छात्रों की कथित आत्महत्याओं के मामलों पर सीजेआई ने जताई चिंता, बोले- मेरा दिल…
इम्पैक्ट डेस्क.
प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को छात्रों की कथित आत्महत्याओं की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वह सोच रहे हैं कि हमारे संस्थान कहां गलत हो रहे हैं? कि होनहार छात्र अपनी जान लेने को मजबूर हैं। हाल ही में आईआईटी बॉम्बे में एक दलित छात्र की कथित आत्महत्या की घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हाशिए के समुदायों के पीड़ितों को शामिल करने वाली ऐसी घटनाएं आम होती जा रही हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पीड़ितों के शोक संतप्त परिजनों के प्रति उनकी संवेदनाएं हैं।
NALSAR में दीक्षांत समारोह को कर रहे थे संबोधित
यहां द नेशनल एकेडमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च (NALSAR) में दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए सीजेआई ने कहा कि भारत में न्यायाधीशों की अदालत के अंदर और बाहर समाज के साथ संवाद स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है ताकि सामाजिक परिवर्तन पर जोर दिया जा सके। हाल ही में मैंने आईआईटी बॉम्बे में एक दलित छात्र की आत्महत्या के बारे में पढ़ा। आईआईटी बॉम्बे में गुजरात के रहने वाले प्रथम वर्ष के छात्र दर्शन सोलंकी ने कथित तौर पर 12 फरवरी को आत्महत्या की थी। इसने मुझे पिछले साल ओडिशा में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में एक आदिवासी छात्र की आत्महत्या के बारे में याद दिलाया।
सोच रहा हूं कि हमारे संस्थान कहां गलत हो रहे हैं…?
सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा ने मेरा आत्मिक संवेदनाएं इन छात्रों के परिवारों के सदस्यों के साथ है। लेकिन मैं यह भी सोच रहा हूं कि हमारे संस्थान कहां गलत हो रहे हैं, छात्रों को अपना बहुमूल्य जीवन खत्म करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इन उदाहरणों में, हाशिये पर रहने वाले समुदायों से आत्महत्या की घटनाएं आम हो रही हैं। ये संख्याएं सिर्फ आंकड़े नहीं हैं। ये कभी-कभी सदियों के संघर्ष की कहानियां हैं। मेरा मानना है कि अगर हम इस मुद्दे को संबोधित करना चाहते हैं तो पहला कदम समस्या को स्वीकार करना और पहचानना है।
वकीलों की तरह ही छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य भी जरूरी
उन्होंने कहा कि वह वकीलों के मानसिक स्वास्थ्य पर जोर देते रहे हैं और उतना ही महत्वपूर्ण छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य भी है। उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा पाठ्यक्रम को न केवल छात्रों में करुणा की भावना पैदा करनी चाहिए बल्कि अकादमिक नेताओं को भी उनकी चिंताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मुझे लगता है कि भेदभाव का मुद्दा सीधे शिक्षण संस्थानों में सहानुभूति की कमी से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में, न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों के अलावा उनका प्रयास उन संरचनात्मक मुद्दों पर भी प्रकाश डालना है जो समाज के सामने हैं। इसलिए, सहानुभूति को बढ़ावा देना पहला कदम होना चाहिए जो शिक्षा संस्थानों को उठाना चाहिए।