इलहाम: प्रेम, संवेदना के सिरे खोलती कहानी… ध्रुव हर्ष द्वारा निर्देशित फिल्म होगी जागरण फिल्म फेस्टिवल रायपुर का हिस्सा…
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बिकास के शर्मा।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ‘महाभारत’ जैसे विषय पर अंग्रेज़ी में पीएचडी कर चुके एवं वर्तमान में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में पोस्ट-डॉक्टोरल अध्ययन कर रहे ध्रुव हर्ष मौजूदा समय के प्रतिभाशाली और संभावना वाले फिल्मकार हैं। उनकी पहली फीचर फिल्म ‘इलहाम’ का प्रदर्शन रायपुर में आयोजित जागरण फिल्म फेस्टिवल के दौरान 19 जनवरी दोपहर डेढ़ बजे सिटी सेंटर मॉल पंडरी में किया जाएगा।
‘इलहाम’ एक गरीब मुस्लिम बुनकर परिवार के एक छोटे बच्चे फ़ैज़ान और उसके बकरे जिसका नाम डोडू है, उसके बीच एक दिलचस्प बंधन को मानवीयता ढंग से दर्शाने वाली कहानी है। दरअसल, जब हम केवल देखने के खातिर कुछ देखते हैं तो वह भौतिक होता है जब कि देखना जब धीरे-धीरे आपके अंदर एक अंतर्दृष्टि पनपाना शुरू कर दे तो वह भाव और तर्क की एक समानांतर रेखा आपके अंतर्मन पर उकेरता है। इस रेखा पर चलकर ही एक दर्शक ‘इलहाम’ की यात्रा पूरी कर सकता हैं।
‘इलहाम’ का अर्थ है देववाणी जो इस फिल्म में उस बच्चे के मार्फत उच्चारित होती है जो कि बकरीद पर होने वाले कुर्बानी से बकरे को बचाने हेतु किसी भी हद तक चला जाता है। कथानक में सबसे मजबूत क्षण तब सामने आता है जब फैजान को पता चलता है कि डोडू की कुर्बानी का वक्त आ चला है। वह बच्चा बकरे को बचाकर जंगल में एक फकीर की कुटिया में चला जाता है।
जहां बच्चे का पिता और अन्य लोग ढूंढते हुए पहुंचते हैं तो वह फकीर फैजान की मां से कहता है, आप दोनों अपने-अपने हिस्से का काम कर रहे हैं। आप बकरे को कुर्बान करना चाहते हैं और बच्चा बचाना चाहता है, बाकि ऊपर वाले की इच्छा। यह दृश्य फिल्म का सबसे मजबूत हिस्सा है, जहां संवेदना व तर्क की जुगलबंदी देखने को मिलती है और अंततः भावना की विजई होती है।
रुपहले परदे पर चित्रों को दौड़ाने की कला का नाम ही सिनेमा है, ऐसे में फिल्मकार का उद्देश्य भी स्पष्ट रूप से फिल्मों के गंभीर दर्शकवर्ग और अध्येताओं को पल्ले पड़ना अवश्यंभावी है। एक व्यावसायिक फिल्म बनाने के पीछे की मंशा अधिकांश लोगों तक पहुंचकर मुनाफा कमाना होती है, ठीक उसी तरह आर्ट हाउस सिनेमा की दुनिया के निर्देशक अपने विचार को विशेष दर्शक समूह तक पहुंचाकर ख़ुद को सफल मान लेते हैं।
ऐसी ही जमात से ध्रुव हर्ष ताल्लुकात रखते हैं। ज्ञातव्य हो कि गोंडा उत्तर प्रदेश का मूल निवासी युवा फिल्मकार वर्तमान में कोलकाता के हाथ रिक्शा चालकों पर डॉक्यूमेंट्री भी बना रहा है, जिसकी मेंटरिंग उम्दा फिल्मकार गौतम घोष कर रहे हैं।
बहरहाल, ‘इलहाम’ के शुरुआती दृश्यों को देखने पर लगेगा कि वह धर्म के विषय पर एक टाइपकास्ट फिल्म है लेकिन फिल्म जैसे-जैसे गतिमान होती है, उसकी व्यापकता का एहसास और बाल मनोयोग के कई अहम सवाल दर्शकों के मन में समुद्र मंथन करना शुरू कर देते हैं और यही फिल्मकार की संयत तथा निष्पक्ष दृष्टि को परिलक्षित करता है।
फिल्म बकरा ईद के इर्द गिर्द घूमते हुए भी कहीं भी कुर्बानी के दृश्यों को नहीं दिखाती और यही इस फिल्म को अन्य फिल्मों की जमात से अलहदा करती है। ‘इलहाम’ में छोटी-छोटी बारीकियों पर ध्यान दिया गया है, मसलन रात के दृश्यों में लो-की और प्रैक्टिकल लाइटिंग के विशेष प्रभाव के संग मास्टर साउंड की आवश्यकतानुसार भरपाई।
फैजान के पिता रफ़ीक की भूमिका में महमूद हाशमी ने अभिनय के हल्के अतिरेक की चूक की है वहीं उनकी पत्नी की भूमिका निभाने वाली गुनीत कौर की सहजता दर्शक का मन मोहने की ताक़त रखती है। यह भी गौरतलब हो कि फैजान की भूमिका तोयो चान और उसकी बहन का रोल टोटो चान ने बख़ूबी निभाई है और दोनों की जुगलबंदी महान ईरानी फिल्मकार माजिद मजीदी द्वारा बनाई फिल्मों में दर्शाए बच्चों की याद दिलाती है। विशेषकर दोनों के स्कूल आने-जाने वाले सीन्स अधिक प्रभावोत्पादक साबित हुए हैं।
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के एक ख़ूबसूरत गाँव दरियाबाद में शूट की गई यह फिल्म लंदन, ढाका आदि दर्जन भर जगहों में फिल्म उत्सवों का हिस्सा रह चुकी है और 22 जनवरी को कलकत्ता के नंदन में आयोजित होने वाले इंटरनेशनल चिल्ड्रन फिल्म फेस्टिवल का भी हिस्सा रहेगी, जो फिल्म की वैचारिक ताकत का नतीजा माना जाना चाहिए।
(लेखक युवा पत्रकार हैं)