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छत्तीसगढ़ को इंद्रावती-जोरा नाला कंट्रोल स्ट्रक्चर से 2 से बढ़कर 5.32 क्यूमेक पानी मिलने लगा…

इम्पेक्ट न्यूज़। जगदलपुर।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और सिंचाई मंत्री केदार कश्यप की पहल से इंद्रावती-जोरा नाला कंट्रोल स्ट्रक्चर में अस्थाई व्यवस्था लागू होने के बाद राज्य को 2 क्यूमेक से बढ़कर 5.32 क्यूमेक पानी मिलने लगा है। यह उपलब्धि दोनों राज्यों, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा, के संयुक्त प्रयासों से संभव हुई है।

समस्या और पहल

जल संसाधन विभाग के अनुसार, छत्तीसगढ़ के हितों की रक्षा और बस्तर जिले में गहराते पेयजल संकट को देखते हुए इस मुद्दे को राष्ट्रीय जल परिषद की बैठक में उठाया गया। 13 अप्रैल को राजस्थान के उदयपुर में आयोजित इस बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय मंत्री सीआर पाटिल ने की, जिसमें छत्तीसगढ़ के सिंचाई मंत्री केदार कश्यप ने प्रमुखता से आवाज उठाई। बैठक में उड़ीसा के मुख्यमंत्री मोहन चरण मांझी और जल संसाधन विभाग के अधिकारी भी मौजूद थे। इसके बाद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के उड़ीसा दौरे के दौरान मोहन चरण मांझी से मुलाकात में इस समस्या पर तत्काल ध्यान आकर्षित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप दोनों राज्यों के सिंचाई विभाग और प्रशासनिक अमले ने संयुक्त अवलोकन किया।

अस्थाई समाधान

संयुक्त निरीक्षण के बाद कंट्रोल स्ट्रक्चर के अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम में जमा रेत, लूज बोल्डर, रेत बोरी और अन्य अवरोधों को हटाकर अस्थाई रास्ता बनाया गया। यह कार्य 30 मार्च 2025 तक पूरा किया गया। इसके बाद 11 अप्रैल को जल संसाधन विभाग द्वारा किए गए मापन में पाया गया कि इंद्रावती नदी का जल प्रवाह, जो मार्च के अंतिम सप्ताह में 2 क्यूमेक तक गिर गया था, अब 5.32 क्यूमेक हो गया है। इस बढ़े जल प्रवाह से छत्तीसगढ़ को लाभ हो रहा है, जिससे बस्तर जिले में पेयजल उपलब्धता और किसानों के लिए सिंचाई में सुधार की उम्मीद जगी है।

स्थायी समाधान की दिशा

जल संसाधन विभाग के सचिव राजेश सुकुमार टोप्पो ने बताया कि 27 फरवरी और 21 मार्च 2025 को दोनों राज्यों के अधिकारियों ने इंद्रावती-जोरा नाला के मुहाने का संयुक्त निरीक्षण किया। सचिव स्तर की वार्ता में स्थायी समाधान पर जोर दिया गया। कंट्रोल स्ट्रक्चर पर जमा रेत, पत्थर और मिट्टी को हटाने के लिए उड़ीसा सरकार को 3.5 करोड़ रुपये के प्राक्कलन प्रस्तुत किया गया है, जिसे उड़ीसा के जल संसाधन सचिव ने स्वीकृति के लिए सहमति दी है। स्वीकृति मिलने के बाद जून 2025 तक कार्य पूरा करने के लिए एजेंसी नियुक्त की जाएगी।

जोरा नाला की पृष्ठभूमि

जोरा नाला की समस्या की जड़ ग्राम सूतपदर में है, जहां इंद्रावती नदी दो धाराओं में बंटती है। एक धारा इंद्रावती के रूप में पांच किलोमीटर उड़ीसा में बहकर भेजापदर से छत्तीसगढ़ में प्रवेश करती है और जगदलपुर, चित्रकोट होते हुए गोदावरी में मिलती है। दूसरी धारा जोरा नाला के रूप में 12 किलोमीटर बहकर शबरी (कोलाब) नदी में मिलती है। पहले दोनों धाराओं में पानी बराबर बंटता था, लेकिन समय के साथ जोरा नाला का बहाव बढ़ा और इंद्रावती का घट गया। दोनों राज्यों के प्रमुख अभियंताओं की बैठक में 50-50 प्रतिशत जल बंटवारे के लिए पक्का स्ट्रक्चर बनाने का निर्णय लिया गया था, किंतु रेत-पत्थर के अवरोधों ने फिर वही स्थिति पैदा कर दी, जिसका अस्थाई समाधान निकाला गया है।

इंद्रावती नदी का महत्व

इंद्रावती नदी का उद्गम उड़ीसा के कालाहांडी जिले के रामपुर धुमाल गांव से हुआ है। यह 164 किमी उड़ीसा, 9 किमी छत्तीसगढ़-उड़ीसा सीमा, 232 किमी छत्तीसगढ़, और 129 किमी महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा बनाते हुए 534 किमी की यात्रा के बाद गोदावरी में मिलती है। इस नदी के जल प्रवाह में सुधार से क्षेत्रीय जल संकट से निपटने में मदद मिलेगी।

अस्थाई व्यवस्था से तत्काल राहत मिली है, लेकिन स्थायी समाधान के लिए दोनों राज्यों के समन्वय और शीघ्र कार्रवाई की आवश्यकता है। यदि यह स्थिति बनी रही, तो बस्तर जिले में जल की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी, जो किसानों और स्थानीय निवासियों के लिए वरदान साबित होगी।