकिस्तान पर गंभीर और बहुआयामी प्रभाव पड़ सकते हैं, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था, कृषि, और जल आपूर्ति इस समझौते के तहत पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर निर्भर है। नीचे प्रमुख प्रभावों का विश्लेषण दिया गया है:

- जल संकट
पानी की कमी: पाकिस्तान अपनी जल आपूर्ति का लगभग 70-80% सिंधु नदी और इसकी सहायक नदियों (झेलम, चिनाब) से प्राप्त करता है। यदि भारत इन नदियों के प्रवाह को रोकता है या कम करता है, तो पाकिस्तान में पीने के पानी, स्वच्छता, और औद्योगिक उपयोग के लिए गंभीर कमी हो सकती है।
शहरी और ग्रामीण प्रभाव: कराची, लाहौर जैसे बड़े शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट बढ़ सकता है, जिससे सामाजिक अशांति की संभावना होगी।
- कृषि पर प्रभाव
सिंचाई में कमी: पाकिस्तान की 47 मिलियन एकड़ से अधिक सिंचित भूमि इन नदियों पर निर्भर है। पानी की कमी से गेहूं, चावल, और कपास जैसी प्रमुख फसलों की पैदावार में भारी गिरावट आएगी, जो पाकिस्तान की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है।
आर्थिक नुकसान: कृषि पाकिस्तान की जीडीपी का 20-25% हिस्सा है और 95% जल इसका उपयोग करती है। फसल उत्पादन में कमी से निर्यात प्रभावित होगा और खाद्य असुरक्षा बढ़ेगी। - आर्थिक प्रभाव
उद्योग और व्यापार: जल की कमी से औद्योगिक उत्पादन, विशेष रूप से कपड़ा उद्योग, जो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है, प्रभावित होगा।
खाद्य आयात पर निर्भरता: फसल उत्पादन में कमी के कारण पाकिस्तान को खाद्य आयात बढ़ाना पड़ सकता है, जिससे उसका व्यापार घाटा और बढ़ेगा। - ऊर्जा संकट
जलविद्युत उत्पादन: पाकिस्तान कई जलविद्युत परियोजनाओं के लिए इन नदियों पर निर्भर है। पानी की कमी से बिजली उत्पादन प्रभावित होगा, जिससे ऊर्जा संकट और गहरा सकता है।
औद्योगिक और घरेलू प्रभाव: बिजली की कमी से उद्योगों और घरेलू उपभोक्ताओं को भारी परेशानी होगी। - सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
सामाजिक अशांति: पानी और खाद्य संकट के कारण जनता में असंतोष बढ़ सकता है, जिससे विरोध प्रदर्शन और सामाजिक अस्थिरता की स्थिति बन सकती है।
प्रांतीय तनाव: सिंध और पंजाब जैसे प्रांतों के बीच जल बंटवारे को लेकर पहले से ही तनाव है। पानी की कमी इस तनाव को और बढ़ा सकती है। - क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव
भारत-पाकिस्तान तनाव: समझौते को निलंबित करना दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है। पाकिस्तान इसे “युद्ध की घोषणा” के रूप में देख सकता है, जैसा कि कुछ बयानों में दावा किया गया है।
विश्व बैंक की भूमिका: चूंकि समझौता विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुआ था, पाकिस्तान इस मुद्दे को विश्व बैंक या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठा सकता है, जिससे भारत पर कूटनीतिक दबाव बढ़ सकता है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय: कुछ देश, विशेष रूप से चीन और इस्लामिक राष्ट्र, पाकिस्तान का समर्थन कर सकते हैं, जिससे भारत के लिए कूटनीतिक चुनौतियां बढ़ेंगी।

- पर्यावरणीय प्रभाव
सूखा और मरुस्थलीकरण: पानी की कमी से पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से पंजाब और सिंध में, सूखे की स्थिति बढ़ सकती है, जिससे मरुस्थलीकरण का खतरा होगा।
पारिस्थितिकी तंत्र पर असर: नदियों के प्रवाह में कमी से नदी घाटी का पारिस्थितिकी तंत्र, मछली पालन, और जैव विविधता प्रभावित होगी। - कानूनी और तकनीकी बाधाएं
समझौते की समाप्ति की जटिलता: विशेषज्ञों का कहना है कि समझौता एकतरफा रूप से समाप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए दोनों देशों की सहमति या विश्व बैंक की मध्यस्थता की आवश्यकता होगी।
भारत की क्षमता: भारत के पास इन नदियों का पानी रोकने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा (जैसे बांध) अभी पूरी तरह तैयार नहीं है, जिससे तत्काल प्रभाव सीमित हो सकता है।