आज के समय में नौकरी कर रहा पारिवारिक जीवन को ख़तम
आज के जमाने में बढ़ रहे काम के बोझ के साथ पारिवारिक जीवन के बीच संतुलन बनाए रखना एक चुनौती बन गई है. जहां एक तरफ बढ़ती प्रतिस्पर्धा और जरूरतें के कारण लोग अपने करियर पर सबसे ज्यादा ध्यान देने पर मजबूर हैं, तो वहीं दूसरी तरफ पारिवारिक जीवन की जरूरतें अनदेखी होती जा रही हैं. सुबह से रात तक की व्यस्त दिनचर्या, देर से घर लौटने और काम से संबंधित तनाव का असर न केवल व्यक्तिगत मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, बल्कि यह पारिवारिक संबंधों में भी दरार पैदा कर सकता है.
इस संकट का मुख्य कारण है "वर्क-लाइफ बैलेंस" का अभाव. कई लोग अपनी नौकरी को प्राथमिकता देते हुए परिवार के सदस्यों के साथ बिताने वाले समय को कम करते जा रहे हैं. यह स्थिति बच्चों के विकास, दांपत्य संबंधों और परिवार के सामूहिक खुशी पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है. शोध बताते हैं कि लंबे समय तक काम करने से न केवल शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है, बल्कि यह मानसिक स्वास्थ्य को भी खतरनाक तरीके से प्रभावित कर सकता है.
कैसे नौकरी कर रही है पारिवारिक जीवन, 5 प्वाइंट में समझिए
1. कार्य का तनाव और मानसिक स्वास्थ्य
काम का तनाव एक सामान्य समस्या बन गई है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो उच्च-प्रेशर वाले वातावरण में काम कर रहे हैं. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के अनुसार, यह तनाव व्यक्ति की मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है. तनाव के कारण व्यक्ति में चिंता, अवसाद, और थकान जैसे लक्षण विकसित हो सकते हैं.
जब कोई व्यक्ति तनाव में होता है, तो उसकी मानसिक स्थिति सीधे तौर पर उसके पारिवारिक जीवन को प्रभावित करती है. तनावग्रस्त व्यक्ति अक्सर अपने भावनात्मक और मानसिक संसाधनों को काम में लगाने के कारण घर लौटने पर थका हुआ महसूस करता है. इस थकान का नकारात्मक प्रभाव परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत पर पड़ता है.
तनावग्रस्त व्यक्ति अक्सर अपने परिवार के साथ संवाद करने में संकोच करता है. वे ज्यादातर चुप रहना पसंद करते हैं या केवल जरूरत पड़ने पर ही बातें किया करते हैं, जिससे पारिवारिक बातचीत की गुणवत्ता घट जाती है. इसके अलावा जब व्यक्ति तनाव में होता है, तो वह अपने परिवार के सदस्यों से भावनात्मक रूप से भी दूरी बना लेता है. यह स्थिति रिश्तों में दरार का कारण बन सकती है. परिवार के सदस्यों को यह अनुभव हो सकता है कि उनका प्रिय व्यक्ति उन्हें सुन नहीं रहा या उनके प्रति उदासीन है, जिससे अवसाद और नकारात्मक भावनाएं बढ़ सकती हैं.
2. समय की कमी
साल 2022 में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग 70% कामकाजी माता-पिता अपने बच्चों के साथ पर्याप्त समय नहीं बिता पा रहे हैं. यह समय की कमी परिवारों में असंतोष और संघर्ष को जन्म देती है. काम के कारण देर से घर लौटना, छुट्टियों का न लेना और परिवार के आयोजनों में भाग न लेना, सभी पारिवारिक संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं.
3. सामाजिक जीवन का अभाव
काम की व्यस्तता के कारण लोग अपने सामाजिक जीवन को भी अनदेखा करने लगते हैं. एक रिसर्च में पाया गया कि 60% लोग काम के कारण अपने दोस्तों और परिवार के साथ मिलने की योजना नहीं बना पाते. इससे व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे अकेलापन और अवसाद बढ़ सकता है.
4. बच्चों पर प्रभाव
एक अन्य अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ कि जिन माता-पिता की नौकरी अत्यधिक मांग वाली होती है, उनके बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याएं बढ़ने की संभावना अधिक होती है. शोध से पता चला है कि ऐसे बच्चे ज्यादा समय तक अकेले रहते हैं और यह उनके सामाजिक विकास को प्रभावित करता है.
5.रिश्तों में तनाव
काम के दबाव के चलते दांपत्य संबंधों में भी तनाव बढ़ता है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया कि काम के कारण होने वाली समस्याएं विवाहित जोड़ों के बीच आपसी संघर्ष को बढ़ाती हैं. लगभग 50% जोड़े जो काम के तनाव का सामना कर रहे थे, उन्होंने बताया कि यह उनके रिश्ते में दरार का कारण बन रहा है.
तो क्या है इसका समाधान
वर्क-लाइफ बैलेंस: लचीलापन प्रदान करना- गलूप 2022 की एक अध्ययन में पाया गया कि लगभग 82% कर्मचारी लचीले काम के घंटे को प्राथमिकता देते हैं और इसे मानसिक स्वास्थ्य में सुधार का एक प्रमुख कारक माना जा रहा है. कंपनियां भी वर्क फ्रॉम होम और फ्लेक्सिबल वर्किंग आवर्स जैसी नीतियां अपनाकर अपने कर्मचारियों की उत्पादकता और संतोष बढ़ा सकती हैं.
पारिवारिक अवकाश- अमेरिकन साइकोलॉजी एसोसिएशन 2021 की एक रिपोर्ट में अलग अलग शोधों के आधार पर बताया है कि पारिवारिक छुट्टियों में भाग लेने से कर्मचारियों की मानसिक स्वास्थ्य में 30% सुधार होता है. ऐसे में कंपनियां अपने कर्मचारियों को साल में या 6 महीने में इस तरह की छुट्टियां देने पर विचार कर सकती हैं जो कर्मचारियों को अपने परिवार के साथ समय बिताने की अनुमति दें.
संवाद को बढ़ावा: नियमित पारिवारिक बैठक- जर्नल ऑफ फैमली साइकोलॉजी, 2020 की एक अध्ययन में पाया गया है कि जिन परिवारों में नियमित संवाद होता है, वहां तनाव और अवसाद की दर 50% तक कम हो जाती है. ऐसे में हर व्यक्ति को कोशिश करनी चाहिये कि भले ही पूरा दिन वो अपने परिवार के सदस्यों से नहीं कर पाए हों. लेकिन, सुबह का नाश्ता या रात का खाना एक साथ खाएं और इस बीच आपस में दिनभर की बातें साझा करें.
फैमली रिलेशन 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भावनाओं को व्यक्त करने वाले परिवारों में आपसी समझ 70% अधिक होती है, जिससे रिश्तों में तनाव कम होता है. यह परिवार के सदस्यों के बीच अधिक सहयोग और समर्थन को बढ़ावा देता है.