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गीता उपदेश: भाग्य और कठिन परिश्रम का जीवन में महत्व

धन, जीवनसाथी, संतान, बंगला, मोटर, मोक्ष, धर्म इत्यादि अनेक वस्तुओं को प्राप्त करने की उसकी उत्कृष्ठ इच्छा व कामना होती है। अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष, इन चारों पदार्थों को मनुष्य को अपने बुद्धि, बल, विवेक से प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिये।

धर्म से अर्थ (धन) प्राप्त करे, क्योंकि अधर्म से प्राप्त किया हुआ अर्थ अनर्थ बन जाता है।
धर्म और अर्थ से प्राप्त काम के तृप्त हो जाने पर जीवन का अंतिम ध्येय मोक्ष प्राप्त करना होना चाहिये।
इन चार पदार्थों में से धर्म और मोक्ष के लिए मनुष्य को सतत पुरुषार्थ करना चाहिये, उन्हें कदापि प्रारब्ध यानि भाग्य पर नहीं छोड़ना चाहिये।
जबकि अर्थ और काम प्राप्त करने में मनुष्य को प्रारब्ध के ऊपर छोड़ देना चाहिये। उनके लिए पुरुषार्थ करने की आवश्यकता ही नहीं है।

परंतु कलियुग के प्रभाव के कारण अधिकांश मनुष्य उससे उल्टी ही दिशा में चक्कर काट रहे हैं। अर्थ और काम को प्रारब्ध के ऊपर छोड़ देने के बदले उनके लिए मनुष्य सतत रात-दिन पुरुषार्थ करता है और अंत में प्रारब्ध के आगे ढीला पड़ जाता है। जबकि धर्म और मोक्ष जिनके लिए मनुष्य को सदा सर्वदा जाग्रत रहकर पुरुषार्थ करना चाहिये उन्हें बिल्कुल प्रारब्ध के ऊपर छोड़ देता है और इस प्रकार वह दोनों तरफ ही गोता खा जाता है।

गीता के चार स्पष्ट आदेश – भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से हमें चार स्पष्ट आदेश दिये हैं,
कर्मण्येवाधिकारस्ते -तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में ही है, जिसमें तुम पूर्णतया स्वतंत्र हो;
मा फलेषु कदाचन – फल पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं, फल भोगने में तुम परतंत्र हो;
मा कर्मफलहेतुर्भू – तुम कर्म के फल का हेतु मत बनो; और
मा ते संगोऽस्तु अकर्मणि – तुम अकर्म में भी रत मत होओ।
एक सनातन सत्य – महाभारत में महर्षि व्यास ने कहा है कि, ‘‘ऊर्ध्व बाहुः प्रवक्ष्यामि न च कश्चित् श्रुणोति मे।” ‘‘दोनों हाथ ऊंचा करके मैं सारे जगत को चेता रहा हूं पर कोई मेरी सुनता ही नहीं। अर्थ और काम का मैं शत्रु नहीं हूं। अर्थ और काम की बेशक उपासना करो पर धर्म की आड़ में रहकर तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए”। इस एक सनातन सत्य को मानवमात्र को बताने के लिए ऐतिहासिक दृष्टांत के रूप में उपयोग करके महर्षि व्यास ने सारी महाभारत रच डाली। आप भी प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन अवश्य करें।

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