इलाज के खर्चे बढ़ते हैं तो पौष्टिक खाना नहीं खा पाते लोग, AIIMS की नई स्टडी में सामने आईं चौंकाने वाली बातें
नई दिल्ली:
एम्स के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी और मानव पोषण विभाग ने एक स्टडी की है। इस स्टडी में पाया गया है कि इलाज के खर्च बढ़ने के कारण लोग पौष्टिक भोजन से दूर हो रहे हैं। एक अध्ययन में पाया गया कि 80% से अधिक परिवारों ने अनाज, दाल और चीनी की मात्रा कम नहीं की, लेकिन फलों की खपत कम कर दी। इसके बाद, घी, दूध और दूध उत्पाद, सब्जियां, मांस, अंडे और तेल की खपत भी कम हो गई।
अध्ययन के प्रमुख डॉ अनुप सारया ने कहा कि इसका संभावित कारण यह हो सकता है कि अनाज और दालें सस्ती होती हैं और इन्हें अकेले भी खाया जा सकता है, जबकि फल महंगे होते हैं और भूख भी नहीं मिटाते।
414 मरीजों पर किया गया था अध्ययन
एम्स का यह अध्ययन जर्नल इमराल्ड इनसाइट में प्रकाशित हुआ था। इसका उद्देश्य यह जानना था कि स्वास्थ्य देखभाल पर बढ़ते आउट-ऑफ-पॉकेट खर्च का घरेलू बजट पर दबाव पड़ने और भोजन की आदतों में बदलाव पैदा करने पर क्या प्रभाव पड़ता है। यह अध्ययन एक अस्पताल में आधारित क्रॉस-सेक्शनल अध्ययन था, जिसमें 414 ऐसे मरीज शामिल थे जिनका किसी गंभीर या पुरानी बीमारी का इलाज चल रहा था। अध्ययन में शामिल इन 414 मरीजों के परिवारों में कुल 2,550 सदस्य थे। इस अध्ययन के अनुसार, लंबी बीमारी का मतलब ऐसी बीमारी से था जो कम से कम एक साल तक रहती है, जिसके लिए डॉक्टर को नियमित रूप से दिखाना पड़ता है और रोजाना के कामों में परेशानी होती है या दोनों ही स्थितियां हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, क्रोनिक पैन्क्रिएटाइटिस (अग्नाशय की लंबी बीमारी), इन्फ्लेमेटरी बॉवेल डिजीज (आंतों में सूजन की लंबी बीमारी) और क्रोनिक लिवर डिजीज (जिगर की लंबी बीमारी) को शामिल किया गया।
इलाज का खर्च बढ़ा, पौष्टिक आहार घटा
शोधकर्ताओं ने पाया कि ग्रामीण परिवारों में शहर के परिवारों की तुलना में खाने-पीने की चीजों में कमी 1.8 गुना अधिक देखी गई। जिन घरों में मरीज भर्ती थे, वहां खाने की खपत में 1.3 गुना कमी आई। बीमारी के बाद न केवल खाने-पीने की चीजों में कमी आई, बल्कि खाने की गुणवत्ता भी कम हो गई। उदाहरण के लिए, दूध और सब्जी में पानी मिलाना या सस्ते बिना पैकेज वाले खाद्य पदार्थ खरीदना। इसके अलावा, बीमारी के अतिरिक्त खर्च के भयानक प्रभाव बच्चों पर भी देखे गए, जहां खाने-पीने की चीजों में कमी करने वाले कई परिवारों ने बच्चों की शिक्षा को नजरअंदाज कर दिया या बच्चों ने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए काम करना शुरू कर दिया। शोधकर्ताओं के अनुसार, समान स्वास्थ्य देखभाल के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की नीतियों के माध्यम से स्वास्थ्य व्यय बढ़ाया जाना चाहिए। नीतियों और हस्तक्षेपों को डिजाइन करते समय लागू किए जा सकने वाले उपायों की पहचान करने के लिए और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है।