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अब वक्त गुजर चुका है और इतिहास में दर्ज हो गया है…

नज़रिया / सुरेश महापात्र

अब से करीब 100 घंटे पहले  शनिवार की रात टीवी न्यूज चैनलों में उद्धव ठाकरे के सीएम बनने को लेकर सहमति की खबरों ने रविवार सुबह के अखबारों में उद्धव होंगे सीएम जैसी हैडिंग के साथ बंटे थे सुबह जब तक पाठक हाथ में अखबार थाम कर पढ़ते तब तक रात की खबर पुरानी हो चुकी थी… फड़नवीस दुबारा सीएम बन चुके थे। 

अक्सर हम इतिहास पढ़ते हैं और सुनते हैं। ऐसा पहली बार है कि इतिहास को गढ़ते देख रहे हैं और समझ भी रहे हैं। महाराष्ट्र में बीते 100 घंटे में जिस तेजी से घटनाक्रम बदलता रहा। ऐसा लगने लगा जैसे हम सभी कुश्ती के दांव—पेंच चारों ओर खड़े होकर देख रहे हों…

हां, मेरी नज़र में यह दंगल ही है जिसमें एक ओर इतिहास पर इतिहास गढ़ते एक गुजराती जोड़ी खड़ी है तो दूसरी ओर मराठा अस्मिता का पताका लिए एक ऐसी बेमेल जोड़ी जिसके बारे में आज से पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि एक साथ खड़े दिखेंगे… पर वे साथ दिखे और जीत हासिल कर माने…

बावजूद इसके महाराष्ट्र में बिल्कुल वैसी ही बेमेल जोड़ी सत्ता तक पहुंचने में अब कामयाब दिख रही है जैसा जम्मू—कश्मीर में भाजपा ने पीडीपी के साथ गठबंधन करके साबित किया था। भाजपा की खासियत है कि वे अपने कमियों को छिपाने में कामयाब रहते हैं और साथ ही दूसरे की कमियों पर जबरदस्त हमला करते हैं… यही तो असली राजनीति है।

रविवार की शाम से लेकर मंगलवार की दोपहर तक 80 घंटे की भाजपा सरकार का सफर संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खत्म हुआ। इसी दिन मुंबई पर आतंकी हमले की बरसी भी थी… दोपहर बाद जब सीएम फड़नवीस ने त्यागपत्र देने की घोषणा की तो यह स्पष्ट हो गया कि भाजपा नेतृत्व ने अपने घुटने टेक दिए हैं।

भाजपा अध्यक्ष के तौर पर गृह मंत्री अमित शाह की यह अब तक की सबसे बड़ी हार है जब भाजपा का संपूर्ण नेतृत्व साम, दाम, दंड और भेद की सभी नीतियों का राजनीतिक उपयोग अपने हित में किया। उसके बाद भी वह तख्त बचाने में कामयाब ना हो सकी। 

यानी यह दंगल गुजरात बनाम महाराष्ट्र का हो गया। जीत महाराष्ट्र की हुई है। क्योंकि दंगल का मैदान भी तो महाराष्ट्र ही था। इस घटनाक्रम ने एक साथ कई बड़े सवाल मौजूदा राजनीतिक हालात में खड़े दिखाई दे रहे हैं। क्या भाजपा अब बैकफुट के लिए सहज तैयार होने की स्थिति में आ गई है?

मुख्यमंत्री के तौर पर दूसरी बार देवेंद्र फड़नवीस के शपथ के बाद भले ही कितनी भी सफाई और ईमानदारी की दुहाई दी जाए पर यही सच है कि महाराष्ट्र में भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने अपना सबसे बड़ा दांव खेल दिया था। कर्नाटक, गोवा, मणिपुर जैसे तमाम उदाहरणों को देखने के बाद यह मान पाना कठिन ही था कि भाजपा अपने हाथ से कुछ खोने को तैयार है। 

यदि कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के प्रेस कान्फरेंस के संवाद को जेहन में रखा जाए तो यह साफ है कि “भाजपा सरकार हिंदुस्तान की वित्तीय राजधानी में किसी दूसरे को कब्जा देने के लिए कतई तैयार नहीं थी…!” पर हालात इतने विपरित हो जाएंगे यह शायद भाजपा का शीर्ष नेतृत्व समझ नहीं पाया।

अब आप याद ​कीजिए भाजपा ने सधे तरीके से किस पर हमला किया था। हमले के जद में थे मराठा नेता शदर पवार। हिंदुस्तान की राजनीति में शरद पवार को सबसे अविश्वसनीय माना जाता है। प्रधानमंत्री ने संसद सत्र से पहले एनसीपी की प्रशंसा की। सोशल मीडिया में शरद पवार को राष्ट्रपति बनाए जाने की अटकलों को हवा दी गई।

टीवी चैनलों की डिबेट में राजनीतिक विश्लेषक और मीडिया के महारथी साफ कहते दिखे कि शरद पवार की राजनीतिक समझ को बूझना बेहद कठिन है। यहां तक कहा गया कि शरद पवार अक्सर दो बोर्डिंग पास लेकर एयरपोर्ट के लिए निकलते हैं वे कहीं और जाना बताकर कहीं और की फ्लाइट पकड़ लेते हैं… ऐसे अति अविश्वसनीय नेता के लिए भरोसे की जड़ को हिलाने का पूरा काम मीडिया कर रही थी। यह किसके ईशारे पर था यह भी आम दर्शकों को समझना चाहिए…।

शिवसेना के खिलाफ जबरदस्त मीम्स बनाए गए। प्रवक्ता संजय राउत के नाचने वाले विडियो के साथ जरबदस्त शेयरिंग की गई। राउत की तबियत बिगड़ने पर उसे उद्धव के खिलाफ राउत का स्टैंड बताने की कोशिश की गई।

यानी चारों तरफ से हमला करके महाराष्ट्र की घेराबंदी की नायाब कोशिश भाजपा ने की। कोई मौका जाने नहीं दिया। इधर शिवसेना के हिंदुत्व को चैलेंज किया जाता रहा उधर एनसीपी पर परिवार व पार्टी टूटने के अंदेशों के साथ जबरदस्त अविश्वास का माहौल बनाया गया।

इन सबके बावजूद मंगलवार की शाम शिवसेना संजय राउत अपने पहले बयान को दुहराते दिखे कि मुख्यमंत्री शिवसेना का ही होगा…। एनसीपी अपना परिवार और पार्टी टूटने से बचाने में कामयाब हो गई। कांग्रेस अपने विधायकों को समेटकर रखने के सिवाए किसी दूसरे काम में लगी ही नहीं थी।

यह अवसर तो अपना इति समझ लेने वाले कांग्रेस के लिए मिठाई के डिब्बे में भरी खुशियां के समान ही हैं। परिणाम के बाद स्वयं को विपक्ष में बैठने के जनादेश का सम्मान कहने वाली कांग्रेस अब सत्ता में सक्रिय सहयोगी की भूमिका में है… यानी इस बार महाराष्ट्र में पवार कांग्रेस की पतवार थामे सत्ता तक पहुंचाने में कामयाब हो चुके हैं।

मेरी व्यक्तिगत राय यही है कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व को यह समझना चाहिए कि उनके पास जितना जन समर्थन है उसे ऐसे घटिया विफल प्रयोगों में उपयोग में लाने से नुकसान ही होगा। ऐसी हरकतों से बचना चाहिए। बड़ी बात यह है कि इस दंगल में भाजपा ने अपनी साख ही गंवाई है… मामला चाहे संविधान के ईमानदान पालन का हो या राष्ट्रपति की छवि पर धब्बा लगाने का…

यदि भाजपा जल्दबाजी नहीं करती तो यह साफ दिखाई दे रहा है कि बाजी भाजपा के हाथ में होती… भले ही इसके लिए दो—तीन माह की अल्पावधि उसे विपक्ष में गुजारने की नौबत आती। क्यों कि सत्ता में सहज पहुंचने से इन तीन दलों को मानसिक तौर पर अपने खिलाफ एकजुट होने से भाजपा रोक सकती थी… पर अब वक्त गुजर चुका है और इतिहास में दर्ज हो गया है… 

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