कर्रेगुट्टा पहाड़ी में फोर्स का क़ब्ज़ा… सर्चिंग में मिली गहरी काली गुफा जिसमें हो सकता है हज़ार लोगों के रहने का ठिकाना… देखिए वीडियो
इम्पेक्ट न्यूज़। रायपुर/बीजापुर।
बीजापुर और तेलंगाना की सीमा पर स्थित कर्रेगट्टा की पहाड़ियों में नक्सलियों के खिलाफ सबसे बड़े ऑपरेशन के दौरान जवानों को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। यहां माओवादियों के सबसे मज़बूत ठिकाने को फोर्स ने क़ब्ज़ा कर लिया है। यह एक गुफा है जहां एक साथ हज़ार लोग आराम से रह सकते हैं।
गुफा के भीतर जवानों का तलाशी अभियान चल रहा है। मौके पर माओवादियों की भले ही मौजूदगी नहीं मिली पर यह साफ हो गया कि यहाँ माओवादी सुरक्षित ठिकाना बनाकर रह रहे थे।
भीषण गर्मी और 45 डिग्री तापमान के बीच 5 दिनों के कड़ी मशक्कत के बाद आखिर जवान नक्सलियों के एक ठिकाने तक पहुंचने में कामयाब हुए, पर ऐसा लग रहा है कि, जवानों के वहां पहुंचने से पहले ही नक्सलियों ने अपना ठिकाना बदल दिया था।
इस गुफा के अंदर पानी से लेकर आराम करने लायक भी माहौल है।आक्सीजन की भी कमी नहीं है। गुफा के अंदर ही एक बहुत बड़ा मैदान भी मौजूद है। ऑपरेशन के दौरान जवानों द्वारा बरामद नक्सलियों की इस गुफा की तस्वीरें और वीडियो मीडिया मे तैर रही है जहां से इम्कोपे को भी मिली है।
इस पहाड़ी श्रृंखला में भले ही अब तक किसी माओवादी के ज़िंदा या मुर्दा मिलने की खबर बाहर नहीं आई है पर यह तय हो गया है कि माओवादियों का सबसे मज़बूत ठिकाना अब फोर्स के क़ब्ज़े में है। यह भी साफ़ है कि जिस तरह से पहाड़ी क्षेत्र की मज़बूत घेराबंदी की गई है वहां से बाहर निकल पाना असंभव जैसा है। पर यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है कि यदि माओवादी का टॉप कमांडर हिडमा अब तक नहीं मिला है और ना ही जैसा कि अनुमान था कम से कम दो से पांच सौ माओवादियों की घेराबंदी की गई है तो वे कहाँ छिपे हैं।
डीआरजी नक्सल ऑपरेशन कमलोचन कश्यप ने इम्पेक्ट से साफ कहा कि “कुर्रेगुटा इलाक़े में सुरक्षाबलों का काम जारी है। अभी वहाँ बहुत बड़ा इलाक़ा सर्च किया जाना है।” उन्होंने कहा “जवानों की संख्या एवं अन्य गतिविधियों की जानकारी मीडिया से शेयर नहीं किया जा सकता।”
माना जा रहा है फोर्स के सुरक्षित लैंडिंग के बाद माओवादियों के सामने सामना करने या सरेंडर करने का दो ही विकल्प बचा है। पहाड़ियों से नीचे उतरते हैं तो जवानों की गोलियों का शिकार हो जाएंगे और अगर जवानों से डर कर लंबे समय तक पहाड़ियों पर ही छुपे रहते हैं तो कहीं ना कहीं डिहाइड्रेशन का शिकार होकर मारे जाने का डर भी निश्चित ही नक्सलियों को सता रहा होगा। इस इलाक़े में फोर्स और पुलिस अधिकारियों के सिवा किसी अन्य को झांकने तक की इजाज़त नहीं दी जा रही है।